Latest Updates

बेज़ुबा

शहर की उन गलियों से आज फिर गुज़रा , जिसने मुझे 12 साल पहले गूंगा बना दिया था। एक तो पुराना मकान उसका वो टूटा हुआ छज्जा उस पर खड़ी शरमाती लड़की जिसे देख मै हमेशा के लिये चुप हो गया। ज़ुबा हो कर भी बेज़ुबा हो गया। वो चुप खड़ी
मुझे देखती और मैं दूर से पूछता उस लड़की से तुम्हारा नाम क्या हैं,इशारे से उसने मुझे अपने मेंहदी लगे हाथ दिखाए, फिर उसकी सहेली चिल्लाकर बोली तुझे समझ नही आता वो बोल नही सकती गूंगी है,मेंहदी नाम हैं
उसका ,कल निकाह हैं उसका तूझे पसंद हैं। बेचारा!और जोर से हँस कर उसका हाथ पकड़ कर अंदर ले गई। तब से आज तक मै यूँ ही गूंगा बन कर गलियों की खाक छान रहा हूँ। वो बारह साल बाद सामने खड़ी हैं काले कपड़े पहने, उसे देख कर अंदर ही अंदर मेरी आवाज़ घुट गई और मै हमेशा के लिए बेज़ुबा हो गया।
सुरभि

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *