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हम कहां आ गये हैं, यूं ही साथ चलते चलते’

सम्पादकीय : मनमोहन शर्मा ‘शरण’

आप सभी को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) की हार्दिक बधाई  एवं अनन्त शुभकामनाएं ।  जीवन जीने का, स्वस्थ रहने का स्वआनन्द से परमानन्द तक की प्राप्ति का मार्ग दिखाने वाले भारत देश, जिसको पुन: विश्वगुरु बनाने का स्वप्न देखा जा रहा है ।  ऐसा हो तो सकता है किन्तु हमें अपने उसी मार्ग पर चलना होगा जो हमने पूरे विश्व को दिखाया था ।  अध्यात्म साधना अथवा मेडिटेशन करने के लिए एकाग्रचित होना परम आवश्यक है । योग के माध्यम  से न सिर्फ स्वस्थ तन अपितु स्वस्थ मन भी हो जाता है  । और यदि मन के घोड़े की लगाम आपने पकड़ ली और उसे साध  लिया तब बड़ी बड़ी साधना , आराधना  सफल हो जाती है ।  योग का एक अर्थ व्यायाम से लगाते हैं दूसरा जोड़ना भी है । योग के माध्यम  से अध्यात्म  से, साधना से, अच्छे विचारों से, अच्छे स्वास्थ्य की संभावनाओं से जुड़ जाते हैं ।  और यही जुड़ाव है जिसके कारण पूरे विश्व ने भारत की बात को माना और 21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जाता है ।

            बधाई  का एक और विषय है आपसे साझा करने को ।  हिन्दी भाषा को वैश्विक सम्मान दो प्रकार से मिला, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को तीसरा दर्जा मिला जो हम सबके लिए गर्व की बात है तथा दूसरा गीताजंलि जी प्रसिद्द लेखिका साहित्यकार के उपन्यास ‘रेत समाधि’ को बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ है । बधाई ! यह एक पक्ष हमने देखा कि हमारी प्रिय भाषा हिंदी ने जन–जन की प्रिय बनते हुए वैश्विक स्तर पर छलांग लगाई है और अपने लिए उचित स्थान बना रही है । वहीं अपने घर में हमने इसे मातृभाषा तो बनाया पर राष्ट्र भाषा बना पाने में सफल नहीं हो पाए ।

            अब बारी है आईना देखने की––– गाने के बोल हैं––––‘हम कहां आ गये हैं–––यूं ही साथ चलते चलते’–––तथा गीत जो भारत की /धरती और आकाश को गुंजायमान कर देता है,   ‘है रीत जहां की प्रीत सदा––––’’ आज क्या हो गया जहां के कण–कण में आपसी सद्भावना–प्रेम–सत्कार बसता था वहां आज गुटों में बंटकर लोग आमने–सामने खड़े होने लगे, मरने–मारने पर उतारू होने लगे । यह लिखते लिखते मेरी आँखें नम हैं और कह उठी हैं कि किसकी नजर लगी है इस सोने की चिड़िया को । टेलीविजन चैनल पर वाद–विवाद होते हैं । सबको अपनी बात कहनी होती है । यदि आप सच भी बोल रहे हैं लेकिन असभ्यता से, तो वो चुभता है । सभ्यता संस्कृति हमारा गहना है जिस पर स्वार्थ का मैल–मिट्टी चढ़ गया है जिसको फिर से निखारने की आवश्यकता है ।

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