कविता और कहानी
अजूबा प्रजातंत्र है,कुहरन भरी आजादी है
ठोकर खाने पर भी संभलता नहीं बेईमान, कुछ दौलत के लिए वह बेच देता है ईमान. बेइज्जती का उसको कुछ भी परवाह नहीं, धन-पद के पीछे-पीछे भागता है बेलगाम. समाज में ईमानदार आदमी का अभाव है, शुभ सलाह मानने को कोई नहीं तैयार है. गरीबी व बेरोजगारी समाज में बरकरार है. खुलेआमअट्टहास यहां करता व्यभिचार…
अटल जी को समर्पित कविता
निकल पड़ा वो शिखर यात्रा पर पथरीले पथ पर चलते-चलते थका नहीं, न हारा ही न वेवश ही, न बेचारा ही पांव बढाते पल-पल बढते अंधियारों को पार किया, यू मचलते निकल पड़ा———–+—+ सारा गगन समेटा मन में सारे पीड़ाओं को तन में ब्रह्माण्ड का चमकता तारा हंसता रहा गलियारों में, बैठे और टहलते…
मैयत के मेरे फूल खिल उठे
मैयत के मेरे फूल खिल उठे हैं अब थोड़ा पहले आते आधा जल चुके हैं अब तुमने कहा था कि जा रहे हो अपने रास्ते तो हम भी अपने रास्ते निकल चुके हैं अब कई लम्हे पत्थरो से बात करता रहा मगर कई पत्थर पिघल चुके हैं अब आज फिर मेरी उनसे बात हुई लगा…
नववर्ष की बधाई
v नये नये उमंग हैं नये नये तरंग नववर्ष की नवकिरण में हर तरफ लाये उमंग ही उमंग। अम्बर से आई किरण लेकर प्रकाश की लालिमा पीछे छुट गया काली रात और उसकी काली कलिमा। बीत गये एक वर्ष खट्टे मीठे अनुभव लाएगी आशा का संदेश ऐसा सोचे हर मानव। बनी रहे आचार विचार ऐसा…
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
अलविदा दिसम्बर तेरे लिए , स्वागत है अब जनवरी का । कुछ खट्टा मीठा सा अनुभव , तुम से मिल गया जिंदगी का। चेहरे कुछ दिखते नए नए, कुछ अपने लगते बिछड़ गए । यह मंच अजनबी सा लगता , कुछ साथ चले कुछ पिछड़ गये । स्वीकार हृदय से अब कर लो , शाश्वत…
नेता जी की जय-जयकार
पुष्प रहे खूब पाँव पखार नेता जी की जय-जयकार …….. तुम हो श्रेष्ठ,सकल गुणवान सेवा, श्रम, अर्पण पहचान त्याग, तपश्चर्या की मूरत और कहाँ कोई है सूरत अद्भुत,अपरम्पार कहानी मिलती कहीं न एक निशानी करूँ नमन मैं बारम्बार नेता जी की जय-जयकार… …… विविध रूप धर करते…
खुद से खुद के सँवाद की लिपि को गढ़ा जाए
नववर्ष की ढेरों शुभकामनाओं के साथ एक नया प्रण लिखें समूची मानवता के उत्थान हेतु बिताया हर एक क्षण लिखें —- समय का महाकुँभ अपनी गति से निर्बाध चलता रहता है और हर साल अपने साथ अनेक खट्टी मीठी सँवेदनाएँ और जीवन रूपी महासागर में आए मानसिक प्रदूषण की लहरों का कुछ कचरा भी अपने…
मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ गर्व करूँ, या खुद से ही डर जाऊँ मैं। डर के साये में मैं जीती, क्या खुद ही मर जाऊँ मैं।। बेटी हो जाए घर में, उसे बोझ समझ के पाला है। खुशियाँ जब आती घर में, हो जाए एक लाला है।। क्या किस्मत पाई नारी,बचपन से ही हीन हुई। देख के…