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शीर्षक : “वो सर्द रात”

वो सर्द हवाएं हो : वो काली घटाएं हो।

वो शर्मीली निगाहे हो : वो सिसकती आहे हो।

ठंड की कपन हो : थोड़ी सी अगन हो।

थोड़ी सी लगन हो : साथ में सजन हो ।

बस फिर किया, हो बाहों में बाहें, हो हाथो में हाथ, फिर सदा याद आयेंगी=वो सर्द रात : वो सर्द रात।

कश्मीर की वादी हो : पूरी आजादी हो।

जिगर फौलादी हो : तनपर वस्त्र खादी हो।

बस फिर किया,हो जाए रिमझिम बरसात, फिर सदा याद आयेंगी=वो सर्द रात : वो सर्द रात।

नदी का किनारा हो : वहती निर्मल धारा हो।

चारों तरफ अंधियारा हो : मैने तुम्हे पुकारा हो।

बस फिर किया, हो जाए एक मुलाकात, फिर सदा याद आयेगी=वो सर्द रात : वो सर्द रात।

कवि, मनोज कुमार पत्रकार।

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