Latest Updates

हृदय के मोती

डॉ उषा किरण (पूर्वी चंपारण, बिहार )

निशा नहाती ज्योत्सना में,

       मुग्ध सी कुछ हो रही है।

             उद्वेलित होते अंतर में ,

              नूतन सी कुछ बो रही है।

कुछ कोलाहल हो रहे हैं,

      दूर अंबर के प्रांगण में।

        आज फिर लहरा उठा है,

          कल्पतरु मन के आँगन में।

हास है परिहास है,  

      शहनाईयाँ बज रही हैं।

            लाज से सिमटती सी ,

              निशा नवेली सज रही है।

ओढ़ चाँदनी का दुशाला,

    चाँद क्षितिज पर खड़ा है।

           प्राण कुछ अकुला रहा,

            आमोद सा मन में भरा है।

अंबर निज हृदय के मोती,

    अंजुरी भर-भर है लुटाता।

       ठहर कर जो द्रुम दलों पर,

              प्रात में है झिलमिलाता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *