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ममतामयी माँ (कविता-4)

डॉक्टर सुधीर सिंह

माँ की नजरों में वयस्क संतान भी,

सदा एक मासूम बच्चा ही रहता है.

बूढ़ी जननी  की  गोद में माथा रख,

बीते बचपन में में जब खो जाता है.

ममतामयी माँ जब सर सहलाती है,

लगता है वह एक अबोध बालक है.

पता नहीं चलता  है  लंबी  उम्र तब,

आसपास जब ममता काआँचल है.

संतान कहीं रहे; कितनी भी दूर रहे,

माँ के हृदय के पास ही वह रहता है.

बच्चों की विपदा का एक काँटा भी,

सहज ही माँ को चुभने लग जाता है.

माता को  कोई कष्ट दे या दुत्कार दे,

सदा सुखी रहने का आशीष देती है.

संतान के कहे सारे कठोर शब्दों को,

माँ मुस्कुराकर सहज ही सह लेती है.

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