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विधवा शब्द कहना कठिन 

उससे भी कठिन

अँधेरी रात में श्रृंगार का त्याग 

श्रृंगारित रूप का विधवा में विलीन होना

जीवन की गाड़ी के पहिये में 

एक का न होना चेहरे पर कोरी झूठी 

मुस्कान होना 

घर आँगन में पेड़ झड़ता सूखे पत्ते 

ये भी साथ छोड़ते 

जीवन चक्र की भाति 

सुना था पहाड़ भी गिरते

स्त्री पर पहाड़ गिरना समझ आया 

कुछ समय बाद पेड़ पर पुष्प हुए पल्ल्वित 

जिन्हे बालो में लगाती थी कभी 

वो बेचारे गिर कर कहरा रहे और मानो 

कह रहे उन लोगो से जो 

शुभ कामों में तुम्हे धकेलते पीछे 

स्त्री का अधिकार न छीनो 

बिन स्त्री के संसार अधूरा 

हवा फूलों की सुगंध के साथ 

मानों कर रही हो गिरे 

पूष्प का समर्थन।

संजय वर्मा “दृष्टि “

125 शहीद भगत सिंग मार्ग 

मनावर जिला -धार (म प्र )

(विधवा -कल्याणी)

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