जीवन के अनुभवों की खान पिता
धूप पिता , छांव पिता
मां है धरती तो आसमां पिता
सर उठा कर गर्व से चल पाऊ
जिस से पाया है वो ज्ञान पिता
कैसे धन्यवाद करू पिता का
मेरे जीवन का अभिमान पिता
शत शत नमन मंगला का
कर लो स्वीकार पिता
मन में भाव छुपाएं लाखों
कर गए क्यों प्रस्थान पिता
याद है मुझ को अब तक
कपड़े का थैला लेकर
दूर हाट जब जाते मोल भाव कर
घर का राशन लाते पिता
छोटी, बड़की , मां, दादी
हम सब की खुशियों का थे मेला पिता
नीम कभी शहद कभी
तीखी मिर्ची सी डाट पिता
मां की ममता तो जग जाहिर है
जिसके आगे सारी मन्नत पूरी
त्रिदेवों का वो आशीष पिता ।।
रचनाकार – मंगला रस्तौगी नई दिल्ली खानपुर – 62
Bahut khoob kaha , jeevan ki sachchai hei , Samjh zara dyrr say aati hei. Bhaav say vibhor ho gaya maan, Bachpan bhi ankho may utter aaya .🙏🙏🌹🌹🌹🌹💝💝💝💝💝