Latest Updates

प्रेम का पनपना

अगर तुम महसूस कर सकते हो

बारिस की बूंदों को अपने तन पर

तो तुम महसूस कर सकते हो

प्रेम को भी उन्हीं बूंदों की तरह

प्रेम कोई बाहर की वस्तु नहीं है

यह तुम्हारे भीतर ही पनपता है

बशर्ते तुमने इसे पनपने दिया हो

प्रेम के पनपने के लिए जरूरी है

अनुकूल वातावरण का होना

अनुकूल परिस्थितियों में यह

मुलायम दूब की तरह

स्वतः पनपने लगता है

जैसे हरी घास आँखों को चैन देती है

वैसे ही प्रेम भी मन को सुकून देता है

प्रेम और प्रेम के बीच

एक अलिखित करार होता है

जैसे बूंद-बूंद का करारा है

धरती से भी और दूब से भी

©डॉ. मनोज कुमार “मन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *