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भारत में उतर आए भगवान

भारत में उतर आए भगवान मगर नहीं समझा इंसान सफेद सफेद कपड़ों को पहने ऊपर नीली पहनी पोशाक क्यों मुंह पर लगाया मास्क अरे इतना तो तू जान। जमीं पर उतर आए भगवान। सारे रोगों से तुझे बचाएं लगा दांव पर अपनी जान जमीं पर उतर आए भगवान। पूजा इनकी कर ले ह्रदय में रख…

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अनुराधा प्रकाशन का पाँच साझा संकलन,

डॉक्टर सुधीर सिंह अनुराधा प्रकाशन का  पाँच साझा संकलन, राष्ट्रभाषा हिंदी हेतु सचमुच अमृत-कलश है. जिसके लोकार्पण के अवसर पर आयोजित, सजाया हुआ इंद्रधनुषी साहित्य-महोत्सव है. समर्पित साहित्यकारों  ने  हिंदी-साहित्य को, अपनी लेखनी से तहेदिल से खूब  संवारा है. लोगों ने सुना और सुनाया बहुत ही  चाव से, माँ वीणा वादिनी की ही  सब महती…

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स्वछंद लेखन

हम तो ऐसा ही लिखते हैं दलील ये अच्छे दिखते हैं मौलिकता का हो विश्वास नयी शैली का शिलान्यास खींच कर एक नई लकीर लिख डाले वो नई तहरीर तय नियम में ला  बदलाव दूर ही हो बोझिल ठहराव हो सहज ग्राह्य तथा सरल मधु सा मीठा, ना हो गरल नव विधा ही हो अतिप्रिय…

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शिक्षा वही जो राष्ट्र का गौरव बढ़ाए

शिक्षा ही तो इंसान को संस्कार दे चरित्रवान बना जीवन के पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार है,तो शिक्षक ही कर्णधार।शिक्षक ऐसा चाहिये,जैसे हो माटी कुम्हार,ठोक ठोक कर घट गढ़े, करा दे बेड़ा पार। बच्चे की पहली गुरु माँ पिता दिखाये स्कूल की  राह!शिक्षक उसे इन्सान बनाये,कमियों को…

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मातृभाषा सीखने से भविष्य की पीढ़ियों को अपने सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के साथ संबंध बनाने में मदद मिलेगी : सत्यवान सौरभ

(मातृभाषा में पढाई  वैचारिक समझ के आधार पर एक घरेलू  प्रणाली के साथ सीखने और परीक्षा-आधारित शिक्षा की रट विधि को बदलने में मदद करेगा।  जिसका उद्देश्य छात्र के अपनी भाषा में ज्ञानात्मक कौशल को सुधारना है, ताकि वह अन्य भाषाओँ के बोझ तले न दब सके और चाव से अपनी प्राथमिक शिक्षा को पूर्ण…

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कविता – आ देख

तेरी याद में मैं दिन-रात भुलाए बैठा हूं आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं। वह जो तेरी कमी थी मेरे सीने में, उसकी मजार बनाए बैठा हूं, आ देख मैं फिर मुस्कुराए बैठा हूं। जमाने की परवाह ना मुझे कल थी ना आज है मुझे तो लग रहा था तू हर हाल में मेरे…

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भाषा तभी बड़ी बनती है

अज्ञानी था मानव आदिम सीखा प्रकृति से जीवन जीना रहना गाना पशु पक्षी सम उनकी भाषा में बतियाना जैसी हुई पहचान स्वरों की विविध प्राणियों तरु पत्तों की गगन गरज की,वायु सरण की सरित प्रवाह,जल थल औ नभ की वैसी ही ध्वनियों की रचना अभिव्यक्ति के लिए किया फिर अंतर्ध्वनि विभिन्न भावों की उसी रूप…

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मैं “कंगना ” हूं सुन लो लोगों,

(सुनीता जायसवाल फैजाबाद उत्तर प्रदेश) अबला समझने की भूल ना करनाआऊंगी कलाई में “हथकड़ी” बनकरजेवर समझने की भूल ना करना! झुक गई हूं मैं जरा सा क्योंकि,मैं अदब की परवरिश हूँमेरी झुकी पीठ को तुम ,पायदान समझने की भूल ना करना! गिरेबान खाली नहीं तुम्हारा ,दुनिया भर की करतूतों से ,मेरे पाक दामन पर तुम,उंगली…

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हिन्दी दिवस एक दिन पर हिन्दी की बात हर दिन

हिन्दी भारत की मातृभाषा हैं।यह सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओ में से एक हैं।एक ऐसी भाषा जिसे हम जैसे लिखते हैं वैसे ही बोलते भी हैं।हिन्दी शब्द का वास्तविक अर्थ “सिन्धु नदी की भूमि” हैं।1918 ईस्वी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु अपने विचार रखे…

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स्त्री विमर्श और महिलायें

स्त्री विमर्श एक ऐसा मुद्दा है जो आज हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग अहमियत रखने के साथ साथ सामाजिक स्थितियों और मान्यताओं को भी बखूबी प्रभावित कर रहा है। आज स्त्री और  पुरुष दोनों ही साहित्यकारों द्वारा स्त्री विमर्श को उकेरने वाले इनके लेख या इनकी कहानियां समाज में विचारों के मंथन के लिए…

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