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कुर्सी की लालसा में सियासी हलचल

राजनीतिक सफरनामा                      (कुशलेन्द्र श्रीवास्तव)

देश के कई राज्यों में हलचल है । यह हलचल कुर्सी के लिए है । समाजसेवा का लबादा ओढ़कर सत्ता के रसगुल्ले खाने की लालच से ग्रसित कतिपय लोगों ने लोकतंत्र को मजाक बनाकर रख दिया है । पश्चिम बंगाल में मुकुन्द राय ने टीएमसी के सत्ता पर काबिज होते ही पाला बदल लिया और फिर टीएमसी में वापिस आ गए । टीएमसी के वापिस सत्ता में आने से कई लोगों के सपने बिखरे है ,खासकर वे जिन्होने टीएमसी को केवल सलिए छोड़ दिया था कि अब वे भाजपा के बगीचे के खिलने वाले फूल बनेगंें । भरसक टीएमसी को कोसा, जाने कहां कहां के आरोप लगाए और भर उजाले में सपने देखने लगे । पर उनके सपने बिखर गए । ‘‘दो मई, ममता गई’’ के नारे लगाने वालों के रेत के महल ढह गया । अब क्या करें ? तो फिर ममता जी के दरवाजे के सामने ‘‘भिक्षाम देहि माता’’ की गुहार लगाकर उदास चेहरा लिए लाइन में खड़े हो गए । मुकुल राॅय तो टीएमसी के संस्थापक नेता थे पर लालच या भय से चले गए अब घर लौट आए । राजनीति में ‘‘लौटकर बुद्धू, घर को आया’’ नहीं कहा जाता इसे घर वापिसी कहा जाता है । चलो कुछ भी कह कर अपनी नाक बचा लो पर इतना तो जनता भी समझने लगी है कि सफेद रसगुल्ला का स्वाद लेने के लिए उसका मीठा होना जरूरी होता है । कांग्रेस के एक नेता जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए । बहुत दिनों से गुमनाम जिन्दगी बिता रहे थे । कांग्रेस में पूछ-परख हो नहीं रही थी और भविष्य में भी कोई चांस नहीं थे तो भाजपा में चले गए । कांग्रेस का हाईकमान जली रस्सी हाथ में लिए अभी भी अकड़ के साथ खड़ा है । वह न तो अपने ही नेताओं से मिलता है और न ही उनकी सुनता है । इसके बाद भी जिसे कांग्रेस में रहना है तो रहा नहीं तो चले जाओ जहां जाना है । यही तो कारण है कि कांग्रेस बिखरती जा रही है । हाईकमान निश्चिंत बना बैठा है किसी चमत्कार की आस में । इधर राजस्थान में सचिन पायलट भी धौंस जमा रहे हैं । सचिन पायलट की परेशानी यह है कि उनके पास इतने समर्थक विधायक नहीं हैं कि वे कांग्रेस की गहलोत सरकार को टीक वैसे ही गिरा सकें जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया था । सचिन पायलट अपनी अपरिपक्वता के चलते एक दांव खेल कर देख चुके हैं । अशोक गहलोत की तो पूरी उम्र ही शतरंज खेलते बीत गई सो उन्हें अपनी गोटियां चलनी आती हैं । उन्होने मात नहीं खाई और बच गए । बच गए तो सचिन पायलट लूप लाइन में चले गए । अब वे एक बार फिर छटपटाते दिखाई देने लगे हैं । सो एक बार फिर दबाब बनाकर देख रहे हैं । वैसे इतना तो तय है कि सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ने की गल्ती नहीं करेगें । राजस्थान में अशोक गहलोत के बाद कांग्रेस में कोई बड़ा नेता है ही नहीं जाहिर है कि देर सबेर सचिन पायलट ही मुख्य भूमिका में रहेगें केवल उन्हें इंतजार ही करना है । पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह भी राजनीतिक शतरंज के माहिर खिलाड़ी हैं । पंजाब में उन्होने अपने दम पर कांग्रेस की सरकार बनाई है । इस बात को वे अपनी हरकतों से कांग्रेस के हाईकमान को समझा देते हैं कि उन्हें छेड़ने की गल्ती मत कर देना । यही कारण है कि नवजोत सिंह सिद्धू की चाल फेल हो गई । दरअसल नवजोत सिंह सिद्धू भी बगैर कुर्सी के तड़फड़ा रहे हैं । वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में केवल इसलिए शामिल हुए थे कि यहां उन्हें नम्बर दो की पोजीशन तो मिल ही जायेगी । पंजाब में कांग्रेस में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के बाद कोई बढ़ा नेता नहीं है, ऐसे में सिद्धू जी का दावा तो बनता है पर वे स्वंय अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारते रहे हैं । राजनीति में जो धैर्य के साथ प्रतीक्षा करता है वह ही सत्ता को प्राप्त करता है जो हड़बड़ी दिखाता है उसे नुकसान ही उठाना पड़ता है । ज्योतिरादित्य सिंधिया भी यदि कांग्रेस में रहकर सत्ता पाने का प्रयास करते तो उनका वर्तमान और भविष्य दोनों सुरक्षित रहता पर वे जल्दबाजी कर गए नतीजा न तो उनका वर्तमान बेहतर दिखाई दे रहा है और न ही भविष्य । भाजपा उगता सूरज है तो जाहिर है कि उसके पास बड़े-बड़े नेताओं की लम्बी फौज है, इस फौज में अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं हैं । सिंधिया जी तो शुरू ये ही कांग्रेस में बड़े नेता रहे हैं इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं थी । सिद्धू जी ने पंजाब के मुख्यमंत्री को हिलाने की कोशिश की पर वे नहीं हिल पाए । वे बहुत ताकतवर हैं और दूर दृष्टि भी रखते हैं । वे अपने हाथ में सारे पांसे रखे रहते हैं इसलिए उनकी चाल कोई समझ ही नहीं पाता । सिद्धू जी असफल हो गए । कांग्रेस हाईकमान आने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कोई गल्ती करना भी नहीं चाहता इसलिए मामले को निपटाने की कोशिश कर रहा है । भाजपा भी ऐसी ही कोशिश उत्तर प्रदेश में करती दिखाई दे रही है । धीरे-धीरे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतने मजबूत हो गए कि उन्हें हिला पाना तो दूर उनके सामने गुस्से भरी निगाहों से देखना भी भारी पड़ सकता है । बेचारे उत्तरा खंड के मुख्यमत्री त्रिवेन्द्र रावत को तो रातो रात बदल दिया गया था पर उत्तर प्रदेश में ऐसा करना संभव नहीं था । इसके लिए रणनीति बनाई गई । बताया जाता है कि भाजपा के ड़े-बड़े नेताओं के साथ ही साथ आरएसएस के नेता भी उत्तरप्रदेश का दौरा कर आए और उन विधायकों से मिल आए जिनके बारे में माना जाता है कि वे असंतुष्ट हैं । मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल में किसी को मनाने की कोई कोशिश कभी नहीं की । वर्ष 2017 में जब उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था तब से ही भाजपा की केन्द्रीय नेतृत्व ने योगी के कद को बढ़ करने का प्रयास शुरू कर दिया था । योगी भाजपा के हिन्दुत्व वाली छवि के ब्रांड एम्बेसडकर हैं । पूरे देश में वे मुख्य स्टारक के रूप में दौरे करते रहे हैं ताकि सम्पूर्ण देश में भाजपा की राष्ट्रवादी और हिन्दूवादी छवि को बल मिले । इन दौरों ने योगी आदित्यनाथ को बड़े नेताओं में शुमार तो कर ही लिया साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा को भी मजबूत किया । सच तो यह भी है कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश में कड़क निर्णय लेकर वहां की जनता में भी अपनी अलग छवि बनाई है । अपराध मुक्त उत्तरप्रदेश के नारे के चलते कई अपराधियों का इनकाउंटर भी हुआ और कई को पकड़कर जेलों में भी ठूंसा गया । विकास के कार्यो में भी गति आई । अयोध्या में हर साल दीपावली के समय होने वाले कर्यक्रमों ने उन्हें हिन्दुओं के बीच छवि बनाने का अवसर भी मिला । अब योगीअािदत्यनाथ मजबूत नेता हैं । ऐसे में उन्हें हटा पाना भाजपा हाईकमान के बस की बात नहीं है । भाजपा की मुश्किल यह है कि आने वाले दिनों में उत्तरप्रदेश में चुनाव होना हैं । उत्तरप्रदेश का चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण होता है कि इससे बनने वाला वातावरण लोकसभा चुनाव की दिशा को लगभग तय करता है । भाजपा ज्यादातर राज्यें में यह प्रयोग करती है कि वहां के मुख्यमंत्री को ऐन चुनाव के पूर्व बदलकर नया माहौल बनाती है । उत्तर प्रदेश भी हो सकता है कि वह ऐसा ही करना चाहती हो । दूसरा उसे यह भी भय हो सकता है कि यदि योगीजी अपने बलबूते पर चुनाव लड़े और वे जीत भी गए तो उनका कद और बड़ा हो जायेगा । वैसे भी ‘‘मोदी और योगी’’ का नारा एक समय बहुत चला । प्रधानमंत्री मोदी के साथ योगी का नाम जुड़ना उनके बढ़ते कद का ही प्रतीक है । पर अब तो तय है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव योगी जी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा । इधर मध्यप्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है । प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के आसपास विद्रोह की बातें घूम रहीं हैं । भाजपा के कई बड़े नेता उनसे मुलाकात कर चुके हैं इनमें आरएसएस से जुड़े नेता भी शामिल हैं । नरोत्तम मिश्रा उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होने प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिरवाने मं अहम भूमिका निभाई थी । नरोत्तम मिश्रा का विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर से सटा हुआ है जहां के ज्योदिरादित्य सिंधिया हैं । जाहिर है कि नरोत्तम मिश्रा ने अपने गुप्त संबंधों के चलते उन्हें अपने पक्ष में करने का बीड़ा उठाया और सफल भी हुए । उस समय भी यह सुगबुगाहट थी कि भाजपा हाईकमान षिवराजसिंह चैहान की बबजाए नरोत्तम मिश्रा को मुख्यमंत्री बना सकता है पर तब ऐसा नहीं हुआ । पर इतना अवश्य हुआ कि नरोत्तम मिश्रा को प्रदेश की राजनीति में नम्बर दो का स्थान मिल गया जिस पर एक समय गोपाल भार्गव थे क्योंकि वे कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते समय विपक्ष के नेता थे और प्रदेश की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती थी । शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरोत्तम मिश्रा मुख्य भूमिका में आ गए । आज वे प्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं के बीच मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार हैं ।

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