धरती को नरक बनाने वालों
चले हो चांद-सितारों के सफर पर
रहना धरती पर ही है
कब तक उडो़गे लगाकर यांत्रिक पर ।
मालिक जाने क्या होगा सितारों का
गर बस गये तुम
क्या निकल पडे़ हो प्रदूषण, जनसंख्या
और सर्वनाश करने आसमान पर ।
तुम चाहते तो बना सकते थे
धरती पर स्वर्ग
किन्तु तुम्हें भाता है नरसंहार का खूनी सफर ।
कीडे़-मकोडे़ से बद्तर
कचरे का ढेर कर दिया जमीन को
अब चले हो ग्रहों की नई डगर पर
खोज कर सकते हो नये सितारों की
आदमी हो रहना तो है ज़मीन पर ।
पृथ्वी का सुधार करो,
करो इसका उद्धार
जीना-मरना सब होता है
इसी ज़मीन पर ।
देवेन्द्र कुमार मिश्रा