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वर्तमान परिपेक्ष्य में साहित्यकारों की भूमिका

अक्षत श्रीवास्तव हम यथार्थवादी युग में प्रवेश कर चुके हैं । कल्पनाओं में अब हम नहीं जी सकते । सभी को हकीकत का दर्शन चाहिये । हम कल्पनाओं में नहीं जी सकते । हमारी कल्पनायें भी बेरंग हो चुकी हैं । हमें यथार्थ ही चाहिए । यथार्थ याने कड़वी दवा जिसके मीठेपन में भी कसैलापन…

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लो कर गए प्रवेश नए वर्ष में फिर हम.

लो कर गए प्रवेश नए वर्ष में फिर हम बस देखते रहे गुज़रते पलों को हम l जाता हुआ साल इतिहास लिख गया क्या पाया हमने खोया सब हिसाब लिख गया कुछ हसरतें थीं दिल में जो पूरी न हो सकीं कुछ पल खुशी के साथ मेरे नाम लिख गया लेकर नई आशाएं बढ़ें सबके…

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दिल वालों की दिल्‍ली

गीतिका छंद विधाता मापनी- 1222 1222 1222 1222, समांत -आना, पदान्त-तुम कभी दिल्ली रुको तो बिन इसे देखे न जाना तुम। पुरानी अब नहीं यह आज देखो फिर बताना तुम ।1। यहाँ चारों तरफ हैं वन हरित उपवन हजारों में, प्रदूषणमुक्त दिल्ली के लिए पौधा लगाना तुम।2। यहाँ उपलब्ध हैं उत्कृष्ट पथ, बस, रेल सेवाएँ,…

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नववर्ष आ गया…….

बागों में कूके कोयल, भौरें विचर रहे हैं।बागों पे आया यौवन,कविमन खिल गए हैं।हरियाली से धरा का,सौन्दर्य बढ़ता जाए।नववर्ष आ गया है , ऋतुराज मुस्कुराए ।कलियाँ चहकती हैं,खुशियों से चमन गाये।ख्वाहिशें नई जगी है ,इरादे बदल गये हैं, ।रेतों के भी परिन्दे , हरियाली में मुस्कुराए।मंजिलों के नए सपने , अब जन्म ले रहे हैं…

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