Latest Updates

छाया है पिता

बरगद की घनी छाया है पिता

छाँव में उसके भूलता हर दर्द।

पिता करता नहीं दिखावा कोई

आँसू छिपाता अन्तर में अपने।

तोड़ता पत्थर दोपहर में भी वो

चाहता पूरे हों अपनों के सपने।

बरगद की घनी छाया है पिता

छाँव में उसके भूलता हर दर्द।

भगवान का परम आशीर्वाद है

पिता जीवन की इक सौगात है।

जिनके सिर पे नहीं हाथ उसका

समझते हैं वही कैसा आघात है।

पिता का साथ  कर देता सहज

मौसम कोई भी हो गर्म या सर्द।

पिता भी है प्रथम गुरूदेव जैसा

सिखाता पाठ है जीवन के सही।

दिखाता है कठोर खुद को मगर

होता है कोमल नारियल सा वही।

पिता होता है ईश्वर के ही सरीखा

झाड़ता जो जीवन पर से हर गर्द।

  डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”

       दिल्ली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *