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बुलडोज़र की सार्थकता

कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार एवं संरक्षक उत्कर्ष मेल)

आजकल अवैध क़ब्ज़ों को लक्षित करते हुए बुलडोज़र पर चर्चा आम है

अनश्वर प्रेम को नज़रअंदाज़ करती नश्वर सत्ता का ही तो ये परिणाम है

रक्त मास से बनी मानव देह की ज़रूरतें उतनी बड़ी नहीं हैं जितनी बड़ी उसकी अधिग्रहण की चाहतें हैं। मानव जीवन का लुत्फ़ उठाने के लिए हमें जीवन के उद्देश्य पर गौर करना होगा।

बुलडोज़र के ख़ौफ़नाक मंज़र का क़लम सँस्मरण भरती है

सोने की चिड़िया पिंजरे में नहीं आकाश में विचरण करती है

जीवात्मा वही सद्गति पाती जो सच का अनुसरण करती है

हर रोज़ एक अलग जगह पर बुलडोज़र चलने की खबर आती है, जिससे कितने ही परिवारों की रोज़ी रोटी छिन जाती है।विश्व की चेतना को न जाने किसकी नज़र लग गई है, जो आजकल अपनी नश्वर शक्तियों के प्रदर्शन की विध्वंसात्मक दिशा की ओर चल पड़ा है।जीवन की पगडंडियों पर चलने के लिए कभी बने बनाए रास्ते नहीं मिलते, हमें अपने रास्ते ख़ुद बनाने पड़ते हैं।मनुष्य की जैसी सोच होती है मनुष्य वैसा ही बन जाता है।क्यूँ न हम अपनी सोच को प्रकृति की निःस्वार्थ ऊर्जा से जोड़ दें,जो हर पल सृष्टि को निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करती है।हर जीवात्मा में अपने समय का चलता फिरता विश्व कोश बनने की संभावना होती है,लेकिन इस उपलब्धि का ताज किसी भी मस्तक की मणि तभी बन सकता है जब निरंतर स्वाध्याय का अनुक्रमण जारी रहे।विश्व के किसी भी कोने का इतिहास खंगाल कर देखें तो हम पाएँगे कि स्वार्थों ने कभी किसी का भला नहीं किया।अधिकांश लोग राहतों की हसरत के लिए इब़ादत की ओर कदम बढ़ाते हैं।इब़ादत किसी भी व्यक्ति वस्तु या स्थान पर अपने आधिपत्य की घोषणा का बिगुल नहीं बजाती बल्कि सब में रब का दर्शन करते हुए परस्पर सहयोग की गवाही देती है।भक्ति कभी किसी वस्तु का संहार नहीं करती, न ही किसी मानवीय संवेदना पर प्रहार करती है।प्रकृति के विरूद्ध बहती धारा को तो खारे सागर में ही समाना पड़ता है।जबकि समय की लय के साथ तालमेल बैठाकर समय के बहाव संग बहने बहने वाली जीवात्मा अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए सांसारिक मोह-भ्रम से आज़ाद हो जाती है।

अभ्यास जारी रहे हर पल ईश-स्तुति का

पासपोर्ट ज़रूरी हरि-इच्छा की अनुमति का

एकमात्र यही रास्ता है जीवात्मा की सद्गति का

बुलडोज़र चलाना ही है तो अपनी उस ग़ुलाम सोच पर चलाएँ जो भद्दे इरादों के इशारों पर मानवता पर प्रहार करती है, उस वाणी पर चलाएँ जो मानवीय संवेदनाओं पर वार करती है। मानव जीवन का उद्देश्य मानव जाति के प्रति कर्तव्यों के निबाह की दिव्य श्रृंखला है जो मानव उत्थान का बीड़ा उठाने की जागरूकता का संदेश देती है।

जहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता था डेरा

किधर उड़ गई सोने की चिड़िया कहाँ खो गया भारत मेरा

कविता मल्होत्रा

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