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सम्पादकीय : मनमोहन शर्मा ‘शरण’

….आखिर चीन बातचीत को तैयार हो गया और आपसी संवाद के माध्यम से समस्या का हल ढूंढने के लिए सहमत हो गया ।और कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था भारत सरकार ने, हमारे वीर सैनिकों तथा भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारीयों ने ।एक वार वह होता है जो सामने से लगता है और जिसके बचाव…

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जीवन का आनँद होने न पाए मँद

(कविता मल्होत्रा) दिशाहीन दौड़ मत दौड़ोअपनों का हाथ मत छोड़ो✍️जैसे-जैसे लॉकडाऊन खुलने लगा है, वैसे-वैसे मार-काट, चोरी-डकैती और आपसी भेदभाव के सर्प सर उठाने लगे हैं।कोरोना-काल के इतने बड़े बवंडर के बाद भी लोगों को अराधना का साफ आसमान दिखाई नहीं पड़ रहा है।क्या दीप जला कर मंत्रोच्चारण करने से ही ईश्वर की अराधना संपूर्ण…

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आया सावन

मयूर जब बोलेगा चातक मुंह खोलेगा आयेगी मस्त फुहारें चहुंओर रहेगी बहारें झींगर जब टेर लगाये दादुर वक्ता बन जाये दीखे पानी ही पानी मेघों पर आये जवानी कोयल जब राग सुनाये बादल जब नाद बजाये झरने की कल-कल छल-छल रंग बदले प्रकृति पल-पल प्रकृति का होगा ऐसा दामन तब समझो आया सावन                                   –…

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आपका ध्यान किधर है?

जी हां जनाब, आपका ध्यान किधर है? शायद कहीं और ही व्यस्त हैं आप, तो चलिए जरा आपका ध्यान आपकी ‘व्यस्तता’ से थोड़ी ‘सैर’ पर ले चलते हैं, आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगी l तो जनाब हुआ यूं  कि बड़े बाजार की सबसे बड़ी कपड़ा दुकान के सेठ जी ने बड़ी तेज तर्रारी के…

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दुष्ट दमन सदा हितकारी !

कानून और न्ययालय की देश में क्या जरूरत , जब त्वरित न्याय मौजूद है तो , ये सवाल सबके जहन में आएगा  !मेरा निजी मत है कि विकास दूबे का एनकाउंटर सही है क्योंकि वो खूंखार था और हत्यारा था किन्तु मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसो की गाड़ियां क्यो नही पलटती, भादेठी कांड वाले…

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उचित फीस

लॉक डाउन के समय में अपने बच्चों की पढ़ाई खराब होने का डर शर्मा जी को लगातार हो रहा था।फिर कुछ खबर आई कि बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन होगी।अब शर्मा जी को कुछ तस्सली हुई।उन्हें लगा शायद अब बच्चों का 1 साल खराब होने से बच जाएगा।ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही…

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जिन्दगी

जिंदगी ,तेरे कितने रूप कभी बल खाती नदिया की तरह बेबाक बेखौफ आगे बढ़ती जाती है । तो कभी डर सहम कर थम सी जाती है । कभी तपती है जेठ की दुपहरी सी तो कभी बरसती है सावन की फुहारों सी। जिंदगी ,तू कभी एक सी नहीं रहती पतझड़ के आते ही गुमसुम हो…

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।। हमारा तंत्र ।।

                                          समाज में राजतंत्र के बाद प्रजातंत्र आया। लेकिन प्रजातंत्र के साथ साथ राजतंत्र भी उसी के समानांतर चलता रहा है। लेकिन समाज को यह दिखता नहीं केवल महसूस होता है।यह राजतंत्र राजाओं से भी क्रुर व्यवस्थाओं में पनपा है ,और पनप रहा है।इस राजतंत्र को आज गुंडातंत्र, आतंकवाद,आदि नामों से कहा जाने लगा है।…

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“अपने पराए”

विपत्ति के समय ही मनुष्य के चरित्र की पहचान होती है। कौन अपना है और कौन पराया है, इसका पता मुसीबत में ही लगता है। इस घटना के जो मुख्य पात्र हैं वो आज नहीं हैं। परन्तु घटना से मिली एक सीख आज भी मुझे याद है। दादाजी के गुजर जाने के बाद की घटना…

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आज मैं प्रश्नाकुल हूँ ………

आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि आँखों का आदिम स्वप्न रोता, प्यासे मन में विषाद दिखता जीवंत सत्य बस गरल बोता ! आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि वृथा दंभ की परिधि फैली अभीष्ट जो था , अपवाद क्यों है ? पक्षपात, वेदना, निशा दृष्टिगत शिराओं में रक्त का संचार ज्यों है ! आज प्रश्नाकुल हूँ मैं…

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