
ग़ज़ल : वो कभी मिलते नहीं हैं
वो कभी मिलते नहीं हैं पर हमें भूले नहीं हैं छू हमें महसूस भी कर देख हम सपने नहीं हैं कल इमारत भी बनेंगे हम फ़क़त नक़्शे नहीं हैं इब्तिदा हमसे हुई थी और हम पहले नहीं हैं क्या कहा है आपने जो हम अभी समझे नहीं हैं विज्ञान व्रत