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मुखर राजनीति के महानायकों के लायक नहीं माहौल !

बिहार राजनीति में उठापटक ,बीते दस तारीख की देर रात्रि तब समाप्त हो गया जब बिहार विधानसभा चुनाव के सभी दो सौ तैतालिस सीटों के परिणाम जारी कर दिए गए । भाजपा, जदयू ,हम और वी आई पी की संयुक्त गठबंधन वाली एन डी ए ने एक सौ पच्चीस सीटों पर कब्ज़ा करके बिहार विधानसभा में सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत एक सौ बाईस के जादुई आंकड़े को पार कर लिया । महागठबंधन से लड़ने वाली तेजस्वी यादव की पार्टी ने पचहत्तर सीट अपने नाम करके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक बार फिर से आर जे डी को बिहार में स्थापित कर दिया । महागठबंधन को बिहार में कुल एक सौ दस सीट प्राप्त हुआ जिसमें हासिएं पर खड़ी कोंग्रेस को बीस और लेफ्ट सहित अन्य को लगभग पंद्रह सीट मिल सकी । एक चौंकाने वाला नतीजा यह रहा कि पूर्व राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक स्वर्गीय राम विलास पासवान की लोजपा का हश्र बुरा हुआ , चिराग पासवान के नेतृत्व में पहला चुनाव अभियान लोजपा का खाता खुले बगैर समाप्त हुआ जबकि ओवैसी की ए एम आई एम ने अप्रत्याशित रूप से पांच सीट अपने नाम की वहीं बसपा के खाते में भी एक सीट गई ।  बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हुए न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल ने बिहार में आर जे डी के तेजस्वी यादव के प्रचंड जीत का दावा किया था और बताया था कि नीतीश कुमार की सरकार धराशाई हो जाएगी किन्तु परिणाम ने सबको चौका दिया । यह पहली मर्तबा नहीं था जिसमें एग्जिट पोल के आंकड़े फेल हुए हो ,किन्तु ये सार्वभौमिक सत्य है कि एग्जिट पोल के सभी अनुमान बिहार में ही आकर फेल होते रहे है । बिहारी बहुत चतुर सुजान होते है ,वो कब किस को कहां रखना है ये पहले से निश्चित करके रखते है ,अपने मन की बात मीडिया में ठीक विपरीत करके प्रचारित करते है और अंत में सारे आंकड़े ध्वस्त कर देते है । ओवैसी का बिहार राजनीति में एंट्री ,बिहार की राजनीति के लिए ठीक नहीं । ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीत कर सनसनी मचा दी किन्तु मै एक राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार होने के नाते ये कहूंगा की सीमांचल बिहारियों ने निश्चित तौर पर बिहार को बंगाल बनाने की ओर कदम बढ़ा दिया है । ओवैसी केवल दंगे कराने के लिए विख्यात है इनके पार्टी का मोटो ही है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाया जाय खैर बिहारियों ने अवसर दिया है तो वो ही झेलेंगे ।

                      बिहार विधानसभा चुनाव ने रोमांच की सारी हदें पार कर दी  । भारत में रोचक चुनावों के लिए मशहूर बिहार ने एक बार फिर दिखा दिया कि ,बिहारी सारे एग्जिट पोल पर भारी है । बिहार विधानसभा चुनाव में ई वी एम की भूमिका भी प्रशंसनीय रही । मतगणना के दिन सुबह जब बैलट पेपर के मतो की गणना प्रारम्भ हुई तो एक बार को लगा कि न्यूज चैनलों के एग्जिट पोल ने बिहारियों को पटक दिया क्युकी सभी चैनलों ने तेजस्वी को स्पष्ट बहुमत और आर जे डी को पंद्रह साल बाद की  वापसी दिखा दी किन्तु ट्विस्ट तब आया जब बैलट पेपर की गणना समाप्त हुई और भाजपा की प्रिय ई वी एम खुलने लगी । नतीजे थोड़े चौंकाने वाले रहे किन्तु बिहारी तो बिहारी है । बिहार में एनडीए के पिछड़ने का कारण चिराग पासवान की लोजपा रही , पार्टी को नए सिरे से बनाने और  बचाने के चक्कर में लोजपा आज बिहार गंवाने जा रहा  है ।  विदेशी ताकतों की मदद से हैदराबाद में जड़े जमा चुके ओवैसी की पार्टी को उपेन्द्र कुशवाहा के गुप्त शह पर ही सही, लेकिन बिहार  सियासत में एक नई दिशा मिलने जा रही है । बिहरी मुसलमानों खासकर सीमांचल के दलितों ने अपने लिए दंगो के लिए माहौल तैयार करवा लिया ।  कांग्रेस के आंतरिक  सहयोग और बसपा और उपेन्द्र कुशवाहा के हिन्दू द्रोह के कारण   इस बार ओवैसी को बिहार विधानसभा में अच्छी खासी सीट मिल गई जो निश्चित तौर पर भविष्य में बिहार को बंगाल बना देंगे । बिहार में 65 रैलियां करने वाले ओवैसी ने बंगाल चुनाव की भी तैयारी कर ली है । अच्छी बात है कि भारत गणतंत्र है और सभी नागरिकों को कहीं से भी चुनाव लड़ने का अधिकार देता है किन्तु जातिवादी राजनीति के पैरोकार ओवैसी का अन्य राज्यों में पैर पसारना निश्चित तौर पर ममता बैनर्जी ,अखिलेश यादव और कांग्रेस के माथे पर शिकन ला देगा क्युकी कट्टर मुस्लिम वोट बैंक इनके खेमे से फिसलता जाएगा । ये मुस्लिम वोट भाजपा को नहीं मिलते है तो इसका लाभ बंगाल में ममता ,उत्तर प्रदेश में अखिलेश और कर्नाटक में कांग्रेस ले जाती है पर ओवैसी के एंट्री ने इनके वोट बैंक को कमजोर कर दिया है अब ये माना जा सकता है की बंगाल में भाजपा ठीक ठाक लड़ने वाली है और कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि वहा भी सरकार बना लें खैर अभी बंगाल चुनाव में छ महीने से अधिक का वक्त बाकी है किन्तु तैयारी अभी से जोर पकड़ना शुरू कर देगी ।

                           बिहार में नजदीकी मुकाबला लड़ने वाले तेजस्वी यादव के रुख पर  निर्भर करेगा कि यूपी के अखिलेश यादव की तरह वह राजनैतिक सत्ता को कब  पा लेंगे , क्युकी कांग्रेस ने तेजस्वी का भी नुकसान कर दिया ।अब तो अगला , यही चमत्कार 5 साल बाद 2025 में दोहरा पाएंगे या नहीं, भविष्य के गर्भ में है।नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी भारी नुकसान में रही अब  पीएम नरेंद्र मोदी को यह बताना चाहिए कि बिहार में जब एक पिछड़ा मुख्यमंत्री था तो दूसरे पिछड़े को उपमुख्यमंत्री बनाने की क्या राजनैतिक मजबूरी थी, बिहार के संघर्षशील सवर्ण युवा, दलित युवा, अल्पसंख्यक युवा आज यह जानना चाह रहे हैं। पूरा संघ और भाजपा आज जिन आस्तीन के सांपों से लिपटी हुई है, वह सिर्फ सवर्णों के खिलाफ तिकड़म कर सकते हैं, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का वोट ट्रांसफर करवाने की उनकी क्या औकात है, बिहार ताजा उदाहरण है जहां मुश्किल से आप बॉर्डर लाईन 122 के आस पास पहुंचे है । संघ और बीजेपी के रणनीतिकारों को मेरी बात कड़वी लग सकती है, लेकिन है सौ फीसदी सही! अटल की सवर्ण बाहुल्य  पार्टी विद डिफरेंस बिहार में नड्डा के  वैचारिक दलदल में  इस तरह डूबेगी, देखकर, सुनकर, समझकर अफसोस हुआ क्युकी जातिगत समीकरण सही नहीं रहे । जाति विशेष को ठिकाने लगाते लगाते चंगु-मंगू ( राहुल – तेजस्वी) की इतनी ही राजनैतिक दुर्गति होगी, यह तो तय था।कांग्रेस की एक चतुर सुजान ( शीला दीक्षित) भी 15 साल बाद बुड़बक बनी थी और एन डी ए का एक ( नीतीश कुमार) भी 15 साल बाद बुड़बक बनने की ओर अग्रसर था । यही बिहार है! जाति विशेष के विरोध की यही सफलता है। वह सत्ता में आ नहीं सकता, लेकिन अपनी उपेक्षा करने वालों को सत्ता में रहने नहीं दे सकता, यह एक बार फिर साबित हो चुका है। सौ बात की एक बात यह कि भविष्य में बिहार मुस्लिम और हिन्दू वोटरों में बटने वाला है । अब तक जो बिहार दलित यादव और सवर्ण की लड़ाई में जूझता रहा अब वहीं बिहार जिसने एम आईं एम को राजनीतिक ज़मीन दे दी , हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई में झोंक दिया जाएगा और अभी भाजपा ने 70 + सीट जीत कर अपनी स्थिति मजबूत की है वो पूरे बिहार को कब्जा ले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा । आर्थिक रूप से पिछड़े बिहार में ओवैसी की पैठ बिहार के लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाएगी ये तो तय है किन्तु बिहारी बड़े चतुर होते है इसकी बानगी भी हम देख चुके हैं । अब बिहार को सुरक्षित और सुशासित रखने की जरूरत है ।

पंकज कुमार मिश्रा ( एडिटोरियल कॉलमिस्ट पत्रकार एवं शिक्षक केराकत जौनपुर)

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