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बैसाख़ी के फिर मेले हों

श्रीमती कविता मल्होत्रा इतिहास गवाह है कि जहाँ रूह सहमत होती है वहीं रब की रहमत होती है।किसी भी तरह की अनहोनी का अंदेशा सबसे पहले अपनी ही रूह को होता है।ये और बात है कि मानव की चेतना अपने ही चैतन्य के इशारे को नज़रअंदाज़ कर देती है।यूँ तो मानव की पहुँच चाँद तक…

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मैं दूर दृष्टि धारक संजय

में दूर  दृष्टि धारक संजय,  आंखों देखा हाल बताया, धृतराष्ट्र के , कुल के काल को  मैं भी ना बदल पाया । पांचाली की हंसी , धृतराष्ट्र की चुप्पी,  शकुनि के  पाशो ने  सारा महाभारत करवाया । पति प्रेम में गांधारी ने भी  धृतराष्ट्र का साथ दिया दुर्योधन के सिंहासन के खातिर  अपने कुल का…

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परिवार

ढूँढ़ रही इस जगत में फिर     खुशहाली से भरा परिवार।     जिसमें थी बसती एकता     नेह अरु प्रेम गले का हार।     दादा-दादी औ चाचा-चाची     ताऊ ताई बुआ हर कोई।     चहल-पहल से घर जो गूँजे     सारी ही वो पलटन खोई।     सिमट गया दो जन में घर     रहता था…

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गुरु दक्षिणा

सुचित्रा बहुत विचलित हो गई थी। उसने इतना अपमान अब तक कभी नही सहा था। भलाई करने का आज के जमाने में यह परिणाम मिलता है, उसे आज महसूस हुआ था। पड़ोस के घर से संयम उसके पास संगीत सीखने आता था। जबसे वह पड़ोस में रहने आया था तभी से उसके पास आ रहा…

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