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तितली

बस पीछे पीछे दौड़ा जाता

पंखों को पकड़ने रंग विरंगे;

कटिले वृंत-कुंजों में जाता

कोशिश के पाँव रहते नंगे।

पीली पंखों वाली तितली

हाथों में पीले रंग भुरकती;

पंख फड़फड़ा सूंड हिला

उड़ भागने खूब मचलती।

नीली,बैगनी,गुलाब रंग की

जैसे परीलोक से थी आई;

लाख कोशिश कर हारा मैं

सदा रही वह भागती-पराई।

कितनी भूखी है पराग की,

कितनी प्यासी मधुरस की;

कितनी विदग्धा मिलन की

तनिक न चिंता अपयश की।

बालक मन मचल जाता है मेरा

तितली को जब भी उड़ते देखूँ;

मन करता है लौटने बचपन को

फिर जीवन का क ख ग सीखूँ।

-अंजनीकुमार’सुधाकर’

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