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क्या ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी जैसे अन्य ग्रह भी हैं ?

                 मानव समाज आदिकाल से ही अनन्त ब्रह्मांड में अपनी धरती जैसे जीवन के स्पंदन से युक्त ग्रहों की खोज के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है,लेकिन प्राचीनकाल में अंतरिक्ष की सूदूर अंतहीन गहराइयों में झांकने के लिए उस समय न तो बेहतरीन ढंग के दूरदर्शी थे,न आज की तरह द्रुतगामी अंतरिक्ष यान थे,समय के साथ बेहतरीन दूरबीनों का तथा इसके साथ ही अंतरिक्ष में स्थित सूदूर पिंडों,ग्रहों आदि तक जाने के लिए अत्यधिक द्रुतगामी अंतरिक्षयानों का भी अविष्कार भी होता गया है !

             मालिन्यूक्स Molyneux नामक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लेखक ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति डिऑप्ट्रिकानोवा Dioptricanova में इस बात की विस्तृत जानकारी दिया है कि इंग्लैंड निवासी  रोजर बेकन नामक वैज्ञानिक (1220-1292 ) को दूरबीन के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान था लेकिन दूरबीन के प्रथम अविष्कार का श्रेय हैंस लिपरशे Hanslippershey नामक एक डच वैज्ञानिक ( 1570-1619 ) को जाता है,उन्होंने 1608 में बाकायदा एक ऐसे उपकरण का अविष्कार करके उसका पेटेंट कराया,जिसके ट्यूब में एक लैंस था,जिससे दूर की वस्तुओं को देखना संभव हुआ,जिसकी मदद से दूरस्थ वस्तुएं आमतौर पर नजदीक,स्पष्ट और बड़ी दिखाई देने का आभास होने लगता है,लेकिन उसके बाद गैलीलियो, केपलर,हाइगेन्स,ब्रैडले,ग्रेगरी और न्यूटन आदि वैज्ञानिकों ने बेहतरीन दूरदर्शी यंत्र तैयार किए। लेकिन इटली के सुविख्यात वैज्ञानिक गैलीलियो गैलीलि (1564-1642) ने बहुत ही बेहतरीन दूरबीन बनाकर चंन्द्रमा के गड्ढे,सूर्य के धब्बे और वृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं को अपनी बनाई दूरबीन से देखकर एवम् दुनिया को उनके बारे में बताकर सारी दुनिया को स्तब्ध करके रख दिया । इसके अतिरिक्त उन्होंने यह बताकर कि टालिमी की भूकेन्द्रीय Geocentric की थ्योरी को,जिसमें यह बताया गया था कि इस ब्रह्मांड का केन्द्र बिन्दु यह पृथ्वी ही है को ध्वस्त करके रख दिया,उन्होंने बताया कि कोपरनिकस की सूर्य केन्द्रित Heiocentric व्यवस्था एकदम सही है ! कितने दुर्भाग्य की बात है कि यही अटल सत्यपरक बात बताने पर इटली के ही एक प्रखर दार्शनिक, वैज्ञानिक,गणितज्ञ और खगोलशास्त्री 52 वर्षीय जियोर्दानो ब्रूनों ( 1548-1600) को पूरे 8 साल तक जेल में घोर यातना देकर अंततः 17 फरवरी सन् 1600 को वहाँ के धर्म के पैशाचिक दरिंदों ने उन्हें रोम के एक व्यस्ततम् चौराहे पर एक लैंप पोस्ट से लोहे के मोटे जंजीरों से कसकर बाँधकर उन पर मिट्टी का तेल छिड़ककर दिन-दहाड़े ही हजारों मूर्ख और धर्म के पाखंडियों के सामने ही जिंदा ही जला दिया था ! एक तरफ वह प्रख्यात वैज्ञानिक जिंदा जल रहा था,दूसरी तरफ धर्म के पाखंडी और मूर्ख तालियां बजा-बजाकर पैशाचिक ठिठोली कर रहे थे ! कितने दुःख और हतप्रभ कर देनेवाली बात है कि एक तरफ वह बहादुर,सत्य पर अटल और निर्भीक वैज्ञानिक हँसते-हँसते जल जाना पसंद किया परंतु झूठ और पाखंडभरी बातों पर झुकना कतई स्वीकार नहीं किया ! आज दुनिया भर के धार्मिक पाखंडी भी यह बात मानने को बाध्य हैं कि इस सौरमण्डल का केंद्र पृथ्वी न होकर सूर्य ही है ! लेकिन भारत में मूर्खों और अंधविश्वासी जाहिलों की संख्या आज के वर्तमान समय में भी करोड़ों में है जो अभी भी यह मानते हैं कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है,चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण राहु और केतु की वजह से ही होता है ! या कि हनुमान नामक इस धरती पर रहनेवाला व्यक्ति करोड़ों डिग्री सेल्सियस तप्त और करोड़ों किलोमीटर दूरस्थ सूर्य को निगल गया !

                अब पृथ्वी पर निर्मित दुनिया के बेहतरीन दूरबीनों में चिली,हवाई द्वीप,जापान, चीन,स्पेन,रूस,आस्ट्रेलिया,संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में स्थित बहुत बड़ी-बड़ी और अतिसक्षम दूरबीनें अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में स्थित ग्रहों,उपग्रहों,स्टेरायडों,पुच्छल तारों,सूर्य से भी लाखों गुने बड़े तारों और अरबों प्रकाशवर्ष दूर स्थित गैलेक्सियों और ब्लैक होलों को देखने में सक्षम हैं। इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष की सूदूर आकाशगंगाओं और नीहारिकाओं को देखने के लिए वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की वाह्य कक्षा में 20 मई 1990 को सशक्त हबल जैसे टेलीस्कोप छोड़े,जो अब तक लगभग 3000 आकाशगंगाओं के अस्तित्व के बारे में हम मानवप्रजाति को बताया ! वर्ष 2009 में 7 मार्च को अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे अन्य  ग्रहों को ढूंढने के लिए केप्लर अंतरिक्ष यान को भेजा गया,जो पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों को ढूँढने में सतत लगा हुआ है,इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर लगे उच्च क्षमता के टेलीस्कोप भी सूदूर अंतरिक्ष में उन ग्रहों को ढूंढने में दिन-रात अपनी सतर्क आँखें गड़ाए हुए हैं। अंतरिक्ष वैज्ञानिक अब तक अपनी पृथ्वी जैसे लगभग 4300 ग्रह ढूँढ चुके हैं,जहाँ की परिस्थितियां बहुत कुछ पृथ्वी जैसी ही हैं इनमें कुछ हमारे वृहस्पति जैसे विशाल गैस से निर्मित ग्रह हैं,तो कुछ पृथ्वी और मंगल जैसे बिल्कुल ठोस चट्टानों से निर्मित वाह्यग्रह Exoplanet हैं।

             वाह्यग्रह Exoplanet वे ग्रह हैं,जो हमारे  सौरमण्डल से बाहर ब्रह्मांड में अपने सूरज के जीवन संभाव्य क्षेत्र मतलब हैबिटेट जोन में हैं ,वह क्षेत्र जहाँ ग्रह पथरीला होता और उसके साथ ही वहाँ तरल पानी भी होता है ,अंतरिक्ष की सूदूर गहराइयों में अब तक अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा क्रमिक रूप से खोजे गए पृथ्वी जैसे जीवनयोग्य ग्रहों का विवरण निम्नवत् है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक टीम ने हमारी पृथ्वी से लगभग 1400 प्रकाशवर्ष दूर एक ऐसे वाह्यग्रह या Explante की खोज किया है जो अपने जी-2 नामक तारे या सूर्य से उतनी ही दूरी पर परिक्रमा कर रहा है,जितनी दूरी पर हमारी पृथ्वी हमारे सूरज की परिक्रमा कर रही है । वह अपने तारे की परिक्रमा उसी हैबिटेट क्षेत्र में कर रहा है,जिस हैबिटेट क्षेत्र में हमारी पृथ्वी कर रही है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार हैबिटेट क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमें जीने लायक परिस्थितियां हों,यथा वहाँ का तापमान पानी के उबलने के तापमान यानी उसके क्वथनांक से कम हो और जिस तापमान पर बर्फ जमती है,उससे बहुत नीचे माइनस में भी न हो। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार इस ग्रह पर जीवन के लिए पर्याप्त परिस्थितियां मौजूद हैं,इस ग्रह पर ज्वालामुखी भी हैं,इसका गुरूत्वाकर्षण हमारी पृथ्वी से दोगुना है,यह अपने तारे की परिक्रमा 385 दिन में पूरा कर लेता है। चूँकि इस ग्रह के कई गुण हमारी पृथ्वी से मिलते हैं,इसलिए अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस ग्रह को पृथ्वी का बड़ा भाई या सुपर अर्थ कहते हैं और इसके तारे जी-2 को सूर्य का बड़ा भाई मानते हैं ! सुपर अर्थ उस ग्रह को कहते हैं जिसका द्रव्यमान हमारी पृथ्वी से बहुत ज्यादे परन्तु नेपच्यून और यूरेनस से बहुत कम हो ।वाह्यग्रह या Explante उन ग्रहों को कहते हैं जो हमारे सौरमण्डल से बाहर ब्रह्मांड में किसी अन्य तारे की परिक्रमा कर रहे हैं ।

          नासा के वैज्ञानिकों ने कैप्लर 10-बी नामक एक अन्य ग्रह की भी खोज किया है,जो अपने तारे से हमारे सूर्य से बुध की दूरी से भी 24 गुना ज्यादे कम दूरी पर अवस्थित है, इसका दिन में तापमान 1371 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादे रहता है,जिस तापमान पर लोहा भी द्रव बनकर बहने लगता है,इस ग्रह का वजन हमारी पृथ्वी से 4.6 गुना भारी है,इसका घनत्व 8.8 ग्राम प्रतिघन सेंटीमीटर है,मतलब लोहे से भी ज्यादे ! इस ग्रह के बारे में विस्तृत जानकारी सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका एस्ट्रोफिजिककल जर्नल में प्रकाशित हुई है। नासा के ही वैज्ञानिकों ने अपने केप्लर अंतरिक्ष यान के जरिए पृथ्वी से लगभग 300 प्रकाशवर्ष दूर एक ऐसे वाह्यग्रह या Explante की खोज किया है जो हमारी पृथ्वी से 1.06 गुना भारी है और इसका तापमान भी पृथ्वी जैसा ही है यह ग्रह भी हमारी पृथ्वी की तरह अपने बौने लाल तारे मतलब  Red Dwarf Star से 75 प्रतिशत उर्जा लेता है और उसी का चक्कर लगाता है,वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह के बौने लाल तारे अंतरिक्ष में बिखरे पड़े हैं !

             इसी प्रकार जर्मनी के सुप्रसिद्ध मैक्स प्लैंक खगोलशास्त्र संस्थान के वैज्ञानिकों ने ग्लीज -486-बी नामक एक ग्रह की खोज किया है,जो हमारे सौरमण्डल के शुक्र ग्रह से थोड़ा ही ठंडा है,लेकिन इसकी सतह पर गर्म लावे की नदियां बह रहीं हैं ,जाहिर है यहाँ कोई भी जीव रह ही नहीं सकता ! ग्लीज-486-बी नामक यह एक्सप्लानेट सुपर अर्थ है जिसकी दूरी अन्य एक्सप्लानेट की तुलना में पथ्वी से सबसे कम है। पृथ्वी से इसकी दूरी मात्र 26.3 प्रकाशवर्ष है ,इसलिए भले ही इस पर हम रह न सकें लेकिन कम दूरी होने की वजह से इसका अध्ययन तो हम कर ही सकते हैं।

               अब सबसे खुशी की बात यह है कि इसी महीने 24-12-2021को अमेरिका और कनाडा सहित यूरोप के लगभग 18 देश मिलकर जिसमें वहां के हजारों तकनीशियन, इंजीनियर और वैज्ञानिक शामिल हैं,6500 किलोग्राम वजन का,21फीट या 6.5 मीटर बड़े लैंस वाले जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप को जिसकी लागत 10 अरब अमेरिकी डॉलर है,को इस धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर कक्षा में स्थापित करने के लिए और माइनस  223 डिग्री सेल्सियस ठंडा रखने के लिए सिलिकॉन और एल्युमिनियम की परत से ढकनेवाली तकनीक से लैसकर प्रक्षेपित करनेवाले हैं,अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हबल टेलीस्कोप से तुलनात्मक रूप से यह बहुत ही विशाल और सक्षम है,क्योंकि जहाँ हबल टेलीस्कोप का लैंस मात्र 7 फीट 10 ईंच है,वहीं जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप का लैंस 21 फुट का है,लेकिन हबल टेलीस्कोप के लैंस के क्षेत्रफल से जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप के लैंस का क्षेत्रफल 6 गुना ज्यादे है, जहाँ हबल टेलीस्कोप पृथ्वी से मात्र 537 किलोमीटर की ऊँचाई वाली कक्षा में स्थापित है वहीं जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप को हमारी पृथ्वी और चंद्रमा की दूरी से भी लगभग चार गुनी दूरी मतलब 15 लाख किलोमीटर दूर की कक्षा में स्थापित किया जा रहा है,जहाँ हबल टेलीस्कोप आकाश गंगाओं के दृश्यमान भागों को ही देख पाने में सक्षम था वहीं जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप इंफ्रारेड की शक्ति से लैस है,जो सूदूर अंतरिक्ष के अंधेरे कोने को भी भलीभाँति देखकर उनका बखूबी फोटो खींच सकता है और विडिओ तक भी बना सकता है ! आशा है अंतरिक्ष वैज्ञानिक भविष्य में आधुनिकतम् जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप की मदद से मानव प्रजाति की इस परम् इच्छा और जीजिविषा को शांत कर दें कि ‘काश हमारी जैसी कोई अन्य विकसित सभ्यता भी इस ब्रह्मांड में कहीं अस्तित्व में हो ! ‘ को सुदूर अंतरिक्ष की लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित अपनी धरती जैसे जीवन और सांसों के स्पंदन से युक्त कोई अन्य ग्रह ढूँढ ही निकालें जिसके फलस्वरूप और इस ब्रह्मांड में स्थित दो जीवित और समुन्नत सभ्यताओं का मधुर और सुखद मिलन हो ही जाय !

-निर्मल कुमार शर्मा,वैज्ञानिक ,सामाजिक व राजनैतिक विषयों पर बेखौफ़ व स्वतंत्र लेखन,गाजियाबाद,उप्र

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