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सदियों तक पीड़ा सहकर …..

सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है

घना उजाला दिखता बाहर , भीतर तो तन्हाई है ।

अंतस् में कई प्रश्न गूंजते , क्या ये पीर पराई है

रूखे- सूखे रिश्ते ढोना,ये भी तो इक सच्चाई है

सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।

तन पूरा ,मन रहा अधूरा, कितनी ये गहराई है

हार जीत की रीत झूठी ,ये सच्ची बात सिखाई है

सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।

मरुभूमि में मृगतृष्णा की कथा भी  तो दिखलाई है

सिमटी दुनिया ,बिखरा जीवन फिर भी क्या बुराई है

सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।

अंजु मल्होत्रा

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