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बिहार चुनाव: फिर आ गए वे सत्ता में कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

चलो बिहार के चुनाव भी निपट गए । किसी से कुछ होना जाना है नहीं फालतू में लम्बा कुरता पहनकर भाषण देते रहते हैं । राजनीति तो भाजपा से सीखो ‘‘रेत से भी तेल’’ निकाल कर सारे जहां को बता देती है कि ‘‘भैया देखा राजनीति करना इसे कहते हैं’’ । सारे टी.व्ही चैनल चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि नीतिश कुमार का तो पत्ता साफ हो गया पर भाजपा कह रही थी मुख्यमंत्र.ी बनेगा तो नीतिश कुमार ही बनेगा । इतना लबालब आत्मविश्वास कि एक्जिट पोल में हार जाने के बाद भी बांटने के लिए टनों लड्डू रातभर बनावाये जाते रहे । रिजल्अ आ गए वे ही रिजल्ट जिन्हें आना चाहिये था । ‘‘वोटकटवा’’ ने वोटें काटीं पर वे वोटें नीतिश कुमार के हिस्से की गई, एक वोट कटवा ने भी वोटें काटी वे वोटें कांग्रेस की गई और थोड़ी बहुत आरजेडी की भी बाकी बची रही भाजपा तो उसने अपनी गिनती को बढ़ा लिया । सबसे बड़ी पार्टी होने में एक कम । बड़े भाई के कपड़े छोटे भाई को फिट आने लगें तो समझ लो कि छोटा भाई अब बड़े भाई से भी बड़ा हो गया है । भाजपा चुनाव के पहिले तक छोटे भाई की भूमिका में थी अब बड़े भाई की भूमिका में आ गई । बड़ा भाई बनने के बाद भी कह दिया जाओ कुर्सी तुमको ही दी तो नीतिश कुमार फिर से धुले-धुलाये कुरता पायजामा पहनकर शपथ लेते दिखाई दे गए । अब कुर्सी पर तुम पर सत्ता पर हम का खेल चलेगा । हम जो कहेगें तुम वहीं करना, जब तक करते रहोगे तब तक कुर्सी पर बैठे रहोगे नहीं तो फिर सत्ता भी हमारी और कुर्सी भी हमारी । आंकड़े बढ़ाना तो हम जानते ही हैं बांये हाथ का खेल है ‘‘कितने कम पड़ रहे हैं…..अच्छा चलो तुम कपड़े पहनो तब तक इंतजाम हो जायेगा । बेचारे तेजस्वी यादव उनको तो जबरदस्ती दिन में सपने दिखा दिए । खुली आंखों के सपने एक दिन भी नहीं चले धड़ाम से टूट गए आवाज के साथ टूट गए ‘‘काहे का उक्जिट पोल केवल सपने दिखाने वाला’’ । लोगों ने चुटकी लेना शुरू कर दिया कि एक्ज्टि पोल ‘‘होम टू वर्क’’ की स्टाइल में किया गया होगा । केवल सुनकर ताकि कहने को हो जाए कि हमने भी एक्जिटपोल के खेल में भाग लिया । सारे टी.व्ही. चैनल चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि एनडीए तो गई पर एनडीए ने बाजी मार ली । नीतिश कुमार के चेहरे पर रौनक आ गई भाजपा के चेहरे पर तो रौनक गई ही नहीं थी । अब कहां……पश्चिम बंगाल चलो डेरा उठाओ ……वहां मजमा जमाते हैं । मध्यप्रदेश में भी उप चुनाव हुए ऐसे उपचुनाव जो सत्त परिवर्तन तक करा सकते थे । सत्ता परिवर्तन के चक्कर में विधायकों को स्तीफा देना पड़ा और उनके लिए ही चुनाव हुए । सारे लोग कह रहे थे कि भाजपा को कठिनाई जायेगी । दलबदल चुके नेताओं को जबाब देना था कि उन्होने दल क्यों बदला ….ऐसा लग रहा था कि उनके पास कोई जबाबा होगा ही नहीं पर जबाबा था भी और उन्होने दिया भी …..ऐसा नहीं बोला कि ‘‘मेरा मन हुआ तो दल बदल लिया’’ पर जो कुछ भी कहा होगा उससे मतदाता संतुष्ट जरूर हो गया होगा तभी तो उसने उन्हें फिर से जिता दिया । वैसे दलबदलने वाले विधायक यह समझ गए कि जनता को संतुष्ट केसे करना है अब वे इस प्रयोग को कभी भी दोहरा सकते हैं । यही तो दिक्कत है इसलिए ही तो पहलवानी में कहा जाता है कि पहलवानों का गुरू एक दांव हमेशा बचाकर रखता है । हो सकता है कि भाजपा ने भी सारा कुछ सिखा देने के बाद कुछ तो गोपनीय रखा ही होगा ताकि वह कभी काम आ जाए । कांगेेस ने तो बेहतर रणनीति बनाई थी इन उपचुनावों के लिए । जो थोड़े बहुत नेता कांग्रेस में बचे हैं उन्होने दिन रात मेहनत भी की । इसी कारण से ही तो वे दम भर रहे थे कि उपचुनावों में उन्हें सफलता मिलने जा रही है पर जब भाजपा ने अपने दांव चलने प्रारंभ किए तो कांग्रेस की सारी योजनायें बिखर गई । वे दो तरफ से मार खा रहे थे एक तो वे विधायक जो फिलहाल उनके साथ हैं उन्हें बचाने का प्रयास किया जा रहा था और दूसरे वो जो कभी उनके साथ थे पर अब नहीं वे भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ रहे थे तो उनको हराने की योजना बनाई जा रही थी जो ताश के पत्तों की तरह बिखर रही थी । वे न तो अपने विधायकों को रोक पाए और न नये विधायकों को  चुनाव जिताकर ला पाए । वैसे इसमें प्रदेश के नेताओं का कोई दोष है भी नहीं दरअसल कांग्रेस भले ही जमीन से उठकर बड़ी पार्टी बनी हो पर अब वह केवल हवा में तैरती पार्टी होकर रह गई है । उसके नीचे की जमीन खिसक चुकी है और जब भी हवा तेज चलती है तो हवा की स्थिरता भी बहक जाती है वे हवा में घूमते हुए कुल्टारी मारने लगते हैं । उनका हाईकमान मौन रहकर सारा नजारा देख रहा है उसके पास करने को कुछ भी नहीं है । भाजपा की आंधी थमे तो वे प्रयास करें पर वह आंधी थम ही नहीं रही है। कांग्रेस का हाईकमान न होने की स्थिति तक पहुंच चुका है । वे जब तक अपने होने को प्रमाणित करेगें तब तक उनको उड़ाने वाली हवा भी खिसक चुकी होगी जैसे जमीन खिसक गई है । पर अभी किसी को कोई चिन्ता नहीं हैं जिसे कुर्सी चाहिये वो मेहनत कर ले और कुर्सी मिल जाए तो बैठ जाए उन्हें कुछलेना देना नहीं है । लगभग यही स्थिति गुजरात में रही । पिछलीबार जब गुजरात में चुनाव हुए थे तब ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस सत्ता में आ ही जायेगी पर नहीं आ पाई । सत्ता में नही आई तो उसके विधायकों ने भी खिसकना शुरू कर दिया । जो विधायक गए वे तो दूसरी पार्टी से चुनाव लड़कर फिर विधायक बन गए पर कांग्रेस के विधायकों की संख्या कम होती चली गई । अब इतनी कम हो गई है कि वे सत्ता का ख्वाब भी नहीं देख सकते ।

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