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विदा दो दिल्ली (सुमनमाला ठाकुर)

(राज्य सभा डाइरेक्टर, अंग्रेज़ी की प्रोफ़ेसर,

सुमनमाला ठाकुर, के दिल्ली शहर के आख़िरी कुछ पलों की अभिव्यक्ति, तमाम दिल्ली वसियों के नाम)

तीन दशको से ज़्यादा मेरे आसपास,

हरदम मंडरातीरही हो, तुम दिल्ली।

मेरी सुबहों की रोज़ाना-रूटीन हर दिन,

और शामों की वो गुनगुनाती थकन,

फिर भी थे आँखों में सपने हज़ारों, और संग मेरे केवल तुम थीं, दिल्ली।

   घर और घर के, लोगों से रही दूर,

   तुमसे जितनी बनी, निभाई

    तुमने, दिल्ली

   मेरे सपनों के पंख, जब जब थे भींगते,

तुमसे ही राहत की दुहाई की, दिल्ली।

     कच्चे मेरे मन को,जाने क्या ललक थी कि, बढ़िया सी नौकरी छोड़ आइ मैं दिल्ली।

तुम्हारी मिट्टी से विदा लूँ मैं कैसे,

तक़दीर मेरी तुमने बनाई है, दिल्ली।

तुम्हारी हथेली मेरे हाथों से छूट रही

एक झप्पी मुझे दे, विदाई दे दिल्ली।

     अलविदा दिल्ली

संकलन कर्ता : नूतन ठाकुर(छोटी बहन)

रेडीओ  अनाउन्सर और टी वी ऐक्टर

 Spice Radio 1200am

 वैंकूवर/ कनाडा

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