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पेट्रोल डीजल और शराब के भरोसे भारत की अर्थव्यवस्था

हमारे भारत समेत पूरे विश्व में इस समय आर्थिक और सामाजिक हाहाकार मचा हुआ है । हम सब अपने अपने घरों में स्वेच्छा से नजरबंद है । हम पिछले तीन  महीने से लॉक डाउन की स्थिति में खुद को सेल्फ आइसोलेट करके सरकार और समाज की मदद कर रहे थे  ,पर सिर्फ इतना ही मुद्दा नहीं ,मुद्दा है खाने पीने का ,मुद्दा है रोजगार का ,मुद्दा है आर्थिक मदद का भी था जिसमें हुआ ये को अचानक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग लग गई ।  पेट्रोल जहा 81 रुपया प्रति लीटर तक पहुंचा वही डीजल के दाम पहली बार पेट्रोल से आगे निकल 82 रुपए प्रति लीटर तक जा पहुंचा । जो किसान और मजदूर वर्ग है वो इस समय आर्थिक तंगी से जूझ रहा किन्तु सरकार को उनकी फिक्र नहीं और खेती किसानी के समय कच्चे तेल की कीमत अत्यधिक कम होने के बाद भी देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत को लगातार बढ़ाकर ,जनता के घावों पर नमक लगाने का काम किया है । पूरा विश्व कोरोना वायरस के महामारी से जूझ रहा है। भारत भी इस महामारी से बचने के लिए कई उपाय किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आपदा कोष में दान देने की भी अपील की थी ।  यह राहत कोष से 1948 में बनाया गया था, लेकिन राजीव गांधी फंड में 90 लाख का फंड ट्रांसफर जो 2006 में किया गया वो चर्चा  में है , और अब कई सवाल उठाए जा रहे । पी एम केयर्स की स्थापना आपात काल में आर्थिक व्यवस्था को थामे रखने के लिए ही किया गया था ।इसका उद्देश्य भारत के विभाजन के दौरान और उसके ठीक बाद पाकिस्तान से विस्थापित लोगों को सहायता करना था। प्रधानमंत्री राहत कोष के संसाधनों का इस्तेमाल मुख्य रूप से बाढ़, तूफान या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों और उनके परिवार वालों की मदद के लिए किया जाता है। इसके अलावा दुर्घटनाओं और दंगों से भी पीड़ितों को तत्काल मदद के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल किया जाता है। प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल चिकित्सीय उपचार प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। फंड में पूरी तरह से सार्वजनिक योगदान होता है और इसे कोई बजटीय समर्थन नहीं मिलता है। फंड के कॉर्पस को विभिन्न रूपों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और अन्य एजेंसियों के साथ निवेश किया जाता है। संवितरण प्रधान मंत्री के ही अनुमोदन से किए जाते हैं।प्रधानमंत्री राहत कोष के बारे में एक बात गौर करने वाली है कि यह संसद द्वारा गठित नहीं किया गया है। विभाजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि विस्थापितों के मदद के लिए सरकार प्रयास कर रही है परंतु यह पर्याप्त नहीं है और इसीलिए इनकी मदद के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है। इसी के तहत एक राष्ट्रीय कोष की स्थापना की गई। खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था हालांकि इसके प्रबंध समिति ने हमेशा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को शामिल किया गया है। हम यह बताते हैं कि जब फंड को बनाया गया था तो कौन-कौन से लोग इसके प्रबंध समिति में शामिल थे।! ) प्रधान मंत्री ii) भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष। iii) उप प्रधान मंत्री। iv) वित्त मंत्री। v) टाटा ट्रस्टीज़ का एक प्रतिनिधि vi) फिक्की द्वारा चुने जाने वाले उद्योग और वाणिज्य का प्रतिनिधि। हालांकि बाद में समय-समय पर इसमें नए सदस्यों को जोड़ा गया है। 1985 में एक ऐसा समय आया जब इस फंड प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया। प्रधानमंत्री को यह भी अधिकार दिया गया कि वह जिसे चाहे उसे फंड का सचिव बना सकते हैं जिस पर फंड के बैंक खातों को संचालित करने का अधिकार होगा। यानि कि यह फंड पूरे तरीके से पी एम् ओ के द्वारा संचालित किया जाने लगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह निर्णय तब लिया गया था जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री होने के नाते इस फंड के प्रभारी थे।अब बात पी एम केयर्स की करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सार्वजनिक योगदान के लिए पी एम केयर्स फंड का गठन किया है। इसके तहत मिलने वाले दान को कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस फंड के अन्य सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री को शामिल किया गया है। इसके अलावा विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून और सार्वजनिक क्षेत्रों में अच्छे काम करने वाले लोगों को भी इसके सदस्य के रूप में नियुक्ति की गई है। इस फंड के गठन के साथ ही प्रसिद्ध हस्तियों के साथ-साथ आम लोगों ने भी लाखों की संख्या में अपने योगदान किए हैं। हालांकि एक सवाल बार-बार उठता रहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष होने के बावजूद भी पीएम के अंत की शुरुआत क्यों की गई? एक पत्रिका ने दावा किया है कि पीएम के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक है। अतः यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पी एम केयर्स प्रधानमंत्री राहत कोष की तुलना में अधिक पारदर्शी है । भारत ने दिखाया कि हम सभी समस्या के सामाधान के लिए एक होते हैं।कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टनसिंग से अलावा कोई रास्ता नहीं है । सोशल डिस्टनसिंग हर नागरिक, हर परिवार के लिए जरूरी है , घर से निकलने में पाबंदी है । अभी जहां हैं, वहां पर ही रहें, देश में ये लॉकडाउन तीन मई तक का है , आने वाले दिन हर नागरिक, हर परिवार के लिए बहुत अहम हैं। घर से बाहर आपका एक कदम, कोरोना जैसी गम्भीर बीमारी को घर ला सकता है। कोरोना- यानी कोई रोड पर ना निकलें । डब्ल्यू एच ओ की रिपोर्ट बताती है कि, इस महामारी से संक्रमित एक व्यक्ति सैंकड़ों लोगों में इसके संक्रमण को फैला सकता है।भारत आज उस स्टेज पर है, जहां हमारे एक्शन तय करेंगे कि हम इस आपदा को कितना कम कर सकते हैं। ये समय कदम कदम पर संयम बरतने का है।जान है तो जहान है, ये धैर्य की घड़ी है। डॉक्टर, पुलिस, आर्मी, मीडिया की सोचिये, जो इस भीषण आपदा में भी काम कर रहे हैं उस पर डीजल पेट्रोल के दाम बेतहाशा बढ़ा कर क्या सरकार उनके जनभावनाओं के साथ न्याय कर रही । सभी आवश्यक चीजों की सप्लाई बनी रहेगी किन्तु डीजल के दाम बढ़ने से रेट बढ़ जाएंगे, इसके लिए सभी तरह के इंतजाम किए गए हैं।आज हेल्थ सेक्टर को और बढ़िया बनाने के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये आवंटन किये गए  लेकिन आमजनता के ऊपर बोझ डालकर , सभी राज्यों की प्राथमिकता हेल्थ सेक्टर होनी चाहिए लेकिन डीजल पेट्रोल के दाम को आग लगाकर । प्राइवेट सेक्टर इस चुनौतिपूर्ण दौर में सरकार के साथ कंधा मिला रहे हैं,आप अपना, अपनों का ध्यान रखिये , आत्मविश्वास के साथ कानून का पालन कीजिये lमै आप सबसे अपील करता हूं ,इस संकट काल में आप सब कृपया सहयोग के लिए आगे आए किन्तु सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध जरूर करे  । हमसे देश नहीं ,देश से हम है ।अपनी निजी सोच और मतभेदों को दरकिनार कर , हमे एकजुट होकर अपने प्रधानमंत्री जी से आम जनमानस पर बोझ ना डालने की अपील करेंगे  और सबको देश के साथ खड़े होने की आवश्यकता है ।  सरकार ने कह दिया है पेट्रोल और डीज़ल पर राहत की उम्मीद ना करें क्योंकि वो उनके बस में नहीं है ,अंतरराष्ट्रीय बजार में कच्चे तेल के दाम में गिरावट के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों ने इतना टैक्स लगा दिया है कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमत ने कीर्तिमान बना लिया है। एक बात सरकार बताये के उनके बस में क्या है ? राहत के बजाए केवल और केवल शोषण हो रहा है।
      _____ पंकज कुमार मिश्रा 

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