Latest Updates

माँ (कविता-8)

माँ
मेरी माँ है सबसे प्यारी
इस जग में है सबसे न्यारी
सुबह सवेरे जग जाती है
सबको सुलाकर सो जाती है
सबको यत्न से खूब संवारती
स्वयं को सहज ही भूल जाती
मेरी माँ…
आज खुजतो हूँ तुम्हें
तारों में, फूलों में, गलियारों में,
एक बार सीने से लगा जाओ
बाँहों में अपनी सुला जाओ
अपलक निहारती हूँ तुम्हें
कभी अपनी छवि दिखा जाओ
मेरी माँ….
अंतस्थल व्याकुल है
व्यथित हृदय पुकारता है
कभी सपनों में ही आ जाओ
आकर अपना एहसास करा जाओ
सबको यत्न से खूब संवारती
स्वयं को सहज ही भूल जाती,
मेरी माँ….
आज खोजती हूँ तुम्हे
तारों में , फूलों में, गलियारों में
एक बार सीने से लगा जाओ
बांहों में अपनी सुला जाओ,
अपलक निहारती हूँ तुम्हे
कभी अपनी छवि दिखा जाओ
मेरी माँ….
अंतस्थल व्याकुल है
व्यतीत हृदय पुकारता है
कभी सपनों में ही आ जाओ
आकर अपना एहसास करा जाओ
मेरी माँ….

(रश्मि श्रीधर )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *