Latest Updates

स्वतंत्रता दिवस

.{कविता मल्होत्रा, संरक्षक, स्थायी स्तंभकार}

स्वतंत्रता दिवस की सभी को हार्दिक बधाई

रक्षा सूत्र अपने विचारों पर बांधें न हो जग हंसाई

सावन की फुहार अपने साथ अनगिनत त्योहारों का पैग़ाम लेकर आई है।सदियों से बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधती आईं हैं।परस्पर सुरक्षा की ये मन्नतें दोनों ओर से चलतीं हैं और दुआ बनकर एक दूसरे पर अखंडित विश्वास में पलतीं हैं।

कब तक रहेंगे सब परिंदे मासूम जिन्हें लोभ-मोह भटकाए

समूचा अंबर अपना वजूद जो अंतर्मन प्रकाशित कर पाए

यही रक्षा सूत्र अगर वतन की हरियाली की ओर से वतन की अवाम को बाँध दिया जाए तो शायद अखंडित स्नेह बँधन का एक नया समीकरण उजागर हो जाए।

✍️

हर गली में आज़ादी दिवस का आयोजन

फिर क्यूँ हर मन में ग़ुलामी का क्रूर क्रंदन

✍️

आख़िर क्या वजह है कि मासूम परिंदे जिनमें विवेकानंद बनने की संभावना है, उन्हें बरगला कर अलगाववादिता के आकाश पर उड़ान भरती बारूदी पतंगों की डोर थमा दी जाती है।किस कीचड़ में बह कर गंगा स्नान के स्वप्न देख रहा है देश का बचपन? बेरोज़गारी की आड़ में बहें या अपनी स्वार्थी प्रवृत्तियों की बाढ़ में बहें, ये दिशाहीन बहती धाराएँ महासागर में विलीन होकर भी, सागर से एकाकार नहीं हो पाएँगी।

✍️

किस बात से डरता है बँधु

तू तो ख़ुद ईश्वर की रचना है

जग के फ़िज़ूल दिखावे छोड़

तुझे रब की निगाहों में जँचना है

✍️

वो शिक्षा किसी काम की नहीं जो मनुष्य का अपना ही भला न कर सके।शिक्षित होने का प्रमाणपत्र अपने घर की दीवारों पर सजाकर अगर बाहरी प्रभावों की ग़ुलामी से अपनी प्रगति का इतिहास लिखने की कोशिश की जाएगी तो उसे कौन पढ़ेगा?

✍️

क्यूँ चाहिएँ मन का बोझ हल्का करने को पराए काँधे

अपनी आज़ादी का रक्षा सूत्र अपने ही ज़हन पर बाँधें

✍️

अटल बिहारी जी द्वारा रचित ये पंक्तियाँ हर किसी को चिंतन की ओर अग्रसर करते हुए ये सोचने पर मजबूर करतीं हैं कि हमें अपने ही अँतर्मन के प्रकाश को प्रज्वलित करना होगा, ताकि सही दिशा का मार्गदर्शन हमें

अपने ही अंदर की आवाज़ से मिले –

कौरव कौन

कौन पांडव,

टेढ़ा सवाल है|

दोनों ओर शकुनि

का फैला

कूटजाल है|

धर्मराज ने छोड़ी नहीं

जुए की लत है|

हर पंचायत में

पांचाली

अपमानित है|

बिना कृष्ण के

आज

महाभारत होना है,

कोई राजा बने,

रंक को तो रोना है|

✍️

निर्जन देहाती इलाक़ों में आज भी प्राथमिक सुविधाओं के बग़ैर अस्त व्यस्त जीवन विचर रहे हैं, जिन्हें केवल

चुनावों के समय वोट बैंकों की तरह इस्तेमाल किया जाता है।ज़रा सी बरसात से घरों में घुसकर पानी कितने विषाणु पनपाता है, ये देखने के लिए कोई भी चुना हुआ प्रतिभागी नहीं आता है।

✍️

सच तो कल भी कड़वा था,और सच आज भी कड़वा है

क़त्ल मानवता को न करो,मारो स्वार्थों को जो भड़वा है

✍️

जब तक कथनी और करनी में एकरूपता नहीं आएगी तब तक दोहरे चारित्रिक संगठनों से मानवता पराजित ही कहलाएगी।भारतीय संस्कृति के इतिहास में अनगिनत सीप के मोती हैं लेकिन उन्हें आत्मसात करने वाली भावी पीढ़ी जाने किस डगर पर चल रही है, जहाँ से न तो उस की वापसी का कोई रास्ता है और न ही सुधार की कोई गुंजाइश है।

माना कि हम सब नियति के खिलौने हैं, वह जैसा चाहती है हमसे वैसा ही खेल खेलती है, लेकिन हम ये कैसे भूल सकते हैं कि नियति ने ही मानव रूप में हमें ये अवसर दिया है कि अपने जीवन का उद्देश्य समझ सकें और मानवता के उत्थान में सहयोगी बनें।

राजनीति को दिलों में न बसाया जाए, और वतन की आबरू को सड़क पर न लाया जाए, फिर आज़ाद सोच के जोश से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाए।

✍️

जय हिंद जय भारत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *