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रहे इस रूह की चूनर धानी

मौसम ने करवट ली और शीत ऋतु ने आगमन की सूचना दी है।लेकिन भानु काका के तेवर अब भी तीखे हैं।ग्लोबल वार्मिंग की ज़िम्मेदारी लेने के बजाय मानव जाति अब भी बदन उघाड़ू परिधानों के फ़ेवर में है।समस्या के मूल में न जाकर सतही समाधान खोजना और लापरवाही से संतुष्ट हो जाना ये असँवेदनशील पीढ़ी की संवेदनहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।बीते समय में प्राकृतिक आपदाओं की शिकार मानवीय संवेदनाएँ सहमीं सहमी सी हैं।ऐसे में महामारी के प्रकोप को भुलाकर सारा बाज़ार फिर एक बार भव्य रंगीनियों से गुलज़ार हो रहा है।देश की अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़े बेरोज़गार तबके के बोझ तले दबी लड़खड़ा रही है।फिर भी पता नहीं ये सांसारिक परंपराएँ किस दिशाहीनता की दौड़ में शामिल हैं। जिन्हें अपने गंतव्य का ही पता नहीं है वो सफ़र का आनंद कैसे ले पाएँगे।समझ में नहीं आ रहा कि आधुनिक संगीतकार ऐसे कौन से साज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनके असंतुलित स्वर न तो कानों में रस घोल रहे हैं और न ही दिल को सुकून दे पा रहे हैं।

मधुरता तो उन साज़ों में थी जो दर्द के सुर बजाते थे

गायन भी वो विधा थी जिससे बुझे दीप जल जाते थे

ये तो सच है कि पिछले दो वर्षों में हमने बहुत से अपनों को खोया है।जो अपने पीछे उदास आँखों में चँद सपनों की मशालें छोड़ गए हैं जो अब तक सुलग रहीं हैं।उन सभी के सपने पूरे करने के लिए हमें निजी स्वार्थों को त्याग कर उन मुरझाए चेहरों पर मुस्कान लाने का प्रयास करना चाहिए।ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम अपने जीवन के उद्देश्य समझ कर हर उत्सव में एक पारिवारिक माहौल उत्पन्न करने की ज़िम्मेदारी निभाने का कौशल सीख पाएँगे।

है हर निशा की सौग़ात उजाला

है हर पूजन का श्रद्धेय शिवाला

परिधान पहनेंगे अब वो निराला

जिसकी ओज़ अक्षया दीपमाला

बनें मन की भूख मिटाता निवाला

हो श्रँगारित रूह पिएँ ऐसी हाला

निःस्वार्थ प्रेम हो साँसों की माला

आज समूची मानव जाति को मानवतावादी पथ पर अग्रसर रहने की ज़रूरत है, तभी इस सृष्टि का कल्याण सँभव है।एक पड़ोसी उदास हो और दूसरा पड़ोसी जश्न मनाए ऐसी संवेदनहीनता कौन सा आनंद लाएगी।आज सारे संसार को एक पारिवारिक ऊर्जा की आवश्यकता है जो पराई पीर को हर कर तमाम उदास चेहरों को मुस्कान का श्रृँगार दे सके।

आती 24 तारीख़ को करवा चौथ का व्रत है।वर्ष भर एक दूसरे से मतभेद रखने वाले जोड़े भी एक दूसरे को दिलासे देने के लिए इस ख़ास दिन को मन मोहने वाले क़ीमती लिबासों और ज़ेवरों के नाम कर देते हैं।सबकी आयु का हर एक पल जन्म के साथ ही विधि के विधान में लिखा जा चुका होता है, फिर किसी प्राकृतिक आपदा का बहाना बने या क्रूर नियति का, हमें हमेशा एक दूसरे के सुख-दुख का साथी बनना चाहिए न कि पारंपरिक मान्यताओं का अँधानुकण करने का ढोंग करना चाहिए।एक दूसरे को हरा कर जीतने की दौड़ मानव जाति को दिशाहीन दौड़ाती रहेगी और कहीं नहीं पहुँचाएगी।आइए इस बार के करवा चौथ पर परम पिता से किसी ऐसे श्रृंगार और परिधान की कामना करें जिसका रंग कभी फीका न पड़े।चंद जोड़ी उदास आँखों को और उदासी दे जाए ऐसा श्रृँगार न करके परम पिता परमात्मा से रूहों के महामिलन का दीप जलाने की विनती करें जिससे हर दिल में उजाला हो।

हर चेहरे की मुस्कान का श्रृँगार बनें ऐसा कोई वरदान दे दो

रहे हर जन्म इस रूह की चूनर धानी ऐसा हमें परिधान दे दो

कविता मल्होत्रा (संरक्षक एवं स्थायी स्तंभकार )

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