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मतलब के यार

चंद्र प्रकाश जी अपने मित्र रमेश की पौत्री का रिश्ता करने के लिए भागम भाग कर रहे थे। लड़का उनकी जानकारी में था। दोनों पक्षों में उनकी उठ बैठ थी। रिश्ता करने के चक्कर में कई बार उन्हें यात्रा भी करनी पड़ी। अपने घर पर भी उनको बातें सुननी पड़ती थी कि बे फालतू के…

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आप और मैं

काश! आप पॉजिटिव एनर्जी से ड्राइव होते। तो आप आप न होते। मैं मैं न होती। शायद आज आप और मैं हम होते। काश! आप न्यूट्रल  होते। तो आप आप न होते। मैं मैं न होती । शायद आज हम हमराज होते। काश! आप  अपनों की करतूतों पर पर्दा न डालते। बल्कि मेरी ढाल बनते…

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मै नारी ही क्यों बनी ?

अपना जीवन देकर मैं, जीवन संगिनी तुम्हारी बनी हूँ अपना सब कुछ देकर तुम्हें, तुम्हारी अर्धांगिनी बनी हूँ तुम सभी को जैसे हो वैसे ही अपनाकर एक स्त्री बनी हूँ पुरे परिवार को भरपेट भोजन कराकर ही मै अन्नपूर्णा बनी हूँ मगर क्यों मुझे लगता है कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है मगर सच तो…

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बाल बहार, (कविता) दिवाली की छुट्टियां

दीपावली त्यौहार का,अनुपम अपना ढंग।  बच्चे मनाते हैं खुशी से, घरवालों के संग॥  घरवालों के संग, मजा तब दुगुना हो जाता।  होते जब मित्रों संग, फुलझड़ी स्वयं चलाता॥  रहा इंतजार महीनों से, अवसर कब आयेगा।  दिया रावण दहन संदेश, मास अगले आयेगा॥  हम दिन गिन रहे थे रोज,माह कार्तिक का आया।  तब अमावस्या से पूर्व,…

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एक दीया और जला देना

बहुत सारे दीया जलाएँ दीवाली में !घरों, मंदिरों, आँगन और चारदीवारी मे!!कतारे दीयो की, होगी सैकड़ो, हजार!रोशनी की होगी जीत और अंधेरों की हार!!रोशनी से जगमगा उठेगा चहुंओर !रहेगा न अंधेरा, किसी भी ओर!!मनाएंगे खुशियाँ सब मिलकर!दुख,कष्ट ना रहे किसी के उपर!! सब जगहों मे रोशनी ही फैले!दूर रहे अंधेरा,हो उजाले ही उजाले !!लेकिन चुन्नू…

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पति – पत्नी

 सुधांशु बहुत खुश था , बिज़नेस में फायदा हुआ था , और अपनी शादी की तीसवीं वर्षगांठ पर, पत्नी आभा को बढ़िया सा उपहार देना चाहता था, उसने ऑफिस से फ़ोन किया , “ सुनो आज शाम को खाना बाहर खाएंगे। ” “ क्यों ? “ “ क्यों क्या , बहुत दिन हो गए हैं…

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डॉ. मनोज कुमार “मन” की तीन कविताएँ

कवि तुम मुझे जगा देना अंसतोष बहुत था उसके मन में, सो, वो रो दिया। जमा हुई भीड़ में उसने, किसी अपने को खो दिया।। अब तो कोई भी बरगला लेता है, मासूमों को राम के नाम पर। देखो गौर से अब जमाने में, वश नहीं रहा किसी का काम पर।। देखो आज फिर आ…

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कहानी : विश्वास

राजीव  करीब  काम में फस कर दो साल से घर नहीं आ पा रहा था । सारी सुविधाओं के बीच भी रेनू विरह  की वेदना झेल रही थी। उसके ऊपर राह चलते आने -जाने वाले लोगों का ताना मानो हर दिन एक नई ही कहानी सुनने को मिल जाती, लेकिन वह अपना दर्द कभी राजीव…

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नवजीवन खुशियों की ओर

प्रीति आठ महीने के गर्भ से थी। यह उसका तीसरा बच्चा था। पहले से ही उसकी दो बेटियाँ थी। जिन्हें वह खूब लाड प्यार करती थी। उसकी इच्छा नहीं थी कि वह और संतान पैदा करें। लेकिन सास की पोते का मुंँह देखने की लालसा से उसे यह करना पड़ा। प्रीति के पति आयुष भी…

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गरीबो का ये कैसा जालिम कहर है ।

गरीबों से पूछो क्या होती गरीबी है। गरीबी की हालत उन्हीं को पता है। जिसे दर – दर की ठोकर खिलाती गरीबी गरीबी तो फांसी से बढ़कर सजा है । मालिक गरीबी को काहे रचा है। गरीबों के तन को देखाती गरीबी कितना बचा है वजन को देखाती गरीबी खाने को कोई चारा नहीं है।…

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