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बैसाख़ी के फिर मेले हों

श्रीमती कविता मल्होत्रा

इतिहास गवाह है कि जहाँ रूह सहमत होती है वहीं रब की रहमत होती है।किसी भी तरह की अनहोनी का अंदेशा सबसे पहले अपनी ही रूह को होता है।ये और बात है कि मानव की चेतना अपने ही चैतन्य के इशारे को नज़रअंदाज़ कर देती है।यूँ तो मानव की पहुँच चाँद तक हो गई है लेकिन खुद से खुद की मुलाकात अभी भी अधूरी है।तभी तो हर कदम पर व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धी पैदा हो रहे हैं जो फ़िज़ूल की दौड़ में शामिल हैं और जाना कहाँ है ये किसी को पता ही नहीं है।भला नेक काम के लिए किसी बैनर की तलाश क्यूँ?अपने सफ़र के लिए किसी दूसरे के कंधे की सीढी का सहारा क्यूँ?

कैलेंडर की तारीख़ें बदलने से कभी हालात नहीं बदला करते।एक वायरस ने एक तरफ़ तो पूरे विश्व के कैलेंडरों से 2020 साल में से ज़िंदगीनामे का नाम ओ निशान ही मिटा दिया।दूसरी तरफ़ समस्त जगत को ज़िंदगी की सार्थकता का सार भी समझा दिया।

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मिला एक वायरस से समूचे जग का खोया अनुराग

जीवन से ज़िंदगी जुदा बेरँग हो गया 2021 का फाग

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कई लोगों से उनके रोज़गार छिने, तो कई लोगों ने निःस्वार्थ सेवा को ही अपना काम बना लिया।कई लोग ज़्यादा समय साथ बिताने के कारण घुटन महसूस करने लगे तो कई लोगों को एक साथ समय बिताने के अवसर मिलने पर परस्पर भाईचारे की भावना भी बढ़ी।

सृष्टि अपना संतुलन बराबर रखती है। अगर एक रंग को बेरँग किया तो जीवन को एक नया रंग भी दिया।प्रकृति के साथ छेड़खानी का परिणाम तो सबने देख ही लिया। लेकिन अब भी कुछ ऐसे नादान शेखचिल्लियों का तबक़ा बाक़ी है जो इस वहम में अहँकारी हुआ डोल रहा है जैसे धरती का सारा बोझ उनके ही कंधों पर सिमटा है और उनके तलवे न चाटे गए तो पाँव तले से ज़मीन खींच ली जाएगी।

बस यही शुभकामना है कि ईश्वर इस शेखचिल्ली तबक़े को सुमति प्रदान करें और सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।

केवल गंगा में डुबकी लगा लेने से कभी तीर्थ यात्रा सँपूर्ण नहीं होती न ही गंगा स्नान घटित होता है।गंगा की पावनता तो उसकी गहराई में है, केवल सतही जल के लोटे कभी गँगाजल नहीं बन सकते।

जिन पकी फसलों को देखकर किसानों के मन में बैसाख़ रचित होता था आज न तो वो फसलों की नस्लें रहीं और न ही फसलों पर उनके वो अधिकार रहे।केवल कैलेंडर की तारीख़ बदली और बैसाखी के उत्सव ने अपने आगमन की दस्तक दी है।लेकिन कृषक वर्ग की वर्तमान स्थिति और व्यथा किसी से छिपी नहीं है।वजह जो भी हो, दोष किसी का भी हो लेकिन दोषी वही माना जाएगा जो अपने दायित्वों से मुँह मोड़ता पाया जाएगा और केवल दिखावे के लिए काम करेगा।जो भी व्यक्ति जीवन मूल्यों की पगडंडियों पर अपने जीवन का रथ हाँकते हैं वही गँतव्य पर पहुँचते हैं।आज के समय की ये माँग है कि मानव अपने जीवन का उद्देश्य समझे और एक निश्चित समय के लिए मिले अवसर का लाभ उठा कर इँसानियत की पहचान बने।

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हर दिल में बसी एक ही मूरत

हर रूह का ख़्वाब एक ही सूरत

न किसी से बैर न ही द्वेष के झमेले हों

सबमें रब देखें तो नित बैसाखी के मेले हों

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