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मेरा गांव बदल रहा है,

अम्बरीश श्रीवास्तव

मेरा गांव बदल रहा है, सोया हुआ रक्त उबल रहा है।

पहले मिलजुल कर रहते थे, अब एक दूसरे को निगल रहा है ।।

सुना था मकान कच्चे है पर रिश्ते पक्के होते थे गांव में ।

बच्चे बूढे, हारे थके श्रमिक किसान सब खुश थे छाव में ।।

आज छांव छितर गई है, रिश्तों की डोर बिखर गई है ।

गांव के लोग भी प्रपंची हो गए, बुद्धि कुछ ज्यादा निखर गयी है ।।

बड़ो के मन मे बच्चो के लिए मोह नही है, बच्चो में भी द्रोह कही है।

क्षमा, ममता, प्रेम दुलार सब लुप्त, अब मानवता नहीं है ।।

क्रोध, द्रोह, छल, धृणा, षड्यंत्र, कुटिलता अब हर मन में टहल रहा है ।

आज ही मुझे एहसास हुआ, की मेरा गांव अब बदल रहा है ।।

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