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  लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

नए संसद भवन का उद्घाटन ऐतिहासिक घटना है, यह ऐसी महोत्सव है जो सदियों याद किया जाता रहेगा । अनेक प्रश्नों के निरूत्तर घेरे में संसद भवन का उद्घाटन हो गया और यह भी हो गया कि देश के 21 विपक्षी दलों ने इसमें सहभागिता नहीं निभाई । लोकंतत्र में सभी का एक साथ होना लगभग आवश्यक होता है । विपक्ष में होने का मतलब यह कतई नहीं होता कि सत्तारूढ़ दल के हर निर्णयों का विरोध ही किया जाए और सत्ता में बैठने वालों का भी यह फर्ज होता है कि विपक्ष क्या कह रहा है उसे सुना जाए । सत्ता और विपक्ष मिलकर ही लोकतंत्र का निर्माण करते हैं और एसे मजबूती प्रदान करते हैं । सच तो यह भी है कि केवल भवन के सुन्दर हो जाने से लोकतंत्र मजबूत नहीं माना जा सकता । लाकतंत्र के जो प्रहरी हैं उनका भी मजबूत होना आवश्यक है । इस बात की कल्पना भी बेमानी है कि बगैर विपक्ष के लोकतंत्र मजबूत हो सकता है । बहरहाल नए भवन के उद्घाटन और विपक्ष के बायकाॅट ने इस ऐतिहासिक क्षणों को कुछ तो कमजोर किया है । हमारे यहां परपंरा है कि जब संसद का स़त्र प्रारंभ होने होता है तब लोकसभा अध्यक्ष सारे दलों के सांसदों को बुलाकर इस पर विमर्श करते हैं । क्या ऐसी ही परंपरा ऐसे कार्यक्रमों के लिए नहीं अपनाई जा सकती । वैसे सत्तारूढ़ दल को इस बात का गर्व हो सकता है कि देश के सारे विपक्षी दलों ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार नहीं किया वे सत्तारूढ़ दल के साथ नये भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में उपस्थित रहे । ऐसे में यह माना जा सकता है कि लोकतंत्र के लिए जो विपक्ष की भूमिका दिखाई देनी चाहिए वह दिखाई दे रही थी ।  भवन बहुत सुन्दर बना है और उसमें आधुनिकता का समावेश है साथ ही भविष्य की जरूरतों का भी ध्यान रखा गया है । यह सही है कि भविष्य में लोकसभा की सीटें बढ़ेगीं ही और जब लोकसभा की सीटें बढ़ेगीं तो राज्यसभा की सीटें भी बढ़ेगीं । भवन के निर्माण में इस बात का ध्यान रखा गया है । इतनी सारे सांसदों के बैठने की व्यवस्था कर दी गई है कि वर्षों तक भवन छोटा महसूस न हो । रिकार्ड समय में बने भवन की सुन्दर इमारत और अंदर सुख सुविधाओं की भरमार, टैक्नालाॅजी से पूर्ण जाहिर है कि इस पर भारत गर्व करेगा और विदेश के जो मेहमान भारत आयेगें उन्हे भवन दिखाया भी जायेगा । हम सभी ने संभवतः पहलीबार दाजदंड के बारे मं जाना और समझा । ‘सिंगोला’ इसे प्रधानमंत्रीजी ने पवित्र रूप् देकर नये संसद भवन में स्थापित किया । राजदंड राजाओं के पा हुआ करते थे । बताया जाता है कि जब अंग्रेज सरकार ने अपनी सत्ता भारत के हाथों में स्ािानांतरित की तो उन्होने इस राजदंड को तात्कालीन प्रधानमंत्री को सौपा था और चूंकि भारत में राजतंत्र नहीं लोकतंत्र की स्थापना होनी थी इसलिए इस राजदंड को संग्रहालय में रखवा दिया गया था । भारत की वर्तमान पीढ़ी इसके बारे में कुछ नहीं जानती रही है पर अब जब प्रधानमंत्रीजी ने इसे लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बाजू में स्थापित करा दिया है तब यह राजदंड हमारे लिए उत्सुकता का केन्द्र बिन्दु बन गया है । उसकी पवित्रता के लिए पंछितों ने मंत्रोच्चार किया और प्रधानमंत्रीजी ने पवित्र भावना के साथ उसे स्थापित किया । नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ जो कुछ भी हुआ वह वर्तमान के साथ जुड़ा है,  समय के साथ यह बात विस्मृत हो जायेगी कि इसके उद्घाटन समारोह मं कौन उपस्थित था और कौन नहीं । राष्ट्रपति के हाथों भवन का उद्घाटन होना था यह भी गुम हो जायेगा, भवन की बुलद इमारत हर भारतवासी को गर्व करने का अवसर देगी । लोकसभा के इस नए भवन में एक वो सांसद भी बैठे थे जिनके ऊपर देश का नाम रोशन करने वाली महिला पहलवानों ने गंभीर आरोप लगाए हुए हैं । पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज भी की है । वैसे उनके ऊपर जो आरोप लगाए गए हैं वे सामान्य व्यक्ति को अब तक जेलों की सलाखों के पीछे पहुंचा चुके होते पर उन सांसद महोदय के साथ ऐसा नहीं हो रहा है । वे गले में ढेरों माला पहने घूम रहे हैं और उन पर आरोप लगाकर अपना कैरियर दावं पर लगाने वाली महिला पहलवान न्याय की भीख ऐसे मांग रही है जैसे कि कोई भिखारी भी किसी के दरवाजे पर भीख नहीं मांगता । एक माह से अधिक समय से उनका प्रदर्शन चल रहा है और पुलिस केवल विवेचना का राग अलाप रही हे । जाहिर है कि ऐसा पुलिस केवन अपनी दम पर नहीं कर सकती कोई तो शक्ति है जो पुलिस को ऐसा करने का बल दे रही है । जिस दिन नये संसद भवन को लोकार्पण चल रहा था और इस लोकार्पण में वे सांसद ब्रजभूषण सिंह जी भी उसका हिस्सा बन रहे थे लगभग उस समय अपने लिए न्याय मांग रही महिला पहलवानों को पुलिस किसी अपराधियों की तरह घसीट कर जेल ले जा रही थी । उनके प्रदर्शन स्थल को पुलिस ने अपने कब्जे में लंे लिया याने अब वे वहां प्रदष््र्रान नहीं कर पायेगीं । उनका धरना खत्म हो जाए तो क्या यह प्रश्न खत्म हो जायेगा कि ब्रजभूषण सिंह जी पर लगे गंभीर आरोप से वे बच गए हैं । हरियाणा की एक महिला कोच ने भी वहां के खेलमंत्री के ऊपर भी ऐसे ही गंभीर आरोप लगाये हें । उनका मुकद्मा न्यायालय के हवाले हो गया है पर जिस पर आरेप लगाए गए हैं वो अभी मंत्री बने हुए हैं और सत्ता सुख भोग रहे हैं । उस महिला कोच को भी सत्ता से न्याय नहीं मिला, वो तो न्यायालय के भरोसे अपनी लनड़ाई लड़ रही हैं । ऐसा ही मामला दिल्ली के जंतरमंतर पर चल रहा है । उन्हें भी न्याय कहां मिल रहा है । लोकंतत्र में न्याय की गुहार लगाने की आजादी है फिर इनकी इस आजादी का हनन ठीक उसी समय किया जाना जब लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन हो रहा था ? क्या वाकई महिला पहलवान अपने कैरियर को दांव पर लगाकर ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ झूठे आरोप लगा रही हैं । यदि ऐसा है भी तो पुलिस को कार्यवाही कर लेनी चाहिए कि आप एक सम्माीय व्यक्ति के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहीं हैं ? पुलिस ने तो ऐसा भी नहीं किया । उनको नार्काे टेस्ट कराने की चुनौती दी गई उन्होने उसे भी स्वीकार कर लिया । अब तो हल निकाला ही जाना चाहिए था, ताकि देश का भविष्य जो विदेशी धरती पर अपना कौशल दिखाकर हर भारतवासी का सीना चैड़ा करता है उसे बेइज्जत न होना पड़े । प्रर्दशनकारी महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा की जा रही जोरजबरदस्ती की फोटो अखबारों की सुर्खियां बनीं और वे फोटो भी उन फोटो के साथ मुख्यपृष्ठ पर लगाई गई जहां नए संसद भवन के उद्घाटन की फोटो लगी हुई थी । चिन्तन के लिए विषय तो छोड़ ही गया ऐसा दृश्य । चिन्तन का विषय तो दो हजार के गुलाबी नोट के बंद होने की घोषणा ने भी प्रस्तुत किया है । हर एक ने इस घोषणा को आश्चर्य के साथ सुना । ऐसा कैसे हो सकता है कि अभी-अभी अस्तित्व में आए इस नोट को चलन से बाहर किया जा रहा है । दअसल आम आदमी भविष्य की संभावनाओं की सोच के साथ अपने पास कुछ संचय करके रखता है । दो हजार का नोट बड़ा नोट है तो संचय में आसानी हो रही थी । आम घरेलू परिवारों में ऐसे नोटों का संचय किया जाना ब्लेकमनी की कैटेगिरी में नहीं रखा जा सकता । पिछली बार भी नोट बंदी हुई थी और हजार के पांस सौ के नोट बंद किए गए थे तब भी ऐसे ही घरेलू संचय करने वाले परिवार सबसे अधिक प्रभावित हुए थे और इस बार भी वे प्रभावित होगे । जिनके पास असीम धन है वे इसे ब्लेकमनी की तरह छिपा कर रखते हैं परे जो ‘‘रोज कमाओ और रोज खाओं’’ की स्थिति वाले होते हैं वे अपना पेट काटकर थोड़े-थोड़े रूप्ए बचा लेते हैं, एसी नोबंदी इन्हें ही सबसे अधिक प्रभावित करती है । दो हजार के नोटों को बदलने के लिए प्र्याप्त समय दिया गया है और नोट बदल भी लिए जायेगें पर इसके मायने किसी की समझ में नहीं आ रहे हैं । ब्लेक मनी को खत्म करने का तरीका हर बार नोट बंदी नहीं हो सकती । कुछ नये उपाय खोजे जाने चाहिए वरना ऐसे में हर भारतीय परिवार बरबाद होता चला जायेगा । दिल्ली में एक बच्ची की सरे आम हत्या कर दी गई पूरी क्रूरता के साथ । शाहनाबाद डेरी इलाके में तंग गलि में रात के लगभग नौ बजे की यह घटना है । उस नाबालिग पर चाकूआंें के 25 प्रहार किए गए, उसका सिर पत्थर से कुचला गया । इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि उस गलि से गुजरने वाले लोगों ने उस बच्ची को बचाने का प्रयास भी नहीं किया । सीसीटीव्ही फुटेज में लोग उस रास्ते से निकलते हुए दिखाई दे रहे हैं और वे बची पर चाकुओं से हमला करते उस दरिंदे को देख भी रहे हैं पर कोई उसे रोकने का प्रयास तक करता दिखाई नहीं दे रहा है । हमारा समाज संवदेनहीन होता जा रहा है । वह केवल तमाशा देखता है । इस घटना ने उन नामार्दों के खिलाफ सबसे ज्यादा आक्रोश भरा है जो सारी घटना के मूक गवाह बनकर रह गए । कमसे कम इतना तो वे कर ही सकते थे कि पुलिस को सूचना दे देते । वे समूह बनाकर भी उस दरिंदे का मुकाबला करते तो लड़की की जान बचा सकते थे । पर नामर्द बन चुके इस समाज से कोई उम्मीद रखना बेमानी है । कल को जब ऐसी घटनायें अपने साथ होती हैं तब वे चीख-चीख कर हमदर्दी लेने का प्रयास करते हें पर जब ऐसी घटनाओं को खुली आंखों से देखते हैं तो मौन हो जाते हें । वह लड़की चीख रही थी और उसकी आवाज तग गलि में गूंज भी रही थी पर लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर उसकी हत्या होने देते हैं । हत्यारा तो पकड़ ही लिया गया है, पर वह अकेला हत्यारा नहीं है, हत्यारे तो वे लोग भी हैं जो इस घटना को देखते रहे, सुनते रहे और अपनी नामर्दीगी को दिखाते रहे । पुलिस को इन लोगों के खिलाफ भी केस दर्ज करना चाहिए इन्हें भी हत्या में सहयोग करने की धारा लगाकर जेल के सींखचों के अंदर भेज देना चाहिए, विशेषकर वे लोग जो सीसीटीव्ही में उस घटना के समय वहां से निकलते दिखाई दे रहे हैं । जब तक समाज इन बेशर्मिंयो से भरा रहेगा तब तक किसी की भी सुरक्षा नहीं हो सकती, पुलिस हर जगह मौजूद नहीं रहती, हमार सुरक्षा तो हमारी जागरूकता ही करती है, पर ऐसे जगारूक लोगों का अभाव ही ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है ।

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