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नोट की ओट से वोट पर निशाना

राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

. उन्हें पूजन के दौरान ही सपना आ गया ‘‘हे वत्स! ज तू बाहर जाकर कह दे कि नोटों पर मॉ लक्ष्मी और प्रभु गणेश जी की फोटो लर्गा जाए’’ । उन्होने पूरी पूजन की फिर अपने मुख पर मुस्कान को ओढ़ा, गले को खंखारकर खांसी जैसी मिटाई और सारे देश को बोल दिया कि नोटों पर लक्ष्मी जी की और गणेशजी की फोटो लगाई जाए ।यह ऐसा वार है जिससे घायल तो सभी हो रहे हैं पर स्वीकार र्को नहीं कर रहा है ‘‘सौ सुनारकी और एक लुहार की’’ वाली स्टाइल मेें । आम आदमी जिसे मतदाता भी कहा जाता है सोचता है कि आखिर ये नेता टाइप के लोग कहॉ-कहॉ से ढूॅढ़ कर स्कीमे ले आते हैं ? हर बार नई स्कीम हर बार भ्रमित वोटर । अरे भैया जिनमें दिमाग होता है वो ह राजनीति में आता है और फिर देखते ही देखते ऊंचाई पर चढ़ जाता है । अरविन्द केजरीवाल ने सोचा फिर कहा और अब लोग अपने-अपने ढंग से तर्क-कुतर्क कर रहे हैं । कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने तो अम्बेडकर जी की फोटो लगाने का सुझाव दिया तो भाजपा नेता नीतिश राणे ने शिवाजी की फोटो लगाने के बारे में बोल यिा । अब तो ऐसे सुझाव आयेेेंगे ही और आविन्द केजरीवाल का सुझाव इन सुझावों के नीचे दब जायेगा । नोटों में अच्छे भले गांधीजी मुस्कारा रहे थे इस नई बहस ने उनकी उपस्थिति को भी संकट में डाल दिया है । अरविन्द केजरीवाल तो कह सुनकर एक तरफ हो जायेगें पर नोटों में किस की फोटो छपे इस पर लम्बे समय तक बहस हांेती रहेगी । वैसे अरविन्द केजरीवाल ने एक समझदारी अवश्य दिखाई वो सह कि उन्होने यह तो कहा ही कि नोटों पर गांधीजी को मुसकुराते रहने दो दूसरी तरफ फोटो डाल दो । अभी फोटो हमारे देश के गौरवशाली इतिहास की डल रही हैं । हमारा इतिहास भी हमे गौरवांवित होने का अवयर देता है । नोटों पर भगवान जी की फोटो के बारे में कभी किसी ने सोचा ही नहीं, क्योंकि हम धर्मनिरपेक्ष होने का परचम लहराते रहे हैं । गांधीजी को भी इस कारण से स्थान मिला कि उन्हें हमने राष्ट्रपिता का दर्जा दिया हुआ है । संविधान धर्म निरपेक्ष है तो सभी धर्मों का आदर हो ऐसा माना जा सकता है पर इस नई बहस ने नए रास्ते खोल दिए । वैसे भी ओबेसी तो हिजाब वाली लड़की प्रधानमंत्री बनेगी का राग अलाप ही चुके हैं अब वे भी कुछ कहेगें और वे जो कुछ कहेगें वह हमें पचेगा नहीं । वैसे भी देश पिछले कुछ दिनों से दो समूहों में बंटा दिखाई दे रहा है ऐसे में ह नई बहस किस मोड़ तक हमें ले जायेगी कहा नहीं जा सकता । भारत में चुनाव तो होते रहते है। हर साल कभी भी और कहीं भी पर हर चुनाव में हम नई बहस को जन्म देते रहेगें तो विकास की बात कब करेंगें ं वैसे सच तो यह भी है कि अब विकास की बातें होती कहां हैं, केवल बहस होती है और सपने दिखाए जाते हैं । सपनों मेें फिरी में मिलने वाली चीजों की संख्या होती है जो बाद मंें मात्रा कितनी होगी पर सिमट जाता है । हमने बहुसंख्यक लोगों को चुनाव होने का मतलब फिरी में कुद मिलना के ायरे में लाकर खड़ा कर दिया है । हर बार चुनाव के आते हैंयह अंदाजा लगाने मंे मतदाता जुट जाा है कि इस ार क्या-क्याफिरी में मिल सकता है इसे ही तो ‘रेवड़ी’ बांटना कहा जाता है । फिरी के चलते विकास बहुत पीछे छूट गया है किसी को विकास की आवश्यकता ही नहीं दिखाई देती है । उनके घर का विकास देश के विकास की परिभाषा को पूरा कर देता है । चुनावी भाषणों में भी अब एक दूसरे की कमिां बताना ही रह गया है ‘‘उसकी शर्ट मेरी शर्ट से ज्यादा गंदी’’ के भावों और च्चारणों तक सिमट गया है विकास की बात कौन करेगा और कोई करेगा भी तो किसी को समझ में भी आयेगी भला आप तो सीधे-सीधे यह बता दो कि फिरी में क्या देने वाले हो । केजरीवाल जी ने तो फिरी में देने का अपना पैटर्न बना लिया है ‘‘बिजली फिरी, पानी फिरी, सरकारी बसों में यात्रा फिरी’ और ज्यादा उन्हें कुरेदोगे तो वे मोहल्ला क्लिीनिक और शिक्षा व्यस्था की बात करने लगेगें । उनके लिए इससे अधक विकास की और कोई परभिाष है ही नहीं । वैसे कम से कम उनके पास एक विजन तो है अन्य राजनीतिक दलों के पास तो यह विजन भी नहीं है वे दूसरों की कमियां गिनागिनाकर उन्हें कोस-कोस कर अपने विकास की परिभाषा को पूरा कर रहे हैं । राजनीतिक दलों के घोषणापत्र भी अब केवल लुभावाने तानाबाना से लिपटे रहते हैं सच बात तो यह है कि उन घोषणापत्रों में भी विकास की परिभाषा नहीं होती । राजनीतिक दलों के विचारक इस बात पर विचार करते हैं कि और क्या-क्या कैसी-कैसी रेवड़ी देनी है । विकास की बातें तो उनके पास भी नहीं बची हैं वे साचेते ही नहीं है इस दिशा में । चुनाव चल रहे हैं अभी तो हिमाचल प्रदेश में घोषित हो ही गए है वहां नामांकन भी भरे जा रहे हैं कुछ दिन बाद गुजरात के चुनाव भी घोषित हो जायेगें । नेता व्यस्त हो जायेगें वे बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां करेगें और अपना भाषण देगें । जनता केवल तमाशा देखती है उसे तालियां बजाना है सो वह बजा देती है । चुनाव तो चलते रहेगें अभी भी हो रहे हक्ैं और अगले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कुछ और राज्यों में होगें, फिर लोकसभा के चुनाव भी होगें, चुनावों का अनवरत सिलसिला भारत मे चलता रहता है । बहरहाल अभी तो हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव हैं जहां दोनो राज्यों में भाजपा की सरकार है । भाजपा की सरकार को बदलनाविपक्षी दलों का लक्ष्य है पर यह बदलेीग तब ही जब जनता उन्हें वोट न दे । जनता हमें वोट दे इस भावना के साथ काम किया जा रहा है कभी खुद को कृष्ण का अवतार बता कर या कुछ और दिखाकर । गुजरात गांधी जी का क्षेत्र है हो सकता है कि अरविन्द केजरीवाल ने यह सोचकर ही नोटों से गांधीजी क तस्वीर बनी रहने देने की बात की हो हो सकता है कि उन्होने लक्ष्मी जी और गणेश जी की फोटो की बात भी इसी कारण से की हो, हो सकता है कि उन्होने ‘सौ सुनार की एक लुहार की’’ का र्फामूला अपनाया हो पर जो भी हो यह एक लम्बी बहस है जिसका जल्दी सिमट जाना संभव नहीं है । सपा सांसद आजमखां के बुरे दिन चल रहे हैं, कभी वे शहंशाह की भांति अपना काम करते थे और अपना अंदाजाबयां करते थे पर ऐसे बुर दिन आए कि उनकी शंहशांही तो कोने में रखा ही गई उल्टे उन्हें अपने दिन गिनने पड़ रहे हैं । बेचारे करब 27 महिना जेल में रहे जैसे-तैसे बाहर निकले तो चाहे जब उनके फिर से जेल चले जाने का खतरा मंडराता रहता है । उनके बनाए विश्वविद्यालय की दुर्गति तो हो ही चुकी हे एक दर्जन से अधिक केस तो उनके ऊपर उस विश्वविद्यालय के कारण ही दर्ज हुए हैं रह सही कसर ‘हेटस्पीच’ के मामले ने पूरी कर दी । हेट स्पीच नाम तो सुना सा लगता हे अभी कुछ ही दिनों से प्रचलन में आया है और आते ही छा भी गया है । वैसे तो जाने कितनी हेट स्पीचें होती रहती हैं नेता ऐसी-ऐसी बातें भावेश में या आवेश में बोल देते हैं जो न तो तार्किक रूप से सही लगती हैं और न ही सामाजिक रूप् से शोभनीय लगती हैं । हेट स्पीच तो बोली ही जा रही है जिसे जो लग रहा है बोल रहा है पर प्रकरण आजमखां पर बना । हेटस्पीच पर प्रकरण बनाने का काम पुलिस करती है और पुलिस राज्य शासन के अधीन होती है तो उसे यह समझ लेना होता है कि कौन सी हेटस्पीच सच में हेट सप्ीच है और कौन सी केवल स्पीच ही वह हेट स्पीच के दायरे मेें आ सकती है । पुलिस के सामने भी उनकी नौकरी का सवाल है तो वह सोचसमझकर देखभाल कर हेटस्पीच का प्रकरण बनाती है । आजमखान ने 2019 में स्पीच दी जो हेटस्पीच के दायरे में मानी गई और अब उस पर सजा भी सुना दी गई । आजमखान के बुरे दिनों की संख्या में एक बुरा दिन और जुड़ गया । चेहरे पर मायूसी और कठिन दिनों के सपनों की दीवार टंाग कर वे आहें भरते दिखाई दिए । वैसे तो न्यायालय का फैसला ऐसे समय पर आया जब माननीय सुप्रीमकोर्ट ने भी हेटस्पीच को गंभीरता से लिया है । अब जब इस पर सजा सुनाई ही जाने लगी है तो हर नेता की हेटस्पीच को गंभीरता से लेने की जबाबदारी पुलिस की भी बढ़ गई है । हेटस्पीच को तो रूकना ही चाहिए और यह रूकेगी भी ऐसे ही जब हेटस्पीच देने वाले नेताओं को सजा होने लगेगी । जुबान को लगाम लगाने के दिन आ गए हे ऐसाअभी तो लग रहा है बाद का कुछ कहा नहीं जा सकता । ंग्लैं के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी भारत मेे तहलका मचाया हुआ है । वैसे तो उनका जन्म भारत में हुआ ही नहीं है पर हम चूंकि वे भारतीय मूल के हें इसलिए हम उन्हें अपना समझने लगे हें । हम भारती छोटी-छोटी बातों में अपनी खुशियां ढूंढॅ़ ही लेते हैं । ब्रिटेन में वे प्रधानमत्री बने पर भारत मेें उनको लेकर भारती की राजनीति के नये सपने संजोये जाने लगे । ओबेसी को लगने लगा कि एक दिन भारत मेें कोई हिजाब पहने लड़की प्रधानमंत्री बनेगी तो किसी को किसी दलित के प्रधानमंत्री बनने के सपने आने लगे । भारत में सब कुछ हो सकता हे भारत का संविधान सभी को समान अधिकार देता है । संविधान ने किसी को नहीं बांटा, बांटा तो हमने ही है अपनी राजनीति के चक्कर में । दलित हो अगाड़ी हो कोई भी भारत के संविधान के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं फिर बहस क्यों, तैयारी करो आप सामने लेकर आओ ऐसे चेहरे जिन पर देश गर्व भी करे और वो देश की राजनीति का सिरमौर भी बने । यूक्रेन का युद्ध तो लम्बा खिंचता जा रहा हे खत्म ही नहीं हो रहा है कहां तो अनुमान लगाया जा रहा था क बस कुछ ही दिनो में यूक्रेन निपट जायेगा पर यूक्रेन आज तक नहीं निपट पाया । उसे जितनी सैन्य मदद मिल रही है उसके बल पर वह रूस जैसे खतरनाक देश को टक्कर भी दे रहा है । वैसे ूकेन पूरी तरह से तबाह हो चुका है और रूस भी धीरे-धीरे पंगु होता जा रहा है । युद्ध कब खत्म होगा कोई नहीं जानता पर इससे होने वाले नुकसान को सारी दुनिया लम्बे समय तक भोगती रहेगी ।

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