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गहन मंथन और अध्ययन के बाद का सत्य !

यदि कुछ ऐतिहासिक प्रसंगों पर नजर डाले तो पुरातन समय  में बहुत सारी घटनाएं ऐसी है जिसके विषय में चिंतन , मंथन और गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है । जिसके बाद ये  पता लगता  कि काश यह ना होता तो इतिहास दूसरा होता । ऐसे ही कुछ प्रमुख घटनाओं ने हमारी भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म का कठोर परीक्षा लिया है । अधिक सहनशीलता के चक्कर में अपने वास्तविक जड़ों पर हमने स्वयं कुठाराघात किया जिसका परिणाम है कि आज कश्मीर में एक निर्दोष को महज इसलिए मार दिया  जाता है कि वह हिंदू कोख से पैदा हुई । मजहबी  धर्म के कट्टर शायद यह भूल गए हैं कि भारत अब सहने की क्षमता का त्याग करने वाला है  और जिस दिन मानसिक उबाल अपने सर्वोत्तम पायदान पर होगा उस दिन धार्मिक कट्टरता में हिंदू धर्म से बड़ा कोई धर्म ना होगा ना  कहीं  ठहरेगा । आपको इतिहास जानकर आश्चर्य होगा की आताताईयों ने भारतीय सहनशीलता का समय-समय पर गंभीर और उन्मादी परीक्षा लिया  है । कुछ घटनाएं जिनका जिक्र मैं अपने इस एडिटोरियल लेख में कर रहा उसको पढ़ने के बाद निश्चित ही आप सोचेंगे अगर यह  ना हुआ  होता तो आज  इतिहास कुछ दूसरा होता ।

                     जैसे अगर पोरस ने सिकंदर को भागने देने के बजाए , उसे मार दिया होता  तो आज इतिहास दूसरा होता। अगर जयचंद ने मुहम्मद गोरी का साथ ना दिया होता तो, आज भारत का इतिहास दूसरा होता । अगर पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को माफ न कर के पहले ही युद्ध में मार दिया होता तो  इतिहास दूसरा होता । अगर राणा सांगा ने युद्ध में बाबर को मार दिया होता  तो, भी इतिहास दूसरा होता।अगर  सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजों से युद्ध जीत लिया होता तो, भी इतिहास दूसरा होता। इतना ही क्यों यदि देश के बंटवारे के बाद गांधी जी ने समझौते के अनुसार सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेज दिया होता और वहां से सारे हिन्दुओं को भारत बुला लिया होते तो ओवैसी से पूछ लो इतिहास दूसरा होता । तो  आज ये जो  मुसीबत कश्मीर में हुई कभी  नहीं हुई होती ।आजादी के बाद अगर नेहरू की जगह पटेल प्रधानमंत्री बने होते,तो भी इतिहास दूसरा होता और मानसिक रोगी भाई बहनों को हम नहीं झेलते ।अगर संविधान में सिर्फ एक लाइन सभी गरीबों को आर्थिक आरक्षण लिख दिया होता अम्बेडकर ने तो भी आज इतिहास दूसरा होता । आरक्षण रूपी शैतान समाप्त होता और  सारी मुसीबतें ही समाप्त हो गई होतीं।लेकिन, दुर्भाग्य से ये सब कुछ नहीं हो सका और, उन सबका परिणाम हमारे सामने है कि कुछ भेड़िए राजनीतिक कौवे हमारे सिर पर चढ़ के नाच रहे हैं । हम इतिहास को बदल तो नहीं सकते हैं और ना ही किसी टाइम मशीन में जाकर उस परिस्थिति को बदल सकते हैं ,लेकिन, हाँ… हम अपने इतिहास में की गई गलतियों/लापरवाहियों से सीख सकते हैं कि उस समय की छोटी-छोटी गलतियों की आज तक कितनी बड़ी कीमत चुका रहे है । आज हमारे इतिहास को रिव्यु समझने का समय है । अब वर्तमान जब इतिहास बने तो उसमे ये शब्द लगे ही ना कि काश कि ऐसा होता तो अच्छा होता ।आज प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति आवास में इफ्तार की जगह कन्या पूजन हो रहा है जो हमारी संस्कृति है ,परम्परा है ,और, नवरात्र के उपवास रखे जा रहे हैं ना कि बकरीद की नमाज अदा हो रही क्योंकि नमाज पाकिस्तान के हिस्से में दे दी गई थी ।स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार हज सब्सिडी बन्द कर दी गई है ।कश्मीर और अयोध्या को आक्रांताओं लुटेरों वापस पा लिया गया है । असम में अवैध  मदरसे बन्द करने के आदेश पारित हो चुका हैं । ये ठीक वैसा ही है जब हेमू ,अकबर से युद्ध में काफी भारी पड़ रहा है , अगर यह युद्ध जारी रहा तो निश्चय ही जीत हेमू की ही होगी और मुगलिया सल्तनत के पैर उखड़ जाएंगे । लेकिन, इन सबके बीच सिर्फ एक ही डर लग रहा है कि कहीं अपनों के ही उतावलेपन के कारण हेमू ( हिंदुत्व)  के आंख में तीर ना लग जाये ?यह कश्मीर मुद्दे का विश्लेषण है, जिसमें किसी धर्म या मजहब को ठेस पहुंचाने का कोई मंशा नहीं । लेख को अन्य इसलामिक देशों और हिंदुस्तान के सापेक्ष पढ़ा जाए । हमारे देश में रह रहे सभी लोग या तो हिन्दू है या फिर हिन्दुस्तानी । जय हिन्द ।

          — पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।

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