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हाहाकार का जिम्मा कौन लेगा ? ? ?

मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (प्रधान संपादक)

फरवरी 2021 आते आते भारत में कोरोना की पहली लहर मानो शांत सी हो चली थी और लगने लगा था कि अब जल्द ही ऐसा भी समय आएगा जब देशवासी खुली हवा में बंधन मुक्त होकर श्वांस लेंगे और फिर वही मिलने–जुलने का माहौल बनेगा और समारोह–जलसे आदि में भाग ले पाएंगे जो सौहार्द को, आपसी भाईचारे को, मेलमिलाप को बढ़ावा देता है ।
कोरोना के नाम पर चिंगारी भर बची थी पहली लहर की । लेकिन न दो गज की दूरी और न ही मास्क को जरूरी समझा जाने लगा और ऊपर से पांच राज्यों में चुनावों के मद्देनजर ताबड़तोड़ रैलियां जहां कोरोना गाईडलाइन को सरकार/शासन के समक्ष अनदेखा किया गया । यदि महाकुम्भ में इतनी बड़ी संख्या को एकत्र् करने को टाला जाना संभव नहीं था तो व्यवस्थित तो अवश्य ही किया जा सकता था ।
और देखते ही देखते चिंगारी आग में परिवर्तित हो गर्ई और मार्च अन्त आते–आते तेज रफ्तार से कोरोना के केस बढ़ने लगे जिसे कोरोना रिर्टन का टाइटल दे दिया गया और इसे कोरोना की दूसरी लहर बताया गया ।
इस बार क्या–क्या हुआ, जो न कभी सोचा था, न कल्पना ही की जा सकती है । एक दिन में 2 लाख / 3 लाख या कहें 4 लाख तक कोरोना पोजिटिव केस आने लग गए । राज्यों ने अपने प्रदेश की जनता के हित को देखते हुए लाकडाउन लगाना शुरू कर दिया । एकमात्र् यही रास्ता बचा जो था कोराना रफ्तार को धीमा करने का ।
आँकड़ा चाहे जो बताए कि आज टोटल केस इतने हैं, मृतकों की संख्या इतनी है किन्तु सच इतना भयावह रहा है वह इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शमशान घाटों में भी लाईन/बुकिंग वाली स्थिति आ गई और लोगों को अपने परिजनों का दाह संस्कार तक अपने गांवों में जाकर करना पड़ा अथवा 3 दिन तक या इससे भी अधिक इंतजार करना पड़ा ।
यह एक बात है दूसरी यह कि इस बार युवाओं पर अधिक प्रलय बनकर टूटा और 40 से 55 वर्ष के कोरोना संक्रमित मरीज अपने सभी अरमान दिल में लिए, अपनों से सदा के लिए विदा ले गये । इस असहनीय पीड़ा से मैं स्वयं और मेरा परिवार भी गुजरा है । मेरा होनहार अनुज मनोज कुमार शर्मा, जिसने कोरोना से 19 दिन तक संघर्ष किया और 20वें दिन हमें हमेशा के लिए छोड़ गया ।
सरकार का ध्यान मैं केंद्रित करना चाहूंगा कि यह मेरे अपने ही परिवार, मित्र्, रिश्तेदार व पड़ोस में 10 से अधिक युवाओं को अपनी जीवन यात्र को बीच में ही अधूरी छोड़ कर जाते देखा है तो दिल्ली में या पूरे भारत में यह संख्या हजारों मे या इससे भी कहीं अधिक होगी, इसे महसूस किया जा सकता है ।
कितने जोर–शोर से जन–धन खाते खोले गये और खूब अपनी पीठ थपथपाई गई । यहां मैं आँखों में डर, दिल में युवाओं के जाने के दर्द के साथ चिल्ला–चिल्लाकर बता देना चाहता हूं कि देश की जनता ने ‘जन’ और ‘धन’ दोनों की हानि को झेला है । विशेष यह कि अब कोई नहीं सामने आता ‘……….. है तो मुमकिन है’।
जन की तो हानि हुई जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती लेकिन जो आवश्यक है उतना धन लगता तो भी समझ में आता है । रेमिडिसिवर इंजेक्सन (जबकि यह एकमात्र् जीवन रक्षक नहीं, साबित हुआ) 900 रुपये से भी कम कीमत का है, जिसको मरीजों की जान बचाने हेतु 10 / 20 / 30 या 40 हजार रुपयों में खरीदा गया । ऑक्सीजन सिलेंडर भी चार गुणा / पांच गुणा या उससे भी अधिक मूल्य देकर लोगों ने खरीदा । यहां मैं आंखों देखी कमेंटरी नहीं कर रहा । यह सब हुआ है । इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? क्या कालाबाजारी / मुनाफाखोरी को रोका नहीं जा सकता था । एक ओर पूरे विश्व में हमारी पहचान ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के भाव को आत्मसात करने की है, दूसरी ओर इतनी कालाबाजारी । हम बातें तो बहुत कर लेते हैं – ताल ठोक के किन्तु कथनी और करनी में समानता क्यों नहीं कर पाते ।
मैंने बहुत नजदीक से अपने भाई को तड़फते हुए /संघर्ष करते हुए देखा, महसूस किया है और ऐसे हजारों भाई / पिता / पुत्र् / पत्नी –बहन – माँ की दशा रही है । विशेषकर अस्पतालों में जाकर वापिस आना मानो लॉटरी निकलने जैसा हो गया ।
इस पूरे वातावरण में समस्या 25 प्रतिशत है और डर 75 प्रतिशत रहा है जिसने एक बार कोरोना पॉजिटिव सुना मानों मौत सिर पर मंडरा रही है । मैंने अपने दर्जनों परिचितों को घर पर ही रहकर ठीक होते भी देखा है जिन्होंने सकारात्मक विचार रखते हुए अपना समय बिताया, आवश्यक दवा लीं और ठीक हुए ।

लोकतंत्र् में जनता ही सबकुछ होती है, वही ताज देती है और वही मोहताज भी कर देती है । अब ताज चाहिए या गद्दी पर बने रहना है तो जनता का साथ / आशीर्वाद जरूरी है इसलिए राज्य सरकार अपनी ओर से तथा केंद्र सरकार ने भी कोरोना से पीड़ित होकर जिनके माता–पिता की मृत्यु हुई है उन्हें 10 लाख तक की एकमुश्त राशि (23 वर्ष का होने पर) तथा मासिक भुगतान 23 वर्ष से पहले देने की घोषणा की है ।
मेरा सरकार से निवेदन है कि सांत्वना राशि प्राप्त करने की प्रक्रिया सरल की जानी चाहिए जिससे जिन परिवारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है उन्हें कठिनाइयों का सामना न करना पड़े । और मीडिया पर सकारात्मक पक्ष दिखाया जाना चाहिए और भयमुक्त रहने हेतु विचार/डॉक्टरों की सलाह दिखाते रहना चाहिए । क्योंकि हम सभी जानते हैं कि डर के आगे ही जीत है–––– ।

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