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पंचम सिंह पुराणिया (पांचाल) की 2 रचना एवं परिचय

हाय ! बुढ़ापा
जरा जोर की गति से, सब अंग हाल बेहाल ।
शिथिल हुआ तन फिर भी, मन की चंचल चाल । ।
इंद्रिया सभी थकित हो गई, रहती ममद की चाह ।
लाठी लेकर बाहर जावे, तब ही चल पावें राह ।

बधिर यंत्र कानों में हैं, ऐनक नयनन मॉंहि ।
नकली बत्तीसी है मुंह में, असली दन्तावली नॉंहि ।
बुद्धि विवके भी क्षीर्ण हुई, अहं का वही प्रभाव ।
आत्म शक्ति भी मंद हुई, जरा का बढ़ा प्रभाव । ।

घर में भी वृद्ध दंम्पति, यदि दोनों रहते साथ ।
एक बिना दूजा हो जाता, अपने ही घर अनाथ ।
नाती–पोते प्यार से बोले, बेटा बहु करें दुराव ।
आया बुढापा प्रेम घटा, जीवन का खोया चाव ।

बरामदे से दादाजी का, परछी में आया डेरा ।
कभी न उसने सोचा था, बुढापे ने आकर घेरा । ।
माया तृष्णा छूट न पाये, मन में चैन न आता ।
दम्भ हीन शान्ति से रहता, बुढापे में भी सुख पाता । ।
–पी–एस– पुराणिया (पांचाल)

2
औकात
लघु–कथा

धर्मेन्द्र– (हरेन्द्र से)– कहो भाई! कहॉं जा रहे हो ?
हरेन्द्र– यहीय काम से जा रहा हूँ। लौटकर मिलूंगा । उसकी प्रतीक्षा में वह आधा घंटा खड़ा रहा । वापिस आने पर उसने फिर बात करना चाहीय पर वह तिरोहित भाव से बाद में मिलने का बोलकर आगे बढ़ गया ।
धर्मेन्द्र अपने घर चला गयाय परन्तु इस उपेक्षित व्यवहार के विषय में बार–बार सोचता रहा । इस बात को सोचकर उसके मन में भी बेचैनी रही ।
दूसरे दिन हरेन्द्र फिर मिला । उसने धर्मेन्द्र की ओर /यान न देते हुए, नरेन्द्र से बात करते हुए निकल गया ।
अब तो धर्मेन्द्र के धेर्य का बांध टूट गया । वह सीधे हरेन्द्र के घर पहुच गया ।
धर्मेन्द्र– क्यों भाई हरेन्द्र आजकल बदले–बदले से दिखते हो क्या बात है ? सीधे मुंह बात भी नही करते ।
बस फिर क्या था हरेन्द्र भडक गया ।
अरे !छोटे लोगों को मुंह लगाओ तो, मुंह चाटने दौडते हैं । तुम्हारी औकात कहां जो हमसे मुंह लगकर बात करो । तुम एक साथी हो मित्र् नही ।
धर्मेन्द्र– भैया, धन्यवाद । गल्ती हो गई । ऐसा कह कर अपने घर चला गया ।
इसलिए विद्वानों ने कहा है– ‘‘मैत्री समान विचार, समान भाव और समान गुणों वाले लोगों के साथ होती है, साथी अनेक हो सकते है । मित्र् एक–दो ही होते हैं । मित्रता औकात देखकर नही होती ।
–पी–एस– पुराणिया (पांचाल)

पंचम सिंह पुराणिया (पांचाल)
पिता– श्री चुन्नी लाल विश्वकर्मा
माता– श्रीमति जानकी बाई
जन्म तिथि 29–07–1941
शिक्षा– एम.ए. इतिहास, साहित्य विशारद संस्कृत कोविद आयुर्वेद रत्न
वृत्ति– सेवा निवृत हाई स्कूल ’शिक्षक
व्यक्तित्व– गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित, कर्तव्य परायण रहकर दायित्वों का निर्वहन, समाज
सेवा के कार्यो में रूचि
साहित्य सृजन– भावनात्मक एवं विचारात्मक लेख, सहज सरल शैली में कविता सृजन
रूचि– पठन–पाठन, समाज सेवा,लेखन,चिंतन,मनन और स्वाध्याय
पता– ग्राम चिर्रिया तह– गाडरवारा जिला नरसिंहपुर म–प्र– मोबा––7354759801

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