
बैसाख़ पर गुलज़ार हो हर हृदय में प्रेम की शाख़
कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार, संरक्षक) प्रेम के पल्लवों से गुलज़ार हो जाए हर शाख़ नवचेतना हर रूह में उतरे तो घटित हो बैसाख़ वक्त की रफ़्तार और प्रकृति के प्रहार धीमे धीमे अपने विभिन्न रंगों से समूचे विश्व को रंग रहे हैं।वैश्विक स्वास्थ्य केवल दैहिक उपकरणों की देख-भाल का परिमाण नहीं है, बल्कि वैश्विक मानसिकता…