बैसाख़ी के फिर मेले हों
श्रीमती कविता मल्होत्रा इतिहास गवाह है कि जहाँ रूह सहमत होती है वहीं रब की रहमत होती है।किसी भी तरह की अनहोनी का अंदेशा सबसे पहले अपनी ही रूह को होता है।ये और बात है कि मानव की चेतना अपने ही चैतन्य के इशारे को नज़रअंदाज़ कर देती है।यूँ तो मानव की पहुँच चाँद तक…