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   कुछ इस तरह मनाएँ छब्‍बीस जनवरी इस बार,

सुधाकर अमृतवर्षा, दिवाकर रश्मि‍मणि

बिखेरे इस बार,
स्‍वाति गिरे धरा कुमकुम का शृंगार

करे इस बार,
क्षितिज पर फहराए विजयी विश्‍व तिरंगा

अपना इस बार,

कुछ इस तरह मनाएँ

छब्‍बीस जनवरी इस बार,
दो देश करते हैं जैसे विकास के लिए कोई करार।

ग़रीबों के हक़ की बात करें

इन्‍सानियत के दुश्‍मनों का करें बहिष्‍कार,
बच्‍चों की सेहत पर दें ध्‍यान
नारी न हो कहीं शर्मसार,
बुजुर्गों का आदर हो और

घर-घर में पनपें संस्‍कार,

कुछ इस तरह बनाएँ नेता

अपनी छवि इस बार,
दो देश करते हों जैसे प्रत्‍यपर्ण करार।

राम और कृष्‍ण की भूमि महाशक्ति बने
देश  का नाम हो जगत् में सिरमौर,
दूध की नदियाँ बहें फिर

धन सम्‍पदा वैभव बिखरा हो हर ओर,
गाँधी के राम राज्‍य की हो सुबह
नेहरू के पंचशील का हो भोर,

कुछ इस तरह बनाएँ

अपनी सरकार इस बार,
दो देश करते हों जैसे निरस्‍त्रीकरण करार।

न बनें सरहदें, न टूटें कोई राज्य,
न बँटे ज़मीनें,
न दिलों में नफ़रत पले
न आँखें हों ग़मगीनें,
इंसाफ़ का परचम फहरे
न रिश्‍तों पे उठें संगीनें,

कुछ इस तरह बनाएँ वातावरण

अमन चैन का इस बार,
दो देश करते हों जैसे आव्रजन करार।

-डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’

https://www.youtube.com/channel/UC-Imur2KKP9bOsig2eUh5xg

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