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गजब का ज्ञान दे दिया मुख्यमंत्री ने

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

गजब का ज्ञान दिया है उत्तराखंड के नव नवेले मुख्यमंत्रीजी ने ये मान लो की आंखें खुली की खुली रह गई और कानों ने काम करना बंद कर दिया । वर्षों से हमें पढ़या जाता रहा है कि हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम रहा है इसके चक्कर में ही अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है ताकि हम स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन और उस आन्दोलन में अपनी सहभागिता निभाने वाले हमारे स्वतत्रंता संग्राम के सेनानियों को याद कर सकें उनके प्रति हम अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर सकें । पर मुख्यमंत्री जी ठहरे व्यस्त नेता, फूलमाला और जयकारा के नारों के शोरगुल में उन्हें ज्यादा कुछ याद नहीं रह पाता होगा सो बोल दिया कि भारत अमेरिका का गुलाम रहा है वो भी दो सौ सालों तक । गजब है भैया जो इतिहास हमें प्राथमिक कक्षाओं में सिखा दिया जाता है, जो इतिहास हम हर साल स्वतत्रंता दिवस और गणतंत्र दिवस पर दोहरते रहते हैं उस इतिहास की इतनी दुर्गति कर दी गई वो भी एक जिम्मेदार पद पर बैठे नेता द्वारा । अब यह तो कह नहीं सकते कि शर्म आनी चाहिए क्योंकि राजनीति में शर्म वाला कालम विलोपित कर दिया जाता है पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि भैया जो नहीं मालूम उसका ज्ञान न बघारों वरना हमारी पीढ़ी की पीढ़ी बरबाद हो जायेगी । यह पीढ़ी ऐसे ही तो अपना जनराल नालेज बढ़ाती है गलत ज्ञान उन्हें भटका देगा और वे अंग्रेजों के शासन की बजाए अमंेरिका को ही याद करते रहेगें । असल में मुख्यमंत्री जी की भी गलती नहीं है ।  किसी को यकायक वो मिल जाए जिसकी उम्मीद और हैसियत न हो तो आदमी ऐसे ही बहक जाता है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ऐसे बहके कि दो-चार और ऐसे बयान दे गए जिनको तो चुटकुलों में भी शामिल नहीं किया जा सकता । त्रिपुरा के मुख्यमंत्री भी बहुत दिनों तक ऐसे ही बहकी-बहकी बातें करते रहे फिर उन्हें समझा दिया गया कि ‘‘चुप हो जाओ वरना कुर्सी चली जायेगी’’ तो वे बेचारे तब से आज तक चुप ही हैं । कुछ दिनों के बाद उत्तरा खंड के मुख्यमंत्री को भी ऐसे ही बता दिया जायेगा तो उनके ओंठ भी सिल जायेगें पर जब तक नहीं सिले हैं तब तक हास्य-व्यंग्य तो चलता रहेगा । अब महाराष्ट में भी हास्य चल रहा है एक पुलिस के बड़े अधिकारी दावे के साथ कह रहे है कि गृहमंत्री ने सौ करोड़ रिश्वत मांगी और गृहमंत्री एंड कंपनी अपने कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं । बचाव करो आपके नेता हैं पर ऐसा भी न करो कि आम जनता आपको भी हिस्सेदा समझ बैठे । एक पढ़ा लिखा पुलिस जैसे महकमे का बड़ा अधिकारी खुलेआम आरोप लगा रहा है तो काई नेताओं की तरह हवा-हवा में तो आरोप लगाने से रहा । कम से कम वो इतना तो जानते ही होगें कि सत्ता दल से टकरा रहे हैं यदि आरोप हवा-हवाई हुआ तो क्या-क्या हो सकता है । महराष्ट में हंगामा मचा है मचना ही चाहिए कोई छोटा आरोप नहीं है और न ही किसी छोटे अधिकारी ने किसी छोटे मंत्री पर लगाया है । सब कुछ बड़ा है आरोप भी, मंत्री भी और आरोप लगाने वाले अधिकारी भी । आरोप तो पश्चिम बंगाल में भी लगाये जा रहे हैं पर वहां तो चुनाव चल रहे हैं । चुनाव बगैर आरोप के सम्पन्न होते ही नहीं हैं । अब चुनावो में भी कोई विकास की बातें नहीं करता आरोप ही लगाया जाता है । आरोपों की अंत्याक्षरी चलती है । एक लगता है फिर दूसरा उसका जबाब देता है, फिर वह आरोप लगता है और पहले वाला जबाब देता है । जनता को कुछ समझ में नहीं आता न तो आरोप समझ में आते हैं और न ही जबाब । वो मुक दर्शक बनकर केवल देखती रहती है । वैसे चुनाव तो पांच राज्यों में हो रहे हैं पर पश्चिम बंगाल ही युद्ध का मैदान बना हुआ है । सभी की निगाहें भी वहीं ही केन्द्रित हैं । चुनाव तो महिने भर चलना है तो कम से कम महिने भर तक तो लोग इसमें व्यस्त बने रहेगें । पश्चिम बंगाल का चुनाव भाजपा और ममता बनर्जी के आसापास ही सारा कुछ सिमट हुआ है । किसका पलड़ा भारी है और किसका खाली है कोई नहीं समझ पा रहा है सब अंदाज से चल रहे हैं वे कहते हैं दो सौ के पार और वे कहतीं हैं यहंा से भाग जाओ सरकार । असम में अलग स्थिति है वहां भाजपा और कांग्रेस के बीच चुनाव सिमटा हुआ है । आरोप तो यहां भी लगायें जा रहे हैं पर वो उतने हाईलाइट नहीं हो पा रहे हैं । कांग्रेस तो आरोपों को सुनने और उसका जबाब देने की आदी हो चुकी है । आरोप भाजपा लगा रही है जो ख्ुाद पिछले पांच सालों से सत्ता में है और कांग्रेस उनका जबाब दे रही है मुखर होकर । कांग्रेस के पास केवल राज्यस्तरीय आरोप ही नहीं हैं बल्कि उनके पास राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय आरोप भी हैं जो वे लगाते ही रहते हैं । असम में तो वैसे भी एनआरसी का मुद्दा हावी है इस कारण से ही भाजपा हो कांग्रेस दोनों इस मुद्दे को ही हईलाइट किए हुए हैें । वाटें पाना हो तो केवल एनआरसी लागू कर देग,ें नहीं चलेगा यहां वो तो बताना पड़ेगा कि कि इसमें अपेक्षित संशोधन कर सकते हैं कि नहीं तो भाजपा ने इसके भी संकेत दे दिए फिलहाल कल को पलट जायें तो कुछ नहीं कहा जा सकता अभी तो महिने भर जब तक चुनाव नहीं निपट जाते तब तक वो करते रहना पड़ेगा जो जनता चाहती है क्योंकि वोट तो जनता को ही देना है । भाजपा कांगेेस पर आरोप लगाकर अपने आपको बचाने की कोशिश कर रही है । कई बार ऐसा लगता है कि भाजपा आरोप लगाते समय भूल जाती होगी कि यह आरोप पश्चिम बंगाल में लगाया जाना था उसे असम में लगा कर बरबाद कर दिया । पर आरेापों का उनका स्टाक पर्याप्त है वे दो लेगाते हैं और चार अपने खातों में जमा कर लेते हैं ताकि सनद बनी रहे । केरल में भी चुनाव चल रहे हैं भाजपा वहां भी ताल ठोंक रही है । भाजपा यहां शून्य से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है इसलिए वो ज्यादा मेहनत कर भी नहीं रही है ।  उनके लिए असम और पश्चिम बंगाल का चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण है । वैसे तो आरोप तो वे यहां भी लगा रहे हैं । उसके बिना काम चलता भी नहीं है । आरेाप तो केजरीवाल भी लगा रहे हैं । लोकसभा में एक विधेयक पारित हो गया जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को और अधिकार दे दिए गए । केजरीवाल तो जब से सत्ता में आए है तब से ही वे ‘‘एल जी’’ से परेशान रहे हैं । उन्हें लगता है कि भारी वोटों से जीत कर वे आए हैं पर सत्ता पर हुकुमत एल जी की चल रही है । सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य मंत्री और उपराज्यपाल दोनों के अधिकारों को एक बार समझा दिया था पर अब जब लोकसभा में जो विधेयक पारित हुआ है और जो राज्यसभा में भी पारित होकर कानून बनेगा उससे केजरीवाल आहत हैं । उन्हें लगता है कि अब सारी शक्तियों तो उपराज्यपाल के पास ही सिमट जायेगीं और वे केवल गाड़ी में घूमने और गले में माला डलवाने के अलावा कुछ नहीं कर पायेगें । केजरीवाल जी की चिन्ता तो जायज है । सत्ता पर सीधे नहीं तो दूसरे माध्यम से खुद ही आसीन हो जाओ । जाहिर है कि इससे चुनाव जीतने का मतलब ही खत्म हो जायेगा और आम जनता को भी लगने लगेगा कि वे बेकार में ही वोट दे रहे हैं क्योंकि इसके कोई ज्याद मायने तो हैं नहीं । । अब देखना है कि यह लड़ाई कहां तक जाती है और क्या परिणाम निकलता है । वैसे आप पार्टी ने इन सारी चिकल्लसों के चलते ही दूसरे राज्यों में अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है ताकि कहीं तो शासन करने में सुकून मिले यहां दिल्ली में तो रोज नई समस्या मुंह बाए खड़ी है । कोरोना भी मुंह बाये खड़ा है । जब हमें लग रहा था कि अब हम कोरोना से फुरसत पाने वाले हैें तब ही उसने अपना रौदं रूप दिखाना प्रारंभ कर दिया । हम तो पिछले कोरोना की हरकतों से अभी सुख की सांस भी नहीं ले पाए थे कि एक बार फिर से मुंह पर मास्क लगाने के आदेश आ गए । कोरोना फिर आ गया ‘‘अतिथि देवो भवःः’’ भी तो नहीं कह सकते । ऐसे अतिथियों से तो भगवान ही बचाये और वैसे भी उसने हीबचाकर रखा है वरना मरने वालों की संख्या और भी लम्बी होती । अब तो वैक्सीन भी आ गई करोड़ो लोगों ने लगवा भी ली पर फिर भी कोरोना सिर उठाये शान से घूम रहा है और आम आदमी सिर झुकाये मास्क लपेटे कल की चिन्ता में डूबा हुआ है । उसके सामने कई समस्यायें हैं, वह मास्क तो पहन लेगा वैक्सीन भी लगवा लेगा पर अब अपने रोजगार घंघे को बंद नहीं कर पायेगा । एक साल में ही हर व्यक्ति कितने नुकसान में गया है यह वह ही जानता है । कई मौतें तो इसी चिन्ता में भी हुई हैं । अर्थ प्रधान समाज है, अर्थ नहीं तो कुछ भी नहीं और अर्थ आयेगा कहां से कारेाना कुंडली मारे बैठा है । आम आदमी वाकई भयभीत है पर न तो उसके पास कोई हल है और न ही सरकार के पास । राजनीतिक सफरनामा

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