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चुनावी समीकरणों में उलझा मतदाता

                                                                                                   कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

         पतझड़ में तो पेड़ों से पत्ते झरते हैं ताकि नए पत्ते आ सकें । ये नए पत्ते नया स्वरूप् देते हैं पेड़ों को भी और वातावरण को भी । पर सम्पूर्ण भारत में नैतिक मूल्यों के पतन का दौर चल रहा है । जिन बच्चों के हाथों में किताब होना चाहिए, जिनकी आखों के आने वाली परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपना भविष्य बना लेने के सपने होने चाहिए वे बच्चे हिजाब के फेर में पड़ चुके हैं । हमारे स्कूल तो हमें अनुशासन मंे रहना सिखलाते हैं, हमारे स्कूल तो हमें नैतिक मूल्यों की अवधारणा की इबारत सिखाते हैं, हमारे स्कूल तो हमें स्वालंबन की दिशा सिखाते हैं फिर हमारे बच्चे दिशा से भटक क्यों रहे हैं । चिन्तन तो करना होगा । हिजाब हो या केसरिया साफा ये स्कूल के लिए तो हो ही नहीं सकते । स्कूल के लिए तो हाथों में किताब होती हे, स्कूल के लिए तो सुनहरे भविष्य की रूपरेखा होती है । ये सारा कुछ तो स्कूल के बाद के पायदान पर आता है । इस जरा सी बात को समझते तो शायद सभी हैं पर इन्हें अपने आचरण में उतारने मं हिचकते हैं । क्या बच्चों के माता-पिता को दखल नहीं देना चाहिए कि वे बच्चों से कहें कि तुम केवल पढ़ाई करो ताकि तुम्हारा भविष्य संवर जाए । बच्चों के भविष्य के साथ ही तो माता-पिता का भविष्य भी जुड़ा होता है । इस माामलंे को ठंडा होना चाहिए । देश यूं भी बहुत सारी समस्याओं से जूझ रहा है हम दन समस्याओं को विराम नहीं दे सकते । युवा चिन्तन करें कि उन्हें नौकरी कैसे मिलेगी और यदि नौकरी नहीं भी मिल पाती तो वे कैसे अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं । हमें छात्रों की, हमें युवाओं की सोच की दिशा को बदलना होगा और यह काम एक अभिभावक के रूप में हम को ही करना होगा । हम यदि अपने बच्चों को समझायेगें तो बच्चे समझेगें भी और अपने हाथों में किताब लेकर पढ़ने बैठ जायेगें । सारे देश के पालकों को इसके लिए आगे आना चाहिए । ऐसी वैमनस्यता फेलाकर देश को बदनाम करने की बजाए अपनी पढ़ाई से सारे देश में और सारे विश्व में नाम करना बेहतर होगा ।  पूरा विश्व, विश्व युद्ध की कगार पर खड़ा है । रूस और अमेरिका एक दूसरे पर बंदूक ताने खड़ी हैं । उनकी सोच में भी यह शामिल नहीं है कि उनकी हठधर्मिता सारे विश्व को तबाही  की कगार पर लाकर खड़ा कर देगी । युद्ध तो वैसे भी खतरनाक ही होते हैुं उस पर युद्ध यदि ऐसे दो देशों के बीच हो जिनके पास खतरनाक हथियार हैं, जिनके पास परमाणु शक्तियां हैं तो यह परिदृश्य को अधिक भयावह बना देता है । विश्व के सारे देश मौन रहकर भविष्य में होने वाली घटनाओं को समझने की कोशिश कर रहे हैं । अभी तक तो सामने नहीं आया है कि किसी ने आगे बढ़कर कहा हो कि युद्ध मत करना । इन दो देशों को समझाना ही होगा ताकि विश्व के अन्य देशों का भविष्य सुरक्षित रहे । हमारे देश में तो वैसे भी पांच राज्यों का चुनाव चल ही रहा है । ये चुनाव इन राज्यों के भविष्य को रेखांकित करने वाले हैं । पर मुश्किल यह है कि ये चुनाव भी ऐसे लड़े जा रहे हैं माने दो या तीन दुश्मन सामने खड़े हों । राजनीतिक दल विचारधारा की भिन्नता को लिए हुए होते हैं, उनमें मतभिन्नता होती है पर मनमुटाव नहीं होता । पह यह आदर्श परिभाषा अब बदल चुकी है । सामने दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी दुश्मन दिखाई देता है । तब ही तो एक कहता है कि गर्मी निकाल देगंे तो दूसरा कोई नई बात कह देता हे । कठोर शब्दों की यह अन्तराक्षणी वैमनस्यता फेलाती दिखाई देने लगी है । चुनाव में तो हमें अपनी योजनओं को बताना चाहिए, हमें अपने द्वारा किए गए विकास कार्यो को बोलना चाहिए पर ऐसा अब होता कहां है । चुनाव बीच की दूरियों को खाई में बदलने लगे हैं । चुनावी भाषण भय पैदा करने लगे हैं । यह लोकतंत्र के मूल स्वरूप से मेल नहीं खाता । चुनाव में विजयी तो कोई एक ही होता है जो पराजित होता है वह नए सिरे से अपनी शतरंज बिछाता है । चुनाव में बदला लेने की कवायद कभी नहीं होती और न ही इसकी धमकी देने की कवायद होती है । पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर पद्रेश तक के चुनावों में हमने चुनावों के इस बदले हुए रंग को देखा है । चुनावी घोषणा पत्र हर राजनीतिक दल जारी तो कर देता है पर ज्यादातर समय वह अपने भाषणों में उसे उल्लेखित करने से बचता है या कुछ प्रमुख बातों को बोलकर अपने भाषण के स्वरूप को बदल देता है । यह उचित कैसे माना जा सकता है । वैसे भी चुनावों में फिरी में बहुत कुछ देने की होड़ सी लग चुकी है । स्कूटी तक फिरी में देने की घोषणा हो चुकी है अब मतदाता कह रहे हैं कि इस स्कूटी में हम पेट्रोल कैसे डलवायेगें । फिरी में पाने की लालसा बढ़ती जाती है । हो सकता है कि कोई कह दे कि हम पेट्रोल भी फिरी में दे देगें जैसे दो गैस सिलेण्डर फिरी में देने की बात राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में लिख ही दी है । ये दो गैस सिलेण्डर कालांतर में बढ़कर 12 हो ही जायेगें क्योंकि इन दलों को तो हर बार फिरी में कुछ न कुछ देना ही है । मुफ्त में बांटने का यह अभियान आम आदमी की जेब में डाका डालता है । राजनीतिक दल तो फिरी में सारा कुछ देकर अपने आपको अलग कर लेते हैं पर आम आदमी उनकह इस घोषणा को उठाता रहता है । ण्क मध्यमवर्गीय हमेशा पूछता है कि फिरी बांटो वाले अभियान में वो कहां है । पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं पूरा फांेकस उत्तर प्रदेश में है और फिर पंजाब में । पंजाब के मुख्यमंत्री के ऊपर रेत चोरी के आरोप लगे तो उन्होने खुद की ही जांच अपने ही अधीनस्थ अधिकारी से करा ली और अपने आपको क्लीनचिट दिलवा दी । अब वे जोर-शोर से कह रहे हें कि मैं तो बेदाग हूॅ । कितने मजे की बात है । पर सत्ता के लिए सारा कुछ दांव पर लगाया जा सकता है, नैतिकता भी और ईमानदारी भी । पंजाब में कांग्रेस को फिर सत्ता चाहिए, भाजपा को उत्तरपद्रेश, उत्त्राखंड में और गोवा में फिर सत्ता चाहिए । सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं । उत्तराखंड हो या गोवा नेता गली-गली घूम रहे हैं वे वोट मांग रहे हैं । उधर किसान संगठन भाजपा से तेरह महिनों के आन्दोलन का हिसाब मांग रहे हैं । वे अघोषित रूप से पर घोषित रूप से भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं । लखीमपुर खीरी में जो किसानों के ऊपर जीप चढ़ाकर उन्हें मार देने के आरोपी थे उनको जमानत मिल गई है, उनके पिता जो केन्द्रीय मंत्री हें वे तो वैसे भी भाजपा के प्रचार में जी जान लगा ही रहे हैं । सब कुछ गोलमाल जैसा लग रहा है । कोई किसी बात को समझ ही नहीं पा रहा है । अभी तो केवल सत्ता की कुर्सी ही दिखाई दे रही है। एक बार कुर्सी मिल जाए तो मेहनत सफल हो जाए । पतझड़ का मौसम है किस के पेड़ के पत्ते गिरेगें यह कोई नहीं जानता । सभी अपने-अपने ढंग से अनुमान लगा रहे हैं । देश की ससंद में नए वित्तीय वर्ष का बजट रखा चुका है पर अभी किसी का ध्यान इस ओर है ही नहीं जिनका ध्यान है उन्होने बोल दिया पर आम आदमी नहीं बोल पा रहा है । आम आदमी बोलना तो चाहता है पर उसे भटका दिया जाता है उसे आसमान में दिखाई देने वाले इन्द्रधनुष की ओर मोड़ दिया जाता है ‘‘देखते रहो अभी इन्दधनुष दिखाई देगा’’ वह टकटकी लगा कर आसामन की ओर देख रहा है । ससंद में आगामी 25 सालों के सपनों को परोस दिया गया है और आम आदमी आज की चिन्ता में परेशान है । अभी कुछ दिनों से भले ही पेट्रोल डीजल के दाम न बढ़े हों पर उनको तो बढ़ना ही है, वो कैसे इन दामों का मुकाबला कर पाएगा, वो कैसे अपनी खत्म हो चुकी आर्थिक व्यवस्था से मुकाबला कर पाएगा, वो कैसे अपनी बेरोजगारी के तमगे से निजात पा पायेगा । उसके सामने ढेरों प्रश्न हैं जिनका जबाब बजट में चाहिए था पर मिला जरूर जैसे न मिला हो की हैसियत से । सारे लोग तो चुनावों में लगे हैं उनका ध्यान अभी इस आरे है ही नहीं । जिनके राज्यों में चुनाव नहीं हो रहे हैं वे भी टी.व्ही. के सामने बैठकर इन राज्यों के चुनावी गणित को समझकर अपने दिन काट रहे हैं । चुनाव खत्म हो जायेगें तब तक आइपीएल प्रारंभ हो जायेगा तो वे उसके गणित में अपना दिन काटने लगेगें । आईपीएल में भी करोड़ों रूपयों की बोली लग चुकी है, खिलाड़ी खरीद लिए गए हैं । कितनी अजीब सी बात है कि खिलाड़ियों की नीलामी भी होती है । चलो अच्छा है इससे कम से कम खिलाड़ियों को पैसे तो मिल ही जाते हैं । पर इसमें विडंबना की बात यह है कि विदेशी खिलाड़ियों को भी करोड़ों रूप्ये मिलते हैं और हमारे ही देश के होनहार खिलाड़ी वंचित रह जाते हैं । यदि आइपीएल में केवल देश के ही खिलाड़ियों को मौका मिले तो ज्यादा बेहतर नहीं रहेगा क्या ? इस पर चिन्तन करना चाहिए । इस बार देश संे कोरोना को खाली हाथ ही लौटना पड़ा है यह सुखद है बेचारा ! कोरोना के केस कम होते जा रहे हैं । केस कम हो रहे हैं तो पाबंदियां भी कम हो रही हैं । आम आदमी वैसे भी इन पाबंदियों के बोझ से ऊब चुका है । अच्छा हुआ कि इस बार ज्यादा पाबंदियां नहीं लगीं । वैसे कोरोना के यूं खाली हाथ लौटाये जाने का सारा श्रेय भारत में हुए वैक्सीनेशन को दिया जाना चाहिए । प्रधानमंत्री जी ने जिस तरह देश के एक-एक नागरिकों के लिए वैक्सहनेशन की व्यवस्था की वह प्रशांसनीय है और इसके चलते ही कोरोना भाग खड़ा हुआ है । यह पतझड़ के मौसम का सुखद अहसास है ।

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