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और बचपन खो गया

नीम पर बैठे पंछियों की चहचहाहट

तालाब मे झिलमिलाते दीपों की जगमगाहट

बचपन,सुनहले सपनों का एक रेला

सुहानी यादों का बढ़ता एक कारवाँ

नीले अंबर में उन्मुक्त पंछियों को उड़ते हुए देखना

मानो आगे बढ़ने का संदेश दे रहे हैं

आसमान की बुलंदियों को छूने का  सन्देश

घूमती हुई उल्काओं को जानने का संदेश

सूर्य की ऊष्णता को समाहित करने का संदेश

चाँद की शीतलता को महसूस करने का संदेश

अनगिनत तारों की गणना का  सन्देश

टिमटिमाते तारागणों के विचलन का संदेश

आकाशगंगा को,सप्तर्षियों को देखने का ,समझने का सन्देश

हसरत थी गायत्री पंख लगाकर उड़ने की

अम्बर के तिलस्मो को जानने की

ध्रुव तारे को छूने की

क्षितिज पर पहुँचने की

धरा व नभ के मिलन को देखने की

उसकी भव्यता को आत्मसात करने की

पर वह हो न सका

और बचपन खो गया

श्रीमती गायत्री ठाकुर

सेवानिवृत्त शिक्षिका

धनारे कॉलोनी नरसिंहपुर

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