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“नव्य भारत”

 ये गण का तंत्र, कैसा हो गया

मन का मंत्र, हरेक जप रहा

नव्य भारत ऐसा  हो कि

सारा गणतंत्र जागरूक…

अन्तर्मन दहके

ज्वाला सा मुख

मचा हाहाकर..

सेंध लगा नियमों में

लोकतंत्र के नाम मजाक  बनाया

समेटा था बहुत

जा रहा बिखर – बिखर

हर कोई सोच रहा

अपनी – अपनी…

नव्य भारत ऐसा हो कि

सारा गणतंत्र जागरूक….

नेताओं से पहले हो

 जय – जयकार वीरों की

सरहद की सोच

बारूदों से परे

इंसानियत की छांव में

मजहब का नहीं

देशप्रेम का हो दरख्त

अटल विश्वास, उष्ण हो श्वांस

 तब घर- घर में पैदा होगा

 अब्दुल कलाम

नव्य भारत ऐसा हो कि

सारा गणतंत्र जागरूक…

लोकतंत्र का करके मंथन

एक देश एक कानून

का राज है अपनाना

सत्यं, शिवम, सुंदरम के

विज्ञान नव कलेवर संग

ख्वाहिशों से परे

विकास की संस्कृति ओढ़के

नया कुछ  हैं गढना..

ये गण का तंत्र, कैसा हो गया

मन का मंत्र, हरेक जप रहा

नव्य भारत ऐसा हो कि

सारा गणतंत्र जागरूक…..

बुलंद लोकतंत्र में

बिना डिगें,कदमताल से चलकर

विवेक, जोश व

सच्चे देश प्रेम की ज्वाला

हवनकुंड में झोंककर

नव्य भारत ऐसा बनाना है

कि सारा गणतंत्र जागरूक…

उम्मीद की चुनर ओढ़कर

नहीं तो साल- दर – साल

वक्त कि बिसात से

इंकलाब के नारे

लगाने हैं व्यर्थ…

पुरजोर कोशिश करे की

नव्य भारत ऐसा हो कि

सारा गणतंत्र जागरूक….

जय हिंद, जय भारत 🇮🇳

🇮🇳🚩🇮🇳🚩🇮🇳🚩🇮🇳

शिखा पोरवाल  वैनकुंवर कनाड़ा 🇮🇳

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