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व्यंग्य – जात न पूछिए नेता की…!

जीवन में कोई कब कोई नेता किस धर्म जाति संप्रदाय का हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता । आजकल के ट्रेंड में हर संप्रदाय का अपना रूल रेगुलेशन है  । किसी को डॉगगिरी पसंद है तो किसी को घाघगिरी । अपने पलटूराम भैया को ही ले लीजिए ताजा ताजा मीम समर्थक बने थे और लगे ब्राह्मणों को गरियाने और तो और संतो को भी कह दिया की ये सब उच्चे समुदाय  के है तो चचा वो कहते है ना जात न पूछिए संत की वो कहावत अब हो गई जात न पूछिए नेता की । अब ऐसे ही कुछ लोग समाज में आगे चलकर बघेल , जीतनराम , लोधी इत्यादि कहलाते है और बाद पार्टी का कुत्ता घर का ना घाट का वाली स्थिति में ढक खप जाते है ।  दुर्दांत , बदतमीज , घटिया , चापलूस , कुत्सित , वामी , कलमचोर , मानसिक अपंग आदि आदि ! घबराइए नही यह मै किसी को कह नही रहा केवल बता रहा कि ऐसे शब्दों के लिए समाज में कई व्यक्ति बने है । ऐसे शब्द उन पर खूब जंचते है । ऐसे व्यक्तियों को लोग आजकल भ्रष्ट राजनेता , बिका हुआ वामपंथी पत्रकार और घुसघोर बाबू कहते है । अब क्या बताए कुछ लोग जहन में एक लंबे अरसे तक घर कर जाते है और कुछ लोग जहन में चढ़ते उतरते है । समाज में दो तरह के लोग पाए जाते है एक जो बेवजह का हाहाकार मचवाने में विश्वास रखते है और दूसरे जो शांत रहकर मजे लेते है अब एक तरफ अपने पड़ोसी खिलाड़ी रवीश और दूसरी तरफ चचा पलटुराम दोनो बिहारी  । अब एक वाकया देखिए और फिर कारनामा  की आप बिहारी चमत्कार पर भरोसा करते है ? दो दिन पहले तक मैं विश्वास नही करता था लेकिन अब चमत्कार जैसी चीज पर यक़ीन होने लग गया है। आप ने नालासोपारा उपनगर का नाम सुना है ? कपिल शर्मा का काॅमेडी शो देखते होगे तो आप को उसमें बारंबार नालासोपारा का जिक्र मिलता होगा। कपिल शर्मा शो की सपना का प्रेमी नालासोपारा में ही रहता था। मुंबई से सटे नालासोपारा के संतोष भवन झुग्गी झोपडी में आठ दिन पहले एक 15 साल की लडकी भरी बारीश में कुछ काम से बाहर गई थी,उसका मकान एक बडे नाले के पास है। बाहर जाते समय अचानक से उस का पैर फिसला और वह उफनते नाले में गिर गई और बह गई। अब लड़की ठहरी दलित तो शुरू हुआ नाटक , एक्शन ड्रामा और इमोशन । बिहार वाले  पत्रकार साहेब प्राइम शो में मेज पर हाथ टिकाए शुरू हुए कि सब मोदी की करस्तानी है , इंद्र के यहां ईडी भेज कर बारिश करवा रहे । ये नाला सोपारा के दलितों के साथ अन्याय है मैं एंकर होने के नाते विरोध करता हूं । लो भाई लग गई पुलिस और एनडीआरएफ , बेचारो ने छः दिन तक उस लडकी को खोजने के लिए आकाश-पाताल एक किये हुए थे। अपने दिन रात के चैन को खूंटी पर टांग उस लडकी को ढूढ रहे थे। फायर ब्रिगेड के लोग जगह-जगह मल मूत्र से भरे बदबूदार नाले की खाक छान रहे थे लेकिन लडकी की लाश थी जो मिलने का नाम ही नही ले रही थी। पुलिस और फायर ब्रिगेड ने उस लडकी को खोजने मे कोई कसर नही रख छोडी थी। उधर सोशल मीडिया पर संघर्ष नामक चिरकुट साप्ताहिक लिखने वाले हेडिंग देकर ईडी का प्रकोप भाजपा और मोदी ने वरुण देव को धमकाया कैसे दूर होगी बारिश भाया को ट्रेंड करा दिया । इन सबके दो दिन बाद अचानक से चमत्कार हुआ,मुंबई के पास नाले मे बही लडकी लगभग 1800 किलोमीटर दूर बिहार में अपने चाचा के घर खेलते कुदते मिली और एक मजेदार बात यह है कि जब छः दिन पुलिस और फायर ब्रिगेड के लोग गटर की खाक छान रहे होते थे तो यह लडकी रोज सूबह-शाम अपनी माँ से बात करती थी।….है ना चमत्कार?  इस बीच पत्रकारों ने पुलिस और प्रशासन की पुंगी बजा रखी थी,पीछे ही पडे थे। अपने अखबार और चैनल में न जाने किन-किन बेरुखे शब्दो से पुलिस, प्रशासन और फायर ब्रिगेड को नवाज रहे थे। पुलिस और प्रशासन की नाक में दम कर दिया था। वैसे हकीकत से पत्रकार भी अंजान थे,सो वे अपना फर्ज निभा रहे थे,इसमें कोई गलती नही है लेकिन अब जब लडकी मिल गई है तो उसके माँ-बाप से सवाल करने कोई नही जा रहा है ?  लडकी के मिलने की खुशी से ज्यादा मुझे उन पुलिस और फायर ब्रिगेड वालों के लिए दुख और अफसोस हो रहा है। उस लडकी को खोजने के लिए बेचारे दिन रात एक कर दिये थे,कई रात वे ठीक से सोये नही। उस लडकी को खोजने बदबूदार गटर की खाक छानते रहे और इस बीच यहां माँ अपनी बेटी से रोज बात कर रही थी। जब सारी बात खूल गई तो अब माँ का कहना है कि लडकी अपने पिता की डांट से डर कर भाग गई थी। पुलिस व प्रशासन पर सवाल खडे करने वाले किसी पत्रकार ने यह पूछने की जहमत नही उठाई कि लडकी तो सामान लेने बाहर गई थी फिर यह बिना किसी की मदद के 1800 दुर अपने चाचा के घर कैसे पहुंच गई।  अचानक से यह सब नही हो सकता है। वह भी तब जब बिहार जाने के लिए दो घंटे की दूरी के पहले आसपास कोई रेलवे स्टेशन नही हो? मुझे लगता है पुलिस वालों को माँ-बाप की तबियत से कुटाई करते हुए सच्चाई का पता लगाना चाहिए। अन्यथा ऐसी कुछ घटनाये भविष्य में पुनः घट सकती है और खांमखा में पुलिस प्रशासन परेशान हो सकता है ? ऐसा भी हो सकता है कि ऐसी ही मिलती जुलती कोई घटना भविष्य में घटे और पुलिस, प्रशासन और फायर ब्रिगेड इस घटना के उदाहरण स्वरूप जोखिम लेने में कोताही बरत जायें और फिर जान माल का बडा नुकसान हो जाये। कल्पना कर के देखिए कि ऐसी कोई दुर्घटना सच में घटित होती और लडकी की लाश भी न मिल रही होती,उसका कुछ अता पता तक न लगता तो हम अब तक पुलिस और प्रशासन की नाक में दम कर चुके होते। उनका जीना हराम कर चुके होते। हमारा हाथ उनके काॅलर तक पहुंच चुका होता !

     ___ पंकज कुमार मिश्रा, पैनलिस्ट प्रिंड मीडिया , शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर।

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