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“माँ तुझे सलाम “

सीमा गुप्ता (मशहूर शायरा एवं समाजसेवी)

लबो पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती

बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती “

 देश के मशहूर शायर मुनव्वर राना  जी का ये शेर माँ शब्द के आस्तित्व को पूरी तरह  से सार्थक करता  है. माँ जो इस धरती पर खुद भगवन का ही  स्वरुप है जिससे ये कायनात रोशन है. माँ को “ममता और शक्ति ” की उपाधि  से नवाजा गया है और वो उसकी पूरक हैं.

 “माँ” हर दुःख की घडी में याद आने वाला या मुह से निकलने वाला एकमात्र शब्द , जैसे हर पीड़ा को हर लेने का हुनर रखता है, बच्चों की सबसे पहली गुरु कहलाने वाली   माँ जो न जाने कैसे अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करती है, कभी चूल्हा चोका करते उसकी हथेलियाँ गल जाती हैं, या फिर ऑंखें खराब हो जाती हैं. मगर बेचारी उफ़ तक नहीं करती. अपनी इच्छा आराम सब को ताक पर रख कर बस अपने लाल को दुनिया के सारे ऐश आराम मुहैया करने और बेटी के हाथ पीले करने की फ़िक्र में कब बूढी हो जाती है उसे खुद ही पता नहीं चलता. माँ बन कर एक महिला जो गर्व और पूर्णता का एहसास करती है उससे बड़ा सुख उसके लिए कोई नहीं होता.

कभी  ठंडी छावं बनकर , कभी गुनगुनाती धुप की तरह. कभी दुआ बनकर , शक्ति बनकर, कभी स्नेह और ममता की अमृत धाराएँ लुटा कर, तो कभी मनुहार  का इंद्रधनुष बनकर अपने बच्चों के जीवन में सुकून के रंग बिखेरने वाली एक मात्र किरदार जो असहाय पीड़ा झेल कर हमे इस दुनिया में आने का सौभाग्य देती है उस  “माँ” का   हजारों जन्म लेकर भी हम क़र्ज़ नहीं अदा कर सकते . माँ जिसके जीवन के हर पन्ने में प्रेम , त्याग और निस्वार्थ सेवा दर्ज है वो सिर्फ मातृ दिवस पर सम्मान पाने की मोहताज़ नहीं  है.

आज कहना मुश्किल है की माँ पर कितना लिखा या पढ़ा जाता है , कितने ऐसा लोग हैं जो माँ के बारे में पढना चाहते हैं , इस भाग दौड़ की जिन्दगी में जहां एक दुसरे के लिए संवेदनाएँ  नहीं रहीं हैं , वहां माँ का किरदार अपना आस्तित्व तलाश करता नज़र आता है.

कहा जाता है की  मातृ दिवस का अवकाश ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं तथा मातृत्व को अपनी श्रद्धा और सम्मान देने के लिए आरम्भ किया गया था. दुनिया भर में ये दिवस एक उत्सव की तरह अलग अलग तिथियों को मनाया जाता है.  मेरा मानना है की क्या जन्म देने वाली और सदैव सम्माननीय माँ को याद करने को सिर्फ एक दिन काफी है ?? केवल मदर्स-डे पर ही मां के प्रति श्रद्धा  और आराधना अर्पित करना तक  काफी है? 

त्याग और समर्पण की इस देवी का आभार प्रकट करने को जीवन का हर एक पल भी कम है,  अपने रक्त से बच्चो को सींचने वाली  माँ  की  कृतज्ञता से औलाद वर्षो में भी मुक्त नहीं हो सकती.  देखा गया है की कितने ही लोग मां को ध्क्के देते है आश्रम मै छोड आते है, और अपनी  खुद की परम्पराओं को ही भूल जाते हैं .  माँ कोई भिक्षुक नहीं है , माँ वन्दनीय है पूजनीय है , विश्वास  है, प्रेम की विशुद्धतम  भाषा  है , प्रेरणा का अद्रश्य श्रोत   है ,  जिसका काम सिर्फ प्रत्युत्तर की आशा न करते हुए अर्पण करते रहना है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती  हुई ख्वाब में आ जाती है

मुनव्वर राना  जी  के इस शेर के साथ दुनिया की हर माँ के प्रति श्रद्धा  और आराधना अर्पित करते हुए  मातृ शक्ति को शत-शत नमन..

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