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लव आजकल

कविता मल्होत्रा (स्तंभकार उत्कर्ष मेल)

यदि किसी बच्चे को जन्म के तुरँत बाद केवल ऊपरी ख़ुराक पर किसी हिंसक व्यक्ति के सान्निध्य में पाला जाए तो उसका व्यक्तित्व कैसा होगा?

 बिन माँ के बच्चे जैसा ही होगा ना?

 लेकिन हम सब तो भारत माता के बच्चे हैं फिर हमारे वजूदों में इतनी व्याधियाँ कहाँ से पनप आईं?

 आजकल हर अभिभावक की यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे विदेशों में पढ़ें और छुट्टियाँ मनाने विदेशों में जाएँ।इस प्रेशर गेम में गुनाहगार किसे माना जाए?

 आजकल हर जोड़ा निजी स्पेस की ख़ातिर एक दूसरे से ही दूर होने लगा है, एैसे में माता-पिता का दायित्व वृद्धाश्रमों के कँधों पर डालने का गुनाहगार कौन है?

 आजकल लोग चँद रूपयों की ख़ातिर किसी की जान लेने से भी नहीं क़तराते,गुनाहगार कौन है?

 आजकल अपनी दैहिक तृप्ति के लिए किसी को जीते जी मार देना तो पैशन हो गया है,गुनाहगार कौन है?

 दरअसल ये तमाम स्थितियाँ बीमार मानसिकता की निशानियाँ हैं।

 लेकिन आख़िर ये बीमारी आई कहाँ से?

 हम अपने बच्चों को, शिक्षा के नाम पर कैसी धरोहर सौंप रहे हैं?

 क्या अपने बच्चों के सुसँस्कारी विकास के लिए उनके लिए नैतिक परिवेश उपलब्ध करवाना हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है?

 क्या राष्ट्र के समुचित विकास के लिए देश की शासन व्यवस्था को और अपने बच्चों के भविष्य को स्वार्थी हाथों में सौंपना सही है?

 जीवन के आदर्शों की प्राप्ति के लिए हमें अपने बच्चों से पहले अपने विवेक को जागृत करना होगा, ताकि उन्हें सही दिशा दिखा कर मृग मारीचिका में भटकने से बचा सकें।

 अपनी सँस्कृति की धज्जियाँ उड़ने लगी हैं और हम हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं, या विदेशों मे घूम कर आनँदित हो रहे हैं,आखिर कब तक एैसा चलेगा! क्या भारत माता के सब बच्चों से हमारा कोई सँबँध नहीं है! क्या हमारे सुख-दुख साझे नहीं हैं!

 क्यूँ एैसा होता है कि दूसरे के दुख में लोग दुखी नहीं होते, दूसरे की खुशी से लोग खुश नहीं होते!

 क्या मीरा की कहानी अब केवल बाज़ारू परदों पर ही दोहराई जाएगी!

 क्या कृष्ण का अर्थ केवल रास रचयिता तक सिमट कर रह जाएगा!

 ज़रा सोचिए हमारी सँस्कृति का आधार निस्वार्थ प्यार हुआ करता था। फिर इस रूहानी प्रीत को किसकी नज़र लग गई जिस से आजकल का लव जिस्म से रूह को उधेड़ने की ज़िद ठाने बैठा है।

 हमारा जीवन तो ब्रह्माण्डीय शक्तियों का वो चमत्कार है जो आत्मिक उर्जा के बल पर जीवन के निर्माण की सँभावनाएँ समेटे बैठा है।तो क्यूँ ना आजकल के अल्पायु लव को दीर्घायु होने की आशीष देकर अपनी भावी पीढ़ी के जीवन को समृद्धि दी जाए, जो कि हमारा नैतिक दायित्व भी है।

 जीवन की दशा और दिशा के लिए हमारी विचारधारा ज़िम्मेदार होती है, तो क्यूँ ना अपनी विचारधारा मे कुछ क्राँतिकारी परिवर्तन किए जाएँ जिससे समूची मानवजाति के रूपाँतरण में हम भी कुछ योगदान दे सकें! क्या वास्तविक अर्थों में यही सच्चा प्यार नहीं है? जो हमें अपनी सभ्यता से और सँस्कृति से करना चाहिए, जिससे सबका विकास सँभव हो पाए।

 अब एक दूसरे का उत्थान हो

 जनहित अब राष्ट्रीय गान हो

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