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लद्दाख में ड्रैगन को सबक सिखाना होगा

  • कर्नल सारंग थत्ते ( सेवानिवृत्त )

       पूर्वी लद्दाख अब एक नया जंग का मैदान नामांकित हो गया है. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी भारत और चीन के बीच तनाव के चरम बिंदु पर पहुँच चुकी है. यह वही इलाका है जहाँ 1962 में भारत और चीन के बीच में युद्ध हुआ था. मई 2020 की 5 तारीख से शुरू हुए इस तनातनी पर अब तक कोई अंतिम फ़ैसला नही हो पाया है. बातचीत के कई दौर हो चुके है – फील्ड कमांडर से लेकर लेफ्टिनेंट जनरल रैंक तक के दोनों ओर के सेनापति सीमा रेखा से जुड़े आपसी विवाद को हल करने के लिए मशक्कत कर चुके है और आगे भी यह आपसी बातचीत को चालू रखना पड़ेगा. लद्दाख की गलवान घाटी में पिछले कुछ समय से जो हालात बन रहे थे उनके संकेत कुछ अच्छे नही थे. 6 जून को गलवान घाटी में हुई सैन्य कमांडरों की चर्चा सत्र में भारत ने चीन से पूर्व की स्थिति को बहाल करने की मांग की थी. इस बातचीत में यह तय हुआ की दोनों ओर के सैनिक पीछे हटेंगे. इस बीच कूटनीतिक स्तर पर भी भारतीय और चीनी सरकार के बीच बातचीत हुई थी. गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग इलाक़े से चीनी सेना पीछे हटने लगी थी.  15 जून को चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से दिए गये बयान में इस बात के संकेत थे की बातचीत से सीमा विवाद हाल होने के आसार है.

हिंसक मोड़

      15 / 16 जून 2020 की रात को अचानक हालात बिगड़े. सोमवार की रात को एक दर्दनाक और हिंसक मोड़ पर आ कर थम गया है.   दरअसल उच्च अधिकारी आपसी बातचीत के ज़रिए आपसी मतभेद दूर करने के लिए राज़ी हुए थे. इस बातचीत का पहला दौर चुशुल के इलाक़े में चीनी हद में मोल्डो में शुरू हुआ था . लगभग साढ़े पाँच घंटे चली लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत के बाद आपसी अनबन को कम करने का पहला कदम दोनो देशों ने लिया था.  15 जून को पेट्रोलिंग पॉइंट नंबर 14 से पीछे हटने की कवायद शुरू करने को चीनी सेना तैयार हुई थी.        चीनी सैनिक अपनी पोस्ट नंबर 1 की तरफ बढ़ने को राज़ी हो गये थे. सूत्रों के अनुसार अचानक उनके कदम रुके और उन्होने पीछे मुड़कर भारतीय सैनिकों पर लोहे के डंडों से मोर्चा खोल दिया.

      16 बिहार रेजीमेंट के कमान अधिकारी ( जिन्होने बात चीत में भाग लिया था ) अपने सहायक सैनिकों के साथ उस जगह पर मौजूद थे. चीनी सैनिकों ने उन्हे निशाना बनाया और आपसी तनातनी में गुत्थम गुथ्हा की लड़ाई में दोनो तरफ के सैनिक पत्थरों और लोहे के रॉड से आपस में उलझ पड़े. कुछ और सैनिक भी इसमे शामिल हुए, चीनी सैनिक अपने साथ पूरी तैयारी से लोहे के रोड और नुकीले तार और कीलें लगे डंडे लेकर भारतीय सेना के जवानों पर टूट पड़े. रात के अंधेरे में काफ़ी देर तक यह हाथापाई होती रही, जिसके चलते दोनों और से सैनिक घायल और मारे गये थे. कुछ सैनिकों के ढलान से नीचे बहती नदी और घाटी में गिरने की भी खबर है. सिर पर लगी चोट और शरीर पर किए घाव इस बात के सबूत थे की चीनी सेना ने निहत्ते भारतीय सैनिकों पर वार किया और उन्हे मौत के मुँह में धकेला था. सुबह होते होते अस्पष्ट  जानकारी को ठहराव मिला. तब पता लगा कि 16 बिहार के कमांडिंग अधिकारी और 20 सैनिकों को बलिदान देना पड़ा है. कई और घायलों को उस इलाक़े से पीछे लाया गया है. चीनी सेना के 43 सैनिक हताहत हुए है.

       बिना कोई बंदूक की गोली दागे हुए एक खूनी संघर्ष ने अपना रंग दिखा दिया. सुबह के सूरज के साथ गलवान घाटी में हालात अपने चरम बिंदु पर पहुँच चुका था. आपसी संघर्ष एक ऐसे बिंदु को छू चुका था जिसमे एक चिंगारी काफी होती है, इस बार जो हालात बन पड़े हैं वे अपने साथ दोनों सेनाओं के बीच अविश्वास को पनपने के लिए काफ़ी है. हथियार के बिना भी जब सेना के अधिकारी स्तर पर मौत होती है, तब सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है की आने वाले समय हो सकता है की बातचीत के दौर में भी चीनी अपने साथ कोई हथियार या चाकू इत्यादि ला सकते है. 

       गलवान घाटी से श्योक नदी गुजरती है. बेहद पथरीली ज़मीन नदी के दोनों तटो पर है तथा उँचे पहाड़ों को काट कर रास्ता बनाया गया है. पेट्रोलिंग पॉइंट 14 की उँचाई 14500 फुट है, जहाँ पत्थर खिसकने या पहाड़ दरकने की अनेक घटनाए बड़ी आम बात है. आने जाने वाले वाहनो और पेट्रोल्लिंग कर रहे सैनिकों को ख़तरा बरकरार रहता है. जानलेवा नुकसान होने का अंदेशा हमेशा बना रहता, हर हमेशा चौकस रहना ज़रूरी है. इसी घाटी के साथ साथ लेह से दौलत बेग ओल्डी तक की 323 किलोमीटर की पक्की सड़्क जो भारतीय सीमा सड़क संघटन ने बनाई है, गुजरती है जिससे जुड़ी हुई है कई छोटी सड़कें जिनसे हम हमारी पोस्टों तक पहुँच सकते है. इसी इलाक़े मेी पेट्रोल्लिंग पॉइंट 14 हैं जहाँ यह जानलेवा हिंसक झड़प हुई थी. कोई गोली नही चली पर फिर भी सेना के अधिकारी और दो जवानों की मौत हुई है. अब आगे क्या ?

ज़मीनी हक़ीकत

      यह परिस्थिति क्यों आती है इसका एक सीधा सच्चा उत्तर है- इस इला़के के नक्शे पर निशानदेही की समझ में फर्क है. अब से करीब 106 साल पहले चीन ने शिमला समझौते में रेखांकित मॅक मोहन रेखा को भारत – चीन सीमा मानने से परहेज किया था. साथ ही उस समय चीन ने तिब्बत पर अपना झंडा फह्राने का दावा किया था. यह उस दौर में 1914 में हुआ जब भारत ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था. ब्रिटेन के अधिकारी जिसने ब्रिटिश इंडिया और चीन के बीच में सीमा का निर्धारण किया था – हेनरी मॅक मोहन के नाम पर इस लाइन को सीमा रेखा का दर्जा दिया गया था. 1947 में भारत आज़ाद हुआ.  उसी समय कम्युनिस्ट क्रांति का अंत हुआ. 1950 से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद शुरू हुआ. 1962 में भारत – चीन युद्ध हुआ और चीनी सेना ने मॅकमोहन लाइन को पार कर भारतीय इलाक़ों में अपना डेरा डालना शुरू किया और इलाक़े को अपने कब्ज़े में कर लिया. फिर सीमा रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल  ( एल ए सी ) के रूप में इतिहास में दर्ज करने को भारत को मजबूर किया. 1967 में भी हीन ने नाथला दर्रे को अपनी सीमा में लेने की कोशिश की लेकिन भारतीय सैनिकों ने यह नाकाम की थी.

       चीन ने मई 2020 में इसी इला़के में अपने सैन्य अभ्यास की कार्रवाई भी की थी, जिसकी बनिस्पत इस इला़के में ज़्यादा मात्रा में चीनी सैनिक मौजूद हैं. पैंगोंग त्सो (झील) के दोनों ओर चीन और भारतीय सैनिकों ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. भारतीय सेना ने अपनी कई फ़ॉरमेशन को सीमा के नज़दीक ले जाने का हुक्म दिया है. लद्दाख, हिमाचल प्रदेश  और अरयणचल प्रदेश में चीनी सीमा से सटे हुए गाँवों में दहशत ना फैले इस बात का ध्यान रखा जा रहा है. सीमा से सटे कई वायुसेना सेना के अड्डे पूरी तैयारी पर है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और सेना प्रमुखों से जानकारी दी गयी है. सेना को सतर्क रहने क्का हुक्म दिया जा चुका है. सूत्रों से खबर मिली है कि चीन ने भी अपनी सेना के कई टुकड़ियों को सीमा के नजदीक पठार क्षेत्र में फैला दिया है. भारत की उत्तरी और पूर्वी सीमा पर आपसी टकराव एवं अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है. भारत सरकार और सेना इसे किसी भी सूरत में हल्के में नहीं ले सकती है.  दोनों ओर की सैन्य टुकड़ियां अपने-अपने इलाक़ों में मजबूती से एक दूसरे की हरकतों पर कड़ी निगाह बनाए हुई है. चीन के अंग्रेज़ी भाषा का मुखपत्र `ग्लोबल टाइम्स’ के अनुसार चीन अपने इला़के में भारत के व्दारा किए जा रहे निर्माण कार्यों पर कड़ाई से जवाब दे रही है. हादसे की हालात को सामरिक रूप से समझना ज़रूरी है क्योंकि दोनो ही तरफ के सैनिक हताहत हुए है. बदले की कार्यवाही भारतीय सेना को करने का हुक्म मिलता है तब वह किस इलाक़े में होगा यह एक बड़ा  यक्ष प्रश्न होगा ? फिर उसके उपरांत क्या चीन अपनी तरफ से चुप बैठेगा या वह भी पलटवार कर भारतीय क्षेत्र में घुसने का प्रयत्न करेगा ? लद्दाख का इलाक़ा ठंडा इलाका है और पहाडी क्षेत्र होने से यहाँ  आक्रमण करने वाली फौज का दुश्मन से आपसी अनुपात बढ़ जाता है. क्या भारत सिर्फ़ वायुसेना की मदद से अपना हल ढूंढेगा ? या इस सब पर परदा डालते हुए फिर से बातचीत के दौर में पीछे हटेगा ?  ये कुछ प्रश्न है जिस पर आने वाले दिनों में समीकरण स्थापित होंगे, भारतीय सेना अपनी ओर से स्थापित सैन्य तरीके से इस किस्म के गतिरोध को दूर करने की भरसक कोशिश करनी पड़ेगी. चीनी समाचार पत्र के अनुसार चीन ने डोकलाम के बाद चीनी सेना की सबसे मजबूत कार्रवाई गलवान घाटी में अपनी हिफ़ाज़त के लिए की है. देखना होगा कि भारत सरकार किस तरह सीमा के इस विवाद से जूझती है. कूटनीति और रणनीति का मिश्रण क्या रंग लाता है. क्या नये नक्शे से यह बरसों पुरानी लाइन ऑफ एक्च्युअल कंट्रोल को लाइन ऑफ कंट्रोल में बदल सकेगा या इसी तरह रहरहकर चीन अपनी मंशा को खंगालकर सीमा पर उलझता रहेगा.  सबक तो सीखाना ही होगा वरना इतिहास कैसे बदलेगा ?

                                                 ( लेखक सेवा निवृत्त कर्नल है )

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