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हिंदी लाओ देश बचाओ समारोह 2022

हिंदी लाओ देश बचाओ समारोह 2022 का शुभारंभ प्रातः देशभर के सहित्यकारों व विद्यालयी छात्र-छात्राओं की नगर परिक्रमा से हुआ। हाठों में पट्टिकाएं लिए बेंड बाजों की मधुर ध्वनि के साथ गगनभेदी उद्घोषों से माँ हिंदी का महिमा गान किया गया।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता जनार्दन रॉय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ बलवंत शांतिलाल जानी, राजकोट, गुजरात ने की। मुख्य अतिथि जनार्दन रॉय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सारंग देवोत रहे। श्रीमती बीना जैन दीप सेशन जज भीलवाड़ा, वरिष्ठ साहित्यकार अमरसिंह वधान, डॉ सुरेश ऋतुपर्ण, विनय कुमार पाठक, पंडित मदनमोहन शर्मा अविचल विशिष्ट अतिथि रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ वीणापाणि, प्रभु श्रीनाथ जी व कीर्तिशेष श्रद्धेय बाबूजी भगवती प्रसाद जी देवपुरा के चित्र के पूजन माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन से हुआ। श्री हरिओम हरि ने सरस्वती वंदना की। श्रीनाथ वंदना और ब्रज वंदना श्री विट्ठल पारीक ने की। सभी अतिथियों का शॉल व उत्तरीय से स्वागत अभिनंदन किया गया।

दिल्ली से आई कत्थक नृत्यांगना  डॉ समीक्षा शर्मा और उनके शिष्य श्री प्रदीप, श्री मनप्रीत, श्री सुमित ने कत्थक के तोड़े, ठुमरी व शिव आराधन की सुंदर प्रस्तुति दी गई। इनकी नृत्य प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया। दर्शकों ने आकाश भर तालियों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।

श्री हरिलाल मिलन द्वारा रचित हिंदी भाषा गान का सामूहिक गायन किया गया।

हिंदी उपनिषद के अंतर्गत “हिंदी आंदोलन और साहित्य मंडल” विषय पर श्री विट्ठल पारीक जयपुर ने, “हिंदी कल-आज और कल” विषय पर डॉ अशोक कुमार गुप्ता, भरतपुर, राजस्थान ने व “अमृत महोत्सव: राष्ट्रभाषा संकल्प” विषय पर डॉ सुषमा विश्वनाथ कोर्डे, पुणे, महाराष्ट्र ने आलेख वाचन किया।

हिंदी हुंकृति के अंतर्गत प्रदत्त पंक्ति “हिंदी भारत का दर्पण है” पंक्ति को केंद्र में रखते हुए। हरिओम हरि, यशपाल शर्मा यशस्वी, बजरंग बली शर्मा, राजेन्द्र अनुरागी ने अपनी रचना की प्रस्तुति की।

विशिष्ट अतिथि विनयकुमार पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी संस्कृत की संस्कृति, प्राकृत की प्रकृति व अभ्रंश की आंचलिकता है। हिंदी राजाश्रय की मोहताज नहीं है। लोकाश्रय से यह राष्ट्रभाषा है। भारतीय भाषाओं के समन्वय से हिंदी बहुत समृद्ध भाषा बनी है।

बीना जैन दीप ने अपने वक्तव्य लोक जागरूकता की बात की उन्होंने कहा कि बीमा आदि कम्पनियों के प्रपत्र केवल अंग्रेजी में ही क्यों होते हैं हम यह संकल्प क्यों नहीं लेते कि ऐसे प्रपत्र हिंदी में भी होना चाहिए। चिकित्सक की पर्ची, बिल बुक दवाइयों पर हिंदी में लिखा होना चाहिए। श्री सुरेश ऋतुपर्ण ने हिंदी के लिए इच्छाशक्ति की कमी बताते हुए कहा कि हिंदी के प्रति हमारा दृढ़ निश्चय होना चाहिए।

डॉ अमर सिंह वधान ने कहा चंद कोयले अगर जल उठे तो बाकी गीले कोयले भी आग पकड़ लेते हैं। उन्होंने कहा कि यहाँ दिए गए वक्तव्यों व प्रस्तुतियों ने एक अग्नि एक प्रकाश उत्पन्न किया है। उन्होंने दृष्टि, अंतर्दृष्टि, दिग्दृष्टि व अन्वेषणात्मक दृष्टि की चर्चा करते हुए कहा कि इन चारों दृष्टियों का समावेश हो जाए तो बहुत बड़ी क्रांति हो सकती है।

इस सत्र में त्रैमासिक “हरसिंगार” हिंदी लाओ देश बचाओ 19 वर्ष 23 अंक 3-4, “ट्रूमीडिया” का डॉ अंजीव अंजुम पर केंद्रित अंक, श्री श्याम प्रकाश देवपुरा की कृति “राजस्थान के क्रांतिकारी वीर” और हरिलाल मिलन रचित  दोहा संग्रह “दर्पण समय का” का मंचासीन अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया।

मुख्य अतिथि सारंग देवोत ने हिंदी भाषा के लिए साहित्य मंडल के प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस सभागार से बाहर जाकर अपने प्रयास करने चाहिए। इच्छा शक्ति को दृढ़ रखना चाहिए।

पंडित मदनमोहन शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी दिवस को हमने एक त्योहार की तरह बना दिया। जैसे दशहरे पर हमारे अन्तस् के काम,क्रोध, लोभ, द्वेष जैसे दुर्गुणों को मिटाने की जगह हम रावण के प्रतीकात्मक पुतले को जलाते रहते हैं। हमें इस पर चिंतन करना चाहिए। संस्कृति का अर्थ हमारी सनातन परंपरा है। यह एक दूसरे के पूरक हैं। भाषा के बिना संस्कृति और संस्कृति के बिना भाषा को जीवित रखना मुश्किल है। उन्होंने हिंदी व अंग्रेजी भाषा संस्कृतियों के अंतर की व्याख्या हमारे यहाँ के नृत्यकारों के जीवन व माइकल जैक्सन के जीवन की तुलना कर की।

सम्मान व अभिनंदन के क्रम में डॉ बलवंत शांतिलाल जानी का शॉल, उत्तरीय, कण्ठहार, मेवाड़ी पगड़ी, श्रीनाथ जी का प्रसाद, श्री फल, श्रीनाथ जी की छवि, व अभिनंदन पत्र भेंट कर साहित्य वाग्विभूति की मानद उपाधि से समलंकृत किया गया।

डॉ बलवंत शांतिलाल जानी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि साहित्य मंडल द्वारा उपनिषद वाचन, काव्यपाठ, नृत्य, उद्बोधन  द्वारा बहुविध प्रस्तुतियों से हिंदी के सम्मान का आयोजन किया गया। इस आयोजन से निश्चित ही भगवती प्रसाद जी देवपुरा जी की चेतना को निश्चित शांति प्राप्त हुई होगी। स्वतंत्रता के बाद जब नेहरू जी आदि ने हिंदुस्तानी को राजभाषा बनाने की बात कही गई तब मदनमोहन मालवीय, टण्डन जी, अम्बेडकर जी ने इसका विरोध जताते हुए हिंदी को राजभाषा बनाने की बात की। उन्होंने कहा हिदुस्तानी विदेशी भाषाओं अरबी, फारसी से अनुप्राणित है जबकि हिंदी भारतीय भाषाओं यथा संस्कृत, प्राकृत व अभ्रंश से अनुप्राणित है। संसद में तीन दिन की चर्चा के बाद हुए मतदान में हिंदुस्तानी को 29 और हिंदी को 82 मत प्राप्त हुए। उन्होंने कहा हिंदी भारत की आत्मा है। 

सम्मान की श्रंखला में साहित्य वाग्विभूति की मानद उपाधि से डॉ सुरेश ऋतुपर्ण व डॉ सुरेश माहेश्वरी को अलंकृत किया गया। तीन हजार एक सौ की पुरस्कार राशि सहित श्री मनोहर कोठारी स्मृति सम्मान 2022, हिंदी साहित्य शिरोमणि की मानद उपाधि से डॉ उदयप्रताप सिंह व डॉ यास्मीन सुलतान नकवी को सम्मानित किया गया। श्री कौशल जी मूंदड़ा को सम्पादक रत्न व मनोज सोलिया को 2100 रुपये की राशि सहित शशिकला मेहता स्मृति सम्मान 2022 हिंदी काव्य शिरोमणि की उपाधि से और श्रीमती बीना जैन ‘दीप’ को 2100 रुपये की राशि सहित चंचला देवी स्मृति सम्मान 2022, हिंदी भाषा शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया।

 5100 की पुरस्कार राशि सहित  जगन्नाथ प्रसाद शर्मा स्मृति सम्मान 2022, हिंदी भाषा प्रवर की उपाधि से  तथा डॉ समीक्षा शर्मा को श्रीचंद योगी स्मृति सम्मान 2022, कत्थक नृत्य प्रभा की उपाधि से अलंकृत किया गया। हिंदी काव्य विभूषण की उपाधि से श्री शिवनारायण वर्मा को अलंकृत किया गया। सभी सम्मानित साहित्यकारों को

शॉल, उत्तरीय, कण्ठहार, मेवाड़ी पगड़ी, श्रीनाथ जी का प्रसाद, श्री फल, श्रीनाथ जी की छवि, व अभिनंदन पत्र भेंट कर समादृत किया गया। सभी सम्मानित महानुभावों का गद्यात्मक एवं पद्यात्मक परिचय का वाचन श्री विट्ठल जी पारीक व श्री हरिओम हरि द्वारा किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री श्याम प्रकाश देवपुरा ने किया

*द्वितीय दिवस*

हिंदी लाओ देश बचाओ समारोह 2022 के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र की अध्यक्षता फिरोजाबाद से आए डॉ रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ ने की। डॉ विजय कुमार वेदालंकार, सोनीपत मुख्य अतिथि रहे। विशिष्ट अतिथि प्रो डॉ हेमराज मीणा, डॉ राहुल, डॉ संतोष यादव, श्री गोपाल गुप्ता, डॉ जितेंद्र सिंह जी व पंडित मदन मोहन शर्मा अविचल जी विशिष्ट अतिथि रहे।

मंचासीन अतिथियों द्वारा माँ शारदा, विघ्नहर्ता गणेश जी, प्रभु श्रीनाथ जी व श्रद्धेय बाबूजी के चित्रों पर माल्यार्पण, दीप प्रज्जवलन तथा पूजन अर्चन से सत्र का शुभारंभ किया गया।

सरस्वती वंदना व ब्रज वंदना श्री विट्ठल पारीक ने तथा श्रीनाथ जी की वंदना श्री हरिओम हरि ने की

हिंदी उपनिषद के अंतर्गत डॉ जितेंद्र कुमार सिंह ने “भारतीय सांस्कृतिक चेतना की प्रतीक हिंदी” विषय पर और डॉ शुभदा पाण्डेय ने पर्यावरण चेतना एवं हिंदी विषय पर आलेख वाचन किया।

विशिष्ट अतिथि श्रीमती संतोष यादव ने अपने उद्बोधन में सहित्यमण्डल के कार्यकलापों की चर्चा करते हुए कहा श्रद्धेय भगवती प्रसाद देवपुरा जी हिंदी विकास परम्परा के हनुमान हैं। या हम कह सकते हैं कि बाबूजी हिंदी के चाणक्य हैं। उन्होंने पर्यावरण की चर्चा करते हुए कहा कि हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए चाणक्य बनना होगा।

श्री गोपाल गुप्ता ने अपने वक्तव्य में इस समारोह पर विस्तृत चर्चा की तथा यहाँ दिए गए वक्तव्यों को केंद्र में रखते हुए अपनी बात कही।

डॉ राहुल ने कहा कि जिस राष्ट्र कि भाषा व संस्कृति धूमिल होती है वह राष्ट्र भी धूमिल होने लगता है। हमारे हिंदी सेवियों ने भाषा छोड़ी न ही संस्कृति छोड़ी इसी कारण हिंदी की प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि गत दिनों प्रधानमंत्री जी ने भारतीय भाषाओं के विकास की बात की प्रकारांतर से यह स्वतः हिंदी का विकास है।

डॉ जितेंद्र सिंह जी ने इस सुंदर सारस्वत कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य व हिंदी उन्नयन हेतु ऐसे ही आयोजनों की आवश्यकता है।

सम्मान की कड़ी में सम्पादक रत्न-समाज सेवा- पत्रकार प्रवर की मानद उपाधि से डॉ प्रेमस्वरूप त्रिपाठी, कानपुर, श्री आर बी केसरवानी, भिलाई, श्री मन मोहन शर्मा ‘शरण’, नई दिल्ली, मदनमोहन अग्रवाल, बिलासपुर, को अलंकृत किया गया। 

डॉ कमलेश थापक, चित्रकूट और डॉ अजय कुमार सिन्हा कानपुर को हिंदी भाषा विभूषण की उपाधि से समादृत किया गया।

श्री भूपेंद्र भरतपुरी ने राधा के स्वप्न में श्याम दर्शन को गीत में पिरोकर मधुरकंठ से प्रस्तुत किया।

प्रो0 डॉ हेमराज मीणा ने अपने उद्बोधन में श्रद्धेय भगवती प्रसाद देवपुरा को राजस्थान का भारतेंदु कहा। उन्होंने कहा कि बहुत कष्ट का विषय है कि इतना बड़ा कार्य करने वाले देवपुरा जी के नाम पर राजस्थान साहित्य अकादमी ने किसी भी पुरस्कार की घोषणा नहीं कि गई। मै इस सदन के माध्यम से विधान सभा अध्यक्ष तक यह बात पहुँचाना चाहता हूँ कि देवपुरा जी के नाम से पुरस्कार की घोषणा की जाए। श्री देवपुरा जी ने  मध्यकालीन साहित्य पर गहन और महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके नाम पर एक पीठ की स्थापना होनी चाहिए जहाँ शोधार्थियों द्वारा मध्यकालीन साहित्य पर अध्ययन कर सके।

पंडित मदनमोहन शर्मा अविचल जी ने कहा कि आप सभी सम्मानित होने वाले साहित्यकार  संस्था का आभार व्यक्त कर रहे हैं पर इस संस्था का सदस्य होने के नाते मैं संस्था की तरफ से आप सभी का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ कि आप सभी ने हमें आपका आतिथ्य करने का अवसर प्रदान किया। आप सभी साहित्य सृजन कर एक तरह से आहुति बन हवन कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्र के पर्यावरण पर भी चिंता जताते हुए चर्चा की। उन्होंने कहा कि अच्छा कार्य व्यक्तिगत स्तर पर ही किया जा सकता है। मात्र सरकार से गुहार लगाने से कुछ नहीं होगा। उन्होंने आध्यात्म की ओर ले जाने को साहित्य की फलश्रुति कहा। उन्होंने कहा व्यक्ति को सुखी व प्रसन्न केवल उसका स्वभाव रख सकता है भौतिक साधन नहीं।

सम्मान की श्रंखला में श्री देवमणि त्रिपाठी, अंगार, अरहरिया, डॉ राम नरेश चौहान, कानपुर, डॉ मंगलेश लता ‘लताश्री’ लखनऊ, को हिंदी काव्य विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही काव्य भूषण की मानद उपाधि से श्री प्रमोद बाबू दुबे ‘आमोद’, फिरोजाबाद, आचार्य रामसिंह ‘विकल’ कानपुर, चंद्रभान ‘चंद्र’, उन्नाव, आनंद पांडेय ‘तन्हा’, कानपुर, रामलखन प्रतापगढ़ी, प्रयागराज  को अलंकृत किया गया।

लोकार्पण के क्रम में मंचासीन अतिथियों व डॉ भँवर प्रेम, श्री वीरेंद्र लोढ़ा, सत्यनारायण व्यास मधुप तथा रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ द्वारा श्री यशपाल शर्मा का दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद का लोकार्पण किया गया। लोकार्पित पुस्तक पर रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ ने समीक्षात्मक चर्चा की और यशपाल शर्मा ने भी अपने सृजन कर्म व पुस्तक पर विचार रखे। इसके साथ ही डॉ श्री उदयनारायण उदय की किताब-ए-ग़ज़ल, श्री दिनेश रोहित चतुर्वेदी की आत्ममंथन का समय है। विजय वेदालंकार की सृजन विविक्षा,  डॉ अंजीव अंजुम  की ” मैं काला पानी हूँ, मैं जलियांवाला बाग हूँ, बोलो कौन क्रांति सैनानी, भारत के महान आदिवासी क्रांतिकारी, भारत का जयराम, जयघोष क्रांतिवीरों को, कुल छह पुस्तकें। श्री सुरेंद्र श्रीवास्तव की आजादी के अमृतमहोत्सव पर 9 पुस्तकें “दांडी यात्रा, आजाद हिंद फौज, विश्व गुरु की और बढ़ते भारत के कदम, आजादी के 75 वर्षों में भारत की प्रगति, स्वतंत्रता आंदोलन व राष्ट्र निर्माण की 75 प्रेरक कथाएँ, स्वतंत्रता आंदोलन के 75 वीर वीरांगनाएँ, स्वतंत्रता आंदोलन के 75 तीर्थ, आजादी की 75 प्रमुख घटनाएँ, अमृत महोत्सव के पाँच स्तम्भ” का लोकार्पण किया गया।

सम्मान के क्रम में हिंदी काव्य शिरोमणि की मानक उपाधि व 2100 रुपये की पुरस्कार राशि सहित डॉ पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ को श्रीमती गंगादेवी अवस्थी स्मृति सम्मान, डॉ गीता रामचंद्र दौडमणि को श्रीमती सुन्दररानी लोढ़ा स्मृति सम्मान, श्री अमर बानिया लोहारो को श्री यशवंत सिंह सिसोदिया स्मृति सम्मान, डॉ विनय कुमार पाठक को श्री रामरघुनाथ शर्मा स्मृति सम्मान, डॉ विजय वेदालंकार को श्री नीलकंठ अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ जितेंद्रकुमार सिंह श्रीमती तारा पाठक स्मृति सम्मान, डॉ जयसिंह अलवरी, डॉ शशि मुरलीधर, निधोजकर, डॉ गरिमा डिमरी को श्रीमती केसर देवी जानी स्मृति सम्मान प्रदान किया गया।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ अमरसिंह वधान ने की। डॉ उदय  प्रताप सिंह का मुख्य आतिथ्य व  डॉ सुरेश माहेश्वरी, श्री सुरेश सार्थक, डॉ प्रणव शास्त्री, प्रो राखी उपाध्याय, प्रो  वागीश दिनकर का विशिष्ट आतिथ्य रहा।

इस सत्र में डॉ सुषमा विश्वनाथ कॉर्डे को मोती लाल राठी स्मृति सम्मान, डॉ नवनीत पासवान को मोती लाल राठी स्मृति सम्मान, डॉ वागीश दिनकर को गोपाल प्रसाद मुद्गल स्मृति सम्मान,  डॉ राखी उपाध्याय को श्रीमती रामकुंवरी देवी स्मृति सम्मान, डॉ कविता किरण को श्रीमती नर्बदा देवी सिसोदिया स्मृति सम्मान, डॉ शंकर शरण लाल बत्ता को श्री गिरिराज धरण सिंह सिसोदिया स्मृति सम्मान से अलंकृत किया गया

हिंदी साहित्य विभूषण से डॉ रेखा कक्कड़, आगरा, डॉ राम कृष्ण मिश्र, गया, डॉ श्यामसनेही लाल शर्मा, फिरोजाबाद, डॉ उदय नारायण ‘उदय’ कानपुर को   सम्मानित किया गया। इसके साथ ही

श्री अशोक जी वशिष्ट, श्रीमती पद्मा जी वशिष्ट एवं उर्मिला उर्मि को भी सम्मानित किया गया।

पुस्तक लोकार्पण की श्रंखला के अंतर्गत श्री राजेन्द्र प्रसाद अनुरागी जी का कविता संग्रह लुटे द्रोपदी चौराहे पर। श्रीमती कमलेश शुक्ल कीर्ति की 3 पुस्तकें बंदर मामा पहने चश्मा, ढोल बजाता हाथी आया, और हसरत के दीदार, डॉ सरोज गुप्ता की 2 पुस्तकें नजर नजारा व द्वार की दस्तक, श्री राम नरेश सिंह चौहान की गीतामृतम, श्री अजीत सिंह राठौर की चुक्की बिल्ली, राजकुमार सचान की इमरती और दहीबड़ा, डॉ अजय कुमार सिन्हा की वो हाथी घोड़ा पालकी के साथ मासिक पत्रिका बच्चों की बगिया सम्पादक श्री रामलखन प्रतापगढ़ी व मासिक पत्रिका अंडर लाइन, सम्पादक डॉ प्रेम स्वरूप त्रिपाठी का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।

पाक्षिक पत्र उत्कर्ष मेल 1 से 15 सितम्बर वर्ष 12 अंक 58 सम्पादक मनमोहन शर्मा, काव्य अमृत भाग-3 सम्पादक मनमोहन शर्मा व कविता मल्होत्रा, अन्यत्र काव्य संग्रह, हितेष  कुमार शर्मा, का लोकार्पण किया गया।

उपनिषद के अंतर्गत प्रो अवधेश कुमार जी वर्धा द्वारा सर्वतो भद्र हिंदी विषय पर और डॉ प्रणव शास्त्री ने हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना पर आलेख वाचन किया

हुंकृति के अंतर्गत प्रदत्त पंक्ति पर श्री सुरेश ने प्रस्तुति दी। इस दिवस व सम्मान के अंतिम सत्र में हिंदी सहित्य भूषण की मानद उपाधि से प्रो. अवधेश कुमार, वर्धा, श्री प्रेम कुमार त्रिपाठी प्रतापगढ़, श्री दिनेश रोहित चतुर्वेदी, जांजगीर, डॉ उषा मिश्र, प्रयागराज, डॉ मानवती देवी निगम, जालंधर, डॉ राघवेंद्र दुबे, बिलासपुर को अलंकृत किया गया।

विशिष्ट अतिथि श्री सुरेश माहेश्वरी, श्री सुरेंद्र सार्थक, श्रीमती राखी उपाध्याय ने हिंदी की वर्तमान स्थिति और भविष्य में किये जाने वाले प्रयासों के मध्य नजर अपने विचार व्यक्त किये। श्री वागीश दिनकर ने ओजस्वी काव्यमय उद्बोधन से पूरे सदन में चेतना का संचार किया।

मुख्य अतिथि डॉ उदयप्रताप सिंह ने कहा कि आज तक हम यही सोचते रहे कि सरकार हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाएगी। हमने अपने स्तर पर समुचित प्रयास नहीं किए। यदि लोकचेतना के साथ कोई भी भाषा जन-जन की भाषा बन जाए तो सरकार को घुटने टेकने पड़ जाते हैं। साहित्य मंडल के प्रयासों को हमें आगे ले जाना चाहिए। इस मशाल को स्थानीयता से बाहर निकाल पूरे राष्ट्र में ज्योतित करना चाहिए। डॉ अमर सिंह वधान ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सुबह से दिए गए वक्तव्यों की समीक्षा करते हुए कहा कि आज यहाँ सिर्फ हिंदी भाषा की बात हुई। लोक साहित्य, बोलियाँ लोकोक्तियां मुहावरे हाशिये पर रहे। हम यह भूल गए कि ये ही भाषा की नींव हैं। उन्होंने कहा प्रतिभा आकाश में मंडराते बादलों से गिरती बून्द नहीं है। पर यह भी सत्य है कि व्यक्ति में प्रतिभा एक प्रतिशत होती है और उसे निखारने के।लिए 99 प्रतिशत परिश्रम होता है। हमें अंदर और बाहर दोनों ही परिवेश प्रेरित करते हैं।

रात्री में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में सुदूर प्रदेशों से पधारे रचनाकारों ने विभिन्न रस व विषयों पर उत्कृष्ट कविताओं का पाठ कर पूरे साहित्यमण्डल परिसर को काव्यमय कर दिया। कवि सम्मेलन का संचालन सुरेंद्र सार्थक ने किया।

सभी सम्मानित साहित्यकारों को शॉल, उत्तरीय, कंठहार, मेवाड़ी पगड़ी, श्रीफल, प्रसाद, श्रीनाथ जी की छवि, व उपाधिपत्र प्रदान किया गया। 

सभी का गद्यात्मक व पद्यात्मक परिचय श्री विट्ठल पारीक तथा श्री हरिओम हरि ने पढ़ा। कार्यक्रम का संचालन श्री श्यामप्रकाश देवपुरा ने किया

*तृतीय दिवस* 

अंतिम एवं तृतीय दिवस के प्रथम और समारोह का अंतिम सत्र हिंदी साहित्य में विकलांग विमर्श पर केंद्रित रहा। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ शारदा प्रसाद, मुख्य अतिथि डॉ विनय कुमार पाठक, विशिष्ट अतिथि डॉ जितेंद्र कुमार सिंह, श्री राघवेंद्र दुबे, डॉ विजय कुमार वेदालंकार, डॉ अमर सिंह वधान, श्री श्यामप्रकाश देवपुरा, श्री सत्यनारायण व्यास ‘मधुप’ रहे। श्री सुरेश माहेश्वरी ने बीज वक्तव्य दिया, द्वितीय सत्र में आलेख वाचन का कार्यक्रम हुआ जिसके अंतर्गत डॉ गीता रामचंद्र दोड़मणि, श्री बजरंग बली शर्मा, श्री सचिन शर्मा, डॉ विश्वनाथ कश्यप ने आलेख वाचन किया। संचालन डॉ आनंद कश्यप व डॉ अशोक अभिषेख् ने किया। सभी विद्वानों ने अपने विचार रखे। श्री दयानंद गोपाल ने सभी का आभार व्यक्त किया।

समाचार प्रस्तुति

रेखा लोढ़ा ‘स्मित’

भीलवाड़ा 

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