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व्यंग्य –  नई भर्ती के तहत अब सीधे महर्षि बनाए जाने की योजना…!

 राजनीति में केचुल बदलते नेताओं के पीछे चलने वाले चच्चा और कक्का को आजकल सवर्ण बनने का चस्का लगा है । दलित ही दलित का दुश्मन है ऐसा न मानने वाले आजकल राजनीति के सांप , नेवलों और कौवों को अपना दोस्त मान बैठे है ऐसे नेवलों को  दलितों ने अपना मसीहा सांपों को  ओबीसी ने अपना सरताज और कौवों को अल्पांख्यको ने अपना बादशाह मान लिया है।  उधर इनकी परेशानी देखते हुए ब्राह्मण महासभा के पंडित जी चौपाल लगाई और बताया कि मोरिया के रामचरित मानस के विरोध और कमिनी कामिनी के मनुस्मृति को जलाते देख इनके  लिए इस चुनाव में  शानदार मौका है  , मात्र 101 रुपए के रजिस्ट्रेशन शुल्क में  इन सबको ब्राह्मण बनाया जायेगा । इसके बाद 5 रुपए मासिक देकर आजीवन ब्राह्मण बने रह सकते हैं और 1001 रुपए रजिस्ट्रेशन शुल्क देने वालों महर्षि बनाया जाएगा। जो डल्लीत लोग त्योहारों पर नए कपड़े बाभनों की देखा देखी  ना जाने कैसे बिगाड़ लेते हैं ,फिल्मों को देख देख कर अब तो बिल्कुल नई सफेद जोड़ी भी पहिनना स्टेटस सिंबल बना लिए है और जिन्हे ऊपर के कपड़े तो छोड़ो , फटे अंडरवियर सौ छेद वाली बनियान होली से तीन दिन पहले तीन दिन बाद तक पहिनने को सम्हाल कर रखवाते रहते थे वो भी अब ब्राह्मण बनने के लिए छटपटा रहें उन्हे भी ब्राह्मण बनाया जायेगा  । उधर हमारे सवर्ण रिपोर्टर ने बताया कि बुध  बुध कहने  वालों के  स्कूलों में कम से कम एक बात अच्छी होने लगी है , अब स्कूल में  होली अनुशासनहीनता की सीमा से बाहर निकाल कर दल्लित टीचर्स मिड डे मील खाने लगे हैं वरना बतौर नेवला नेता, दल्लित्तों को मौका नहीं दिया जाता था । उधर पियरका चच्चा बताए की सुबह पेपर देने गए बच्चे होली खेल कर हुरियारे मूड में ही स्कूल से लौट कर आये जिन्होंने ब्राह्मणों को पियरका रंग लगाया किंतु ब्राह्मणों ने नीला नही लगवाया जो कि संविधान  की अवमानना है और बस पियरका लगाए है तो इसमें मोदी की कोई चाल है । उधर अपने योगी बाबा ने कहा कि हर अग्नि बुराई को जलाने के लिए नहीं होती, होलिका दहन राजनीति के बुआ के बबुआ के प्रति त्याग को स्मरण करने के लिए घटना का प्रत्यक्षीकरण है  । यूपी के दल्लीत लोग हमेशा ही होलिका बुआ की जय  बोल भीमवादी होने का प्रतीक देते है  , आज भी हिंदू भगवा धारी भष्मी को मष्तक पर लगा कर , भक्त प्रह्लाद जी को बचाने के लिए होलिका बुआ पे प्रति सम्मान व कृतज्ञता प्रगट करते हैं । उधर टीपू ने कहा कि पिछले दिनों  , वो बाजार में कहीं चले जा रहे  थे , तभी पीछे से घुर्र की कुत्ते जैसी आवाज आती , उधर चारो तरफ से उठी हंसी की आवाजों के बीच वो साइकिल से एकदम से हड़बड़ा कर नाच से जाते और नीचे गिर जाते है  । तभी पांडेय जी ने टीपू को सम्हालते हुआ कहा की अब कितना नीचे गिरोगे भैया। उधर पप्पू भैया को कश्मीर में आतंकवादी से डर नहीं  लगा पर पान के डब्बे में छेद कर उसमें फँसाई सुतली जिस पर कि बिरोजा लगा हुआ होता था उसकी आवाज सुनकर डर गए । पीछे से आकर पवन खेड़ा ने पिडली के पास उस सुतली को रगड़ कर उधर फेंका ,खींचने से पैदा आवाज से डरकर पप्पू न्यूयार्क पहुंच गए और दे बुराई दना दन  । पिछले दिनों पता लगा कि मैनपुरी और एटा में होली पर के मजाक 8 दिन पहले से और दस दिन बाद तक शुरू हो जाता है ।राजनीति के मफलर चच्चा उर्फ खांसी सिरफ वाले जरीवाल सेठ  ने बताया कि उनकी होली में, बाजार में नोट पड़ा हुआ होता था , लपक कर  कोई उठाने को झुकता कि पतले धागे से बंधे उस नोट को खींच लिया जाता था । शर्मिंदा हो कर खींस निपोरते उस राहगीर से होली का चंदा  वसूल लिया जाता था । बाजारों में होशियार लोग बीच में चलते थे , किनारों से चलने वालों की टोपी या साफी गौख में बैठे हुए लड़के कांटे से खींच लेते थे , चंदा देने पर ही वो वापस मिलती थी । स्कूलों में आलू के ठप्पों से चोर , 420 आदि छापने वाले लड़के भले ही मास्साब से खूब पिटते  , लेकिन वे क्लास में अपनी अलग ही हनक बना लेते थे । उन्होंने बताया की विकास के लिए  रात्रि  रात भर जाग कर एमसीडी की पहरा देने की होती है तब विकास होता है । कोई कितना भी गरीब हो या पैसे वाला मौका देखते ही । चाय पान के खोखे , खोमचों के तख्त , दुकान- गोदामों की टटिया , नौहरे के छप्पर आदि जो भी हाथ लगता गड़प जाता है । मोहल्ला क्लिनिक  की इस भीड़ में लखपति सेठ का लड़का भी होता तो ठाकुर साब का भी कुमर , दरोगा जी का भी बेटा होता तो डॉक्टर साब का भी नजाकत दार लौंडा भी शामिल रहता था । अब इस प्रक्रिया में इन पर चाहे गाली पड़ती या जूते , कोई भी चिंता नहीं , कोई भी नांक का सवाल नहीं  । सब के सब बस ही ही , खी खी करके भागते नजर आते थे । इसी रात एक काम बहुत निम्न श्रेणी का हुआ करता था, पहले खुड्डी वाले पाखाने हुआ करते थे, कुछ लड़के मटकियों में मैला भरवा के रख लेते और किसी की छत पर चढ़ कर आंगन में तो किसी के दरवाजे पर उस मटकी को फुड़वा देते थे । ये मजाक बेहद गन्दा था , क्योंकि ये सब कुछ घर की महिलाओं को झेलना पड़ता था , छत से फेंकी हुई मटकी में भरे मैले की छींटें दीवारों पर बहुत ऊंची ऊंची जाती थी। भयंकर दुर्गंध में वो सारी सफाई महिलाओं को ही करनी होती थी । उधर सिसोदिया  बोला जिसके घर में हैण्डपम्प है वो पानी मिलाएं बिना पिए और दिल्ली  में तो सफाई हो भी जाती है , अन्यथा तो यूपी बिहार में ठेके पर गन्दगी को देख देख उबकाई आती है ।

              ___ पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर

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