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मानवता को प्रणाम : मनमोहन शर्मा ‘शरण’

भारत में कोरोना विस्फोट चरम पर है, 3–80 लाख के लगभग मामले एक दिन में आना अपने में भयावह है किन्तु साथ ही ठीक होने वालों की संख्या भी 2–97 लाख के लगभग है, जो बाकी देशों की तुलना में संतोषजनक है । इस बार कोरोना की सूनामी युवाओं को अ/िाक चपेट में ले रही…

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स्वास्थ्य सेवाओं पर उठ रहें सवाल, जिम्मेदार मौन !

कोरोना जैसी भयंकर महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खोल दी है । पुराने और बिल्कुल जर्जर स्थिति में पहुंच चुकी सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं निरीह और बेबस नजर आ रही । प्राइवेट चिकित्सालय चुप्पी साध चुके है । सुनने में तो यहां तक आ रहा कि प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को भर्ती तक लेने से…

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वंशबेल

“विगत महीनों में जाने कितनी बार दुहराया, ‘मुझे माफ कर दो, तारिका!’ पर मन का बोझ कम नहीं होता, क्योंकि कृत्य माफी के योग्य था ही नहीं। पर जाने क्यों, पार्क की इस बेंच पर बैठते ही तुम्हारे यहीं कहीं होने का एहसास जागृत हो उठता है, क्योंकि यह बेंच हमारी पसंदीदा जगह थी, जब…

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कोहराम

कैसा मचा ये कोहराम फिर से दम तोड़ रही साँसे हो मजबूर कहीं इलाज की कमी कहीं लापरवाही हावी मौत हो या ज़िन्दगी दोनों बस लगी हैं कतार में कितनी भयावह हो गये हालात जहां तक नज़र जाए बस खौफ़, बेबसी, लाचारी है ये कोहराम कैसा जहां जितनी मजबूर ज़िन्दगी उतनी ही मौत भी जितना…

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अधूरी शादी (मंजुलता)

नंदिनी आज लाल सुर्ख जोड़े में बहुत ही सुंदर लग रही थी । बड़ी बड़ी आँखे,घनी भौंहे, दूध जैसा सफेद रंग , पतले पतले होंठ, कमर तक काले घने बाल स्वर्ग की अप्सरा से कम नही ,इतनी सुंदर थी नंदिनी। जो भी देखता बस देखता ही रह जाता था। कॉलेज में तो युवा दिलों की…

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तेरी रचना का ही अंत हो न

(कविता मल्होत्रा) कैसी विडँबना है, हर कोई अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धि की चाहत लिए अपना स्वतंत्र आकाश चाहता था और आज अधिकांश लोगों को दो गज ज़मीन भी नसीब नहीं हो रही। अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले देश में तमाम सीमाएँ लाँघने वाली समूची अवाम का अपनी भाषा पर ही अधिकार नहीं रहा, जो निशब्द होकर कोष्ठकों…

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बुजुर्ग दम्पत्ति से किसी ने पूछा

बुजुर्ग दम्पत्ति  से  किसी ने पूछा, बच्चों से अलग कैसे रह जाते हैं? प्रवासी बच्चे दूर हैं आपलोगों से, ‘कोरोना-काल’ कैसे  गुजारते हैं? ठहाका लगाते हुये बुजुर्ग ने कहा, कैसे समझ रहे हैं बच्चे अलग हैं? प्रतिपल पास में पाता हूँ सबों को, उनकी छवि  ही  हमारा संबल है। क्या भगवानअपने सब संतान से, खुद…

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चले जा रहे हैं

फिर वही दहशत है, फिर वही आलम, प्रवासी मजदूरों का   घर  को पलायन बड़ी  बेबसी दिख  रही  हर  तरफ   है न  दिन-रात की उनको चिन्ता सताती चले जा रहे  …   … वे चले जा रहे हैं। किधर तुम,  कहाँ जा  रहे   मेरे   भाई रुको तुम वहीं, अपनी हिम्मत न  हारो कुछ धीरज धरो,घर में हो…

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गीत और ग़ज़ल को ऑक्सीजन देने वाला वट वृक्ष चला गया

सज्जनता, विनम्रता, सरलता और बड़प्पन सिखाना है तो डॉ. कुंअर बेचैन से सीखें। इतना बड़ा मुकाम हासिल करने के बाद भी कोई अहम नहीं पला। गीत के शलाका पुरुष और ग़ज़ल के उस्ताद डॉ. कुंअर बेचैन अति विशिष्ट श्रेणी में आते थे। वे अत्यंत विद्वान और सतत् विचारशील थे। मैंने, उनके कवि सम्मेलनों के उनके…

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“ईदी”

बस स्टैंड पर रुकी तो मैंने राहत की सांस ली। कंडक्टर की आवाज़ बस में गूंजी कि बस आगे नहीं जाएगी सबको यहीं उतरना पड़ेगा। मैंने उतरने के लिए अपना बैग उठाया और बस के दरवाजे की और बढ़ा। मेरे साथ वाली सीट पर बैठा लड़का अब भी सो रहा था। मैंने उसे जगाने की…

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