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जो बाल्कनी हमें मिली थी

जो बाल्कनी हमें मिली थी

हमनें कमरा बनवा डाला।

परिपूर्ण हों आशाएं

छोटा एसी लगवा डाला।

बहुत खुश थे हम

बिटिया को नया रूम मिलेगा

उसका भोला भाला चहेरा

अब खुशी से झूम खिलेगा।

इसी कल्पना में खोए थे

इतने में बिटिया आईं

कमरा उसने भी देखा

पर ना वो मुस्काई।

कुछ संजीदा भाव उसके

चहरे पर उतर आए।

हमने गौर से देखा उसको

पर समझ ना पाए।

उसकी आंखो में अश्रु थे

हम भी बहुत चकित थे।

क्यों दुःखी है यह आज

यही सोच व्यथित थे।

बिटिया रानी ने फिर

मुझसे यह बोला।

छोटा प्यारा घर है अपना

मैं कहीं भी पढ़ लेती

बाल्कनी मेरा आंगन थी

जहां मैं बैठ प्यारे से

सपने देखा करती थी।

कुंडो में चुग्गा पानी रखती थी

वो चिड़िया अब पास नहीं

अा पाएंगी

दाना पकड़ पकड़ गिलहरी

अब क्या खाएगी।

कैसे चांद सितारे देखूंगी

कैसे देखूंगी उगता सूरज

बाग नहीं दिखेगा मुझको

कहां आऊंगी जब जाऊंगी थक।

अब कहां बारिश का पानी आएगा

मैं कहां पानी से खेलूंगी

कहां छोटा भाई नहाएगा।

बाल्कनी में आकर्षण था

गमलों के पौधे हंसते थे।

हवा भी शीतल लगती थी

सब कितने प्यारे लगते थे।

मेरे सपनों को पापा

आपने चकनाचूर किया।

मेरे पढ़ने के खातिर

प्रकृति से मुझे दूर किया।

हो सके तो पापा

यह कमरा तुड़वा दो।

मेरी खुशियां फिर से

वापस ला दो।

मेरी खुशियां फिर से

वापस ला दो।

हीरेंद्र चौधरी

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